बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राज्य की राजनीति में एक बार फिर स्पष्ट जनमत और नेतृत्व की स्वीकार्यता का संदेश दिया।
एनडीए को प्राप्त प्रचंड बहुमत केवल चुनावी गणित नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक विश्वास का संकेत माना जा रहा है। महिलाओं का बड़े पैमाने पर एनडीए के पक्ष में मतदान एक महत्वपूर्ण फैक्टर रहा, जिसके पीछे उज्ज्वला, हर घर नल योजना, सड़क-शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे सुधार और सुरक्षा-स्थिरता की धारणा ने अहम भूमिका निभाई।
दूसरी ओर, महागठबंधन जनता को मजबूत और भरोसेमंद विकल्प के रूप में पूरी तरह आश्वस्त नहीं कर पाया। विपक्ष के भीतर नेतृत्व, विज़न और सीट बंटवारे को लेकर असंतुलन ने अभियान को कमजोर किया। कांग्रेस का अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन और तालमेल की कमी पूरे गठबंधन की पकड़ को ढीला करती दिखाई दी।
चुनाव के दौरान "एंटी-इनकंबेंसी" और "वोट चोरी" जैसे नैरेटिव जनता के बड़े हिस्से को प्रभावित नहीं कर सके। यह संभव है कि मतदाता ऐसे कथनों को ठोस विकास और स्थिर शासन मॉडल की तुलना में कम विश्वसनीय मानते हों। इसके विपरीत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की संयुक्त विश्वसनीयता, प्रशासनिक अनुभव और प्रबंधन क्षमता ने मजबूत नेतृत्व छवि प्रदान की।
जहाँ तेजस्वी यादव युवा और ऊर्जावान नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहीं व्यापक मतदाता वर्ग को उनके मॉडल, स्थिरता और गठबंधन प्रबंधन पर पूर्ण भरोसा नहीं मिल पाया। बड़े स्तर पर देखा जाए तो महागठबंधन रणनीतिक स्पष्टता, Bihar election 2025 analysis
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