/young-bharat-news/media/media_files/2025/05/29/tN2cI3OIW9s2hKlrl7FU.jpg)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः यूपी के क्राइम वर्ल्ड में गाड फादर कल्चर लाने का काम बेशक हरिशंकर तिवारी ने किया था। बाद के दौर में उनकी आंखों के सामने एक से एक खतरनाक गैंगस्टर्स सूबे में पनपते चले गए। फेहरिस्त में मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, डीपी यादव, मुन्ना बजरंगी और अतीक अहमद जैसे नाम शामिल थे। ये सभी खौफ का दूसरा नाम कहे जाते थे। लेकिन 90 के दशक में एक लड़का यूपी की जरायम की दुनिया में तेजी से उभरा। इतनी तेजी से कि ये तमाम दुर्दांत अपराधी उसके नाम से ही खौफ खाने लगे। इतना कि उसका नाम सुनते ही इन बाहुबलियों के शरीर में सिहरन पैदा होने लगती थी। श्रीप्रकाश शुक्ला नाम के इस अपराधी ने इतनी तेजी से और इस अंदाज में अपराध जगत में सीढ़ियां चढ़ीं कि उसके नाम से बड़े से बड़ा गैंगस्टर भी थर्राने लग गया था। बड़े से बड़ा अपराधी भी श्रीप्रकाश का रास्ता काटने की जुर्रत नहीं कर सकता था। सभी ऊपर वाले से ये मनाते थे कि श्रीप्रकाश से कभी उनका सामना न हो।
बहन को सीटी मारने वाले को मारकर बना अपराधी
श्रीप्रकाश शुक्ला हरिशंकर तिवारी के ही इलाके का था। वो मामखोर गांव में रहता थे। पढ़ने लिखने में तेज था और पहलवानी उसका शगल। उसका सपना पहलवानी में बड़ा नाम बनने का था। कुश्ती के दांव पेंच वो बखूबी जानता था और तेजी के साथ नए गुर सीख रहा था। लेकिन एक दिन एक ऐसी घटना हुई कि स्कूल मास्टर के बेटे की जिंदगी बदल गई। वो एक शाम घर लौटकर आया तो देखा कि बहन की आंखों में आंसू थे और मां उदास। पूछने पर पता चला कि राकेश तिवारी नामका एक युवक बहन को देखकर रोज सीटी मारता है। श्रीप्रकाश घर से निकल गया और तुरंत जाकर राकेश का काम तमाम कर दिया। उसके पिता हरिशंकर तिवारी को जानते थे। हत्या के बाद वो उसे लेकर उनके पास चले गए। तिवारी को श्रीप्रकाश में काफी संभावना दिखी और कहते हैं कि पुलिस से बचाने के लिए उन्होंने उसका बैंकाक का टिकट कटा दिया। trending news | Brutal Crime Stories
बैंकाक से लौटकर मोकामा के डान सूरज भान से मिला
राकेश तिवारी की हत्या 1993 में हुई थी। कुछ अरसे बाद श्रीप्रकाश वापस लौटा। हरिशंकर तिवारी ने उसे किसी काम पर लगाया। काम करते करते उसकी मुलाकात बिहार के मोकामा के डान सूरज भान से हुई। सूरज भान ने श्रीप्रकाश को अपनी सरपरस्ती में ले लिया। श्रीप्रकाश बैंकाक से लौटने के बाद ठान चुका था कि वो हरिशंकर तिवारी से भी बड़ा नाम बनकर रहेगा। सूरजभान से उसे हथियार मिले तो उसने अपनी टीम खड़ी कर डाली। ये वो दौर था जब यूपी के जरायम में हरिशंकर तिवारी और ठाकुर नेता वीरेंद्र शाही की दुश्मनी के चरचे आम थे। दूसरी तरफ बृजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी की रातों की नींद उड़ा रखी थी। इलाहाबाद में अतीक अहमद खौफ का दूसरा नाम बन चुका था तो पश्चिमी यूपी डीपी यादव की सरपरस्ती में थी।
वीरेंद्र शाही के बाद बिहार के मंत्री को गोलियों से भूना
श्रीप्रकाश को पता था कि हरिशंकर तिवारी उसे महज प्यादा बनाकर रखेंगे। लेकिन वो बनना चाहता था बादशाह। सूरजभान के कहने पर उसने 20 से ज्यादा हत्याएं की थीं। अब उसकी नजरें रेलवे के टेंडरों पर थीं। रेलवे के टेंडर उस समय हरिशंकर तिवारी और शाही के बीच बंटते थे। श्रीप्रकाश इस खेल में उतरने का मन बना चुका था। उसने 1997 में वीरेंद्र शाही को लखनऊ में एक-47 से तब 105 गोलियां मारीं जब वो मार्निंग वाक पर थे। शाही की हत्या की खबर ने यूपी के समूचे अंडरवर्ल्ड को हिलाकर रख दिया। शुक्ला का आतंक तब चरम पर पहुंचा जब 13 जून 1998 को उसने बिहार की राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री ब्रज बिहारी प्रसाद की पटना के आइजीआइएमएस हॉस्पिटल में हत्या कर दी। ब्रज बिहारी प्रसाद न्यायिक हिरासत के दौरान में इलाज कराने के लिए हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे। शाही और बृज बिहारी के हत्याकांड की खासियत ये थी कि शुक्ला ने दोनों वारदातें दिन दहाड़े अंजाम दीं। हत्या का ये तरीका यूपी के जरायम में पहली बार देखा गया था। जबकि मरने वाले खुद भी बड़े गैंगस्टर्स रहे थे।
श्रीप्रकाश को देखकर भाग निकला था मुख्तार अंसारी
कहते हैं कि एक बार पूर्वांचल का दुर्दांत अपराधी मुख्तार अंसारी लखनऊ से अपने घर गाजीपुर लौटकर आ रहा था। उसके ड्राइवर ने मुख्तार के कान में कुछ कहा। बस फिर क्या था मुख्तार की गाड़ियों का काफिला बिजली की तेजी से गाजीपुर की तरफ उड़ निकला। बताते हैं कि मुख्तार जब गाड़ी में बैठ रहा था तब सामने श्रीप्रकाश शुक्ला खड़ा था। ड्राइवर उसे पहचान गया और उसने तुरंत ये बात मुख्तार को बताई। मुख्तार ने कहा तुरंत यहां से निकलो। खतरा है। श्रीप्रकाश का खौफ इस कदर छा गया कि शाही की हत्या के बाद हरिशंकर तिवारी अंडरग्राउंड हो गए थे। उस समय वो कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री थे। शुक्ला की ख्वाहिश थी कि वो अब चिल्लूपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेगा। ये सीट हरिशंकर तिवारी की थी। उसने उनको साफ कह दिया कि या तो सीट छोड़ दो या दुनिया। जान बचाने के लिए तिवारी ने उसके मामा को अपनी ढाल बना लिया। वो मानते थे कि मामा को देखकर शुक्ला उन पर गोली नहीं चलाएगा।
ली थी कल्याण सिंह की सुपारी, हिल गई थी सरकार
शाही और बिहार के मंत्री की हत्या करके श्रीप्रकाश अपराध जगत का सबसे बड़ा नाम बन चुका था। उसकी ख्वाहिश थी कि वो यूपी का दाऊद बने। चूहे बिल्ली के इस खेल में अचानक यूपी की खुफिया पुलिस के पास ऐसी खबर आई जिसने पूरे सिस्टम को हिलाकर रख दिया। खबर थी कि सीएम कल्याण सिंह के किसी विरोधी ने शुक्ला को उनकी हत्या के लिए 6 करोड़ की सुपारी दी है। सरकार खौफ में आ चुकी थी। शुक्ला ने शाही और बिहार के मंत्री को जिस अंदाज में निपटाया था, उससे पुलिस को लगता था कि वो सीएम को भी निशाना बना सकता है। फिर बनी एसटीएफ और उसके बाद लिखी गई शुक्ला के खात्मे की पटकथा। एसटीएफ के डीजी विक्रम सिंह ने अपने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट को कहा- हर हाल में शुक्ला चाहिए चाहे जिंदा या मुर्दा।
मोबाइल रखने का शौक बन गया शुक्ला की सबसे बड़ी गलती
शुक्ला उस दौरान तक यूपी बिहार के साथ दिल्ली और तकरीबन सारे भारत में आपरेट करने लगा था। कहा जाता है कि वो इस दौरान दाऊद के संपर्क में भी आया। दाऊद चाहता था कि वो उसके माफिया सिंडिकेट का हिस्सा बन जाए लेकिन शुक्ला तो खुद दाऊद बनने का ख्वाब पाले था। 25 साल की उम्र में वो इतना बड़ा हो चुका था कि हर बड़ा नाम उससे खौफ खाने लगा था। यूपी की एसटीएफ को शुक्ला जब नहीं मिला तो उसने उसके फोन पर नजर रखनी शुरू की। पुलिस को पता चला था कि शुक्ला ने दिल्ली के बसंत कुंज इलाके में फ्लैट लिया है। वो वहीं से आपरेट कर रहा था। पुलिस ने उसके नंबर 9810198194 को सर्विलांस पर लिया।
एक सिमकार्ड हफ्ते भर तक इस्तेमाल करना बनी गलती
एक दिन पता चला कि शुक्ला 21 सितंबर 1998 को वो फ्लाइट से रांची जाएगा। पुलिस की टीमें एयरपोर्ट के बाहर मुस्तैद थीं। फ्लाइट सुबह 5.45 बजे की थी पर शुक्ला भांप गया। वो वहां पहुंचा ही नहीं। पुलिस का कहना था कि शुक्ला के पास 14 सिमकार्ड थे। वो एक बार में एक कार्ड यूज करता था। लेकिन जब उसका एनकउंटर हुआ तब वो एक ही सिमकार्ड हफ्ते भर से यूज कर रहा था। पुलिस को लोकेशन ट्रेस करके पता चला कि वो कार से दिल्ली से निकला है तो एसटीएफ उसके पीछे लग गई। शुक्ला उस वक्त सिएलो कार नंबर एचआर 26जी 7305 में सवार था। 22 सितंबर की दोपहर 1.50 बजे गजियाबाद के मोहन नगर फ्लाई ओवर पर वो एसटीएफ की नजरों में पहली बार आया तब वो ड्राइविंग सीट पर था। अनुज प्रताप उसके बगल में था जबकि सुधीर त्रिपाठी नीले रंग की कार की पिछली सीट पर था। एसटीएफ के सब इंस्पेक्ट वीपीएस चौहान ने जब उसका रास्ता रोका तो शुक्ला खतरे को भांप गया। उसने कार की स्पीड तेज कर दी।
लेकिन किस्मत उस दिन शुक्ला के साथ नहीं थी। एसटीएफ ने एक किमी दूर जाकर फिर से उसे घेर लिया। शुक्ला ने जब देखा कि बचने का कोई रास्ता नहीं है तो उसने पिस्टल से गोलियां चलानी शुरू कर दीं। लेकिन ये लड़ाई बराबर की नहीं थी। शुक्ला की तरफ से 15 गोलियां दागी गईं तो एसटीएप ने इतनी देर में कितनी फायरिंग की इसका कोई आंकड़ा नहीं था। कुछ देर बाद जब फायरिंग रुकी तो सिएलो कार में हर तरफ गोलियों के निशान थे। पुलिस टीम ने कार को घेरकर फिर से गोलियां दागीं। फिर कार को खोला तो वो नाम जिससे हर बड़ा गैंगस्टर और यहां तक कि सरकार भी थर्रा गई थी वो दूसरी दुनिया में जा चुका था। लेकिन 25 साल की उम्र में श्रीप्रकाश जरायम की दुनिया में वो जगह बना चुका था जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया।
SRI PRAKASH SHUKLA, HARI SHANKAR TIWARI, UP STF, CM KALYAN SINGH, CRIME, UP CRIME, TRENDING