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इलाहाबाद हाईकोर्ट Photograph: (Social Media)
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इलाहाबाद हाईकोर्ट Photograph: (Social Media)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक मजेदार वाकया पेश आया। जज से तारीख मांग रहे एडवोकेट का पारा उस समय चढ़ गया जब उसकी बात को नजरंदाज कर दिया गया। उसके बाद एडवोकेट ने एक ऐसी हिमाकत कर डाली जिससे हाईकोर्ट हत्थे से उखड़ गया। फिलहाल आरोपी वकील को ऐसी सजा देने की तैयारी की जा रही है जिससे भविष्य में कोई दूसरा जज से उलझने से पहले सौ बार सोचे। अदालत सख्त रुख अख्तियार कर चुकी है। Judiciary | Indian Judiciary | न्यायपालिका भारत n
वाकया हरिभान उर्फ मोनू उर्फ रमाकांत बनाम यूपी सरकार के मुकदमे से जुड़ा है। हत्या के इस मामले में एडवोकेट हरीश चंद्र शुक्ला हत्यारोपी की पैरवी कर रहे थे। जस्टिस सिद्धार्थ की कोर्ट में ये केस लगा था। हरीश चंद्र मामले के एक आरोपी बेल याचिका को लेकर अदालत में पेश हुए थे। उन्होंने कोर्ट से तारीख देने की मांग की। दरअसल उनका कहना था कि आरोपी पक्ष की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट ने जो दलीलें दी हैं वो उनका संवैधानिक और कानूनी आधार पर जवाब देना चाहते हैं। उनकी दलील थी कि थोड़ा टाइम मिल जाएगा तो वो बेहतर जवाब दे पाएंगे।
जस्टिस सिद्धार्थ ने उनकी अपील को खारिज कर दिया। उनका कहना था कि इस मामले में पहले से ही कई तारीखें दी जा चुकी है। मामला बहुत लंबा खिंच रहा है। हालांकि बाद में जस्टिस ने एडवोकेट शुक्ला को एक दिन की मोहलत देते हुए कहा कि अपना जवाब दाखिल कीजिए।
लंबी तारीख न मिलने से भन्नाए एडवोकेट शुक्ला ने अनूठा कदम उठाते हुए जो जवाब दाखिल किया उसमें लिख दिया कि हाईकोर्ट बिका हुआ है। जस्टिस सिद्धार्थ ने उनका जवाब देखा तो उनका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उन्होंने एडवोकेट की हिमाकत को गंभीरता से लेते हुए उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने का आदेश दे डाला। उन्होंने हईकोर्ट की रजिस्ट्री को आदेश दिया कि वो सारा रिकार्ड उस बेंच के सामने रखें जो अवमानना की सुनवाई करेगी। जस्टिस यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने बार काउंसिंल को सारा वाकया बताते हुए लिखा कि एडवोकेट शुक्ला वकालत के लिए उपयुक्त नहीं है। बार संजीदगी से विचार करे। हो सके तो उसका लाइसेंस रद्द किया जाए। हत्या के मामले से जस्टिस ने खुद को अलग भी कर लिया। उन्होंने रजिस्ट्री को चिट्ठी लिखकर कहा कि ये केस किसी दूसरे जज को सौंपा जाए।
हालांकि एडवोकेट हरीश चंद्र शुक्ला अब माफी की गुहार लगा रहा है। लेकिन अदालत किसी भी सूरत में उसका गिरेबां छोड़ने को तैयार नहीं। वकील लिखित में माफी देने को तैयार है। कोर्ट में खड़े होकर भी गलती मानने को तैयार है। लेकिन अदालत का कहना है कि हत्या का ये केस अप्रैल 2024 से लंबित है। अदालत इसका जल्द निपटारा करना चाहती है लेकिन एडवोकेट शुक्ला बार बार तारीखें मांगकर केस को लंबा खींचने की पूरी जुगत भिड़ा रहा है।
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