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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे आने वाली पीढ़ियां उनको अपने जहन में रखतीं। वो भारत-पाक के बीच के तनाव को सिफर के स्तर पर लाना चाहते थे। दोनों 2001 में इसके लिए आगरा में मिले। दो दिनों तक गुफ्तगू करते रहे लेकिन आखिर में कुछ ऐसा हुआ कि बातचीत फेल हो गई।
आडवाणी से 20 बार मिले थे अशरफ काजी
R&AW चीफ रहे ए एस दुलत ने अपनी किताब Kashmir: The Vajpayee Years में लिखा कि जुलाई 2001 में भारत और पाकिस्तान के बीच आगरा शिखर सम्मेलन के वास्तुकार लालकृष्ण आडवाणी थे और वो ही इसके विध्वंसक। दुलत के मुताबिक आगरा शिखर सम्मेलन की योजना बनने से बहुत पहले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री आडवाणी ने तत्कालीन पाकिस्तान के उच्चायुक्त अशरफ जहांगीर काजी से करीब 20 बार गुप्त रूप से मुलाकात की थीं। उनका कहना है कि यहीं से आगरा सम्मिट की आधारशिला रखी जानी शुरू की गई।
पत्रकार करण थापर बने थे दोनों का जरिया
दुलत ने अपनी किताब में दावा किया कि पत्रकार करण थापर ने गुप्त बैठकें (करण के अनुसार 20 बैठकें) आयोजित कीं। दुलत लिखते हैं कि करण के मित्र काजी को एनडीए सरकार के साथ तालमेल बिठाने के लिए कुछ समय चाहिए था। करण ने उन्हें तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस से मिलवाया। दोनों करण के घर पर ही मिले और दोस्त बन गए। लेकिन काजी आडवाणी से मिलना चाहते थे, इसलिए जॉर्ज ने यह तय किया और करण से कहा कि वो देर रात काजी को आडवाणी के पंडारा पार्क स्थित आवास पर ले जाएं।
जब पंडारा रोड पर चहलकदमी करते दिखे थे थापर
करण बाहर इंतजार करते रहे, जबकि काजी 90 मिनट तक आडवाणी से मिलते रहे। दूसरी बार करण को सुधींद्र कुलकर्णी ने स्ट्रीट लाइट के नीचे इंतजार करते देखा, जो उस समय वाजपेयी के नजदीक थे। जब कुलकर्णी ने करण को देखा तो उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि वो अपने किसी मित्र का इंतजार कर रहे हैं, जो एंबेसडर होटल में डिनर कर रहा है। इसके बाद आडवाणी की बेटी प्रतिभा ने सुझाव दिया कि वो उनके साथ बैठकर प्रतीक्षा करें जब आडवाणी और अशरफ मिलते मीटिंग में थे। दुलत का कहना है कि संभवतः इन बैठकों के बारे में किसी को भनक तक नहीं लगी।
आडवाणी के सवाल से मुशर्रफ रह गए थे हैरान
दिल्ली के आडवाणी और आगरा के आडवाणी अलग-अलग थे। दुलत ने लिखा कि मुशर्रफ तब हैरान रह गए जब आडवाणी ने आगरा शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के लिए आयोजित रात्रिभोज में दाऊद इब्राहिम का मुद्दा उठाया। हैरान मुशर्रफ ने आडवाणी से कहा कि कम से कम आगरा तो चलें। भारत-पाकिस्तान संबंधों पर कई विद्वानों और विशेषज्ञों का दृढ़ विश्वास है कि अगर आगरा शिखर सम्मेलन सफल होता तो दोनों देशों की नियति अच्छे के लिए बदल सकती थी।
दुलत ने बताया कि क्या थी पाकिस्तान की गलती
दुलत कहते हैं कि पाकिस्तान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी पर निवेश करके एक रणनीतिक गलती की। उसने आडवाणी पर पर्याप्त निवेश नहीं किया। अगर पाकिस्तानियों ने आडवाणी को अच्छे मूड में रखा होता तो शायद सम्मेलन विफल नहीं होता। आगरा सम्मेलन के एक खलनायक तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह के संयुक्त सचिवों में से एक विवेक काटजू थे।
काजी ने दुलत को बताया कि क्यों फेल हुई आगरा सम्मिट
अपनी पुस्तक में दुलत ने विस्तार से इस बात पर विचार किया है कि आगरा शिखर सम्मेलन क्यों विफल हुआ और उच्चायुक्त काजी के साथ अपनी बातचीत का हवाला दिया है। अशरफ काजी ने बाद के सालों में दिल्ली प्रवास के दौरान उनसे कहा था कि आडवाणी आगरा के निर्माता थे। उन्होंने कहा कि जब तक आप उनके अहंकार को बढ़ावा देते हैं, आडवाणी एक अद्भुत इंसान हैं। उनके खुद के रिश्ते बहुत अच्छे थे क्योंकि वे हमेशा आडवाणी का सम्मान करते थे। दुलत ने काजी के हवाले से कहा है कि आडवाणी और मुशर्रफ के बीच की केमिस्ट्री कभी नहीं चली।
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