नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः वक्फ संशोधन एक्ट 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 1923 के एक्ट का हवाला देकर कहा कि हम 102 सालों से चली आ रही बुराई को खत्म कर रहे थे। नया एक्ट बनाने से पहले हर हितधारक की बात सुनी गई। सरकार ने 96 लाख मुस्लिमों से मशविरे के बाद नया एक्ट तैयार किया है। इसे अंतिम रूप देने से पहले जेपीसी की 36 बैठकें हुईं। जेपीसी के साथ बार-बार विचार-विमर्श हुआ। उन्होंने विभिन्न मुस्लिम निकायों से इनपुट लिए। इसके बाद एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें सुझावों को कारणों के साथ स्वीकार या अस्वीकार किया गया। फिर इसे अभूतपूर्व बहस के साथ पारित किया गया।
मुट्ठी भर याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय के ठेकेदार नहीं
चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई और जस्टिस एसजी मसीह की बेंच के सामने मेहता ने कहा कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं कर सकते। उनका कहना था कि सरकार ने पाया कि ट्रस्टों में अभी भी गोलमाल चल रहा है। अब बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट देखें। यह उन ट्रस्टों पर मुकदमा चलाने पर रोक लगाता है जो एक्ट के तहत पंजीकृत नहीं हैं। मेहता ने कहा कि शुरुआती बिल में कहा गया था कि कलेक्टर फैसला लेंगे। आपत्ति यह थी कि कलेक्टर अपने मामले में खुद जज होंगे। इसलिए जेपीसी ने सुझाव दिया कि कलेक्टर के अलावा किसी और को नामित अधिकारी बनाया जाए। इस पर सीजेआई गवई ने कहा कि एक्ट के विरोध में दायर याचिकाओं में इस बात को लेकर आपत्ति जताई गई है कि इस मामले में सरकार अपना दावा खुद तय करेगी तो फिर न्याय कैसे मिल पाएगा।
मेहता का कहना था कि राजस्व अधिकारी तय करते हैं कि यह सरकारी जमीन है या नहीं। लेकिन यह सिर्फ राजस्व रिकॉर्ड के लिए है। वो शीर्षक तय नहीं कर सकते। यह अंतिम नहीं है। अगर आपने खुद को वक्फ बाय यूजर के रूप में पंजीकृत किया है तो यह दो अपवादों के साथ कह रहा है कि विवाद का मतलब होगा कि एक निजी पक्ष ने मुकदमा दायर किया हो सकता है कि यह मेरी संपत्ति है जिसे वक्फ घोषित किया गया है। वक्फ संपत्ति पर निजी पक्ष के बीच कोई विवाद है तो यह कोर्ट के विचाराधीन होगा ।
सीजेआई के सवाल पर मेहता ने बताई वक्फ की परिभाषा
सीजेआई के सवाल पर मेहता नोट से वक्फ की परिभाषा पढ़ते हैं। 1923 के अधिनियम में कहा गया था कि वक्फ को वक्फ द्वारा बनाया जा सकता है। 1955 के अधिनियम में भी यही कहा गया था। फिर नवंबर 2013 में चुनावों से ठीक पहले इसमें कुछ बदलाव किए गए। इसके तहत कोई भी व्यक्ति वक्फ बना सकता है। बस उसे मुस्लिम होना चाहिए। उसे 5 साल तक इस्लाम का पालन करना होगा। और वह केवल अपनी संपत्ति पर वक्फ बना सकता है, न कि किसी और की संपत्ति पर। ताकि निजी या सरकारी संपत्ति के खतरे को खत्म किया जा सके।
सरकार बोली- वक्फ इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं
मेहता ने कहा किअनुच्छेद 25 और 26 के तहत वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, इसमें कोई विवाद नहीं है, लेकिन वक्फ इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। दान हर धर्म का हिस्सा है। यह ईसाई धर्म का भी हिस्सा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। हिंदुओं में दान की व्यवस्था है, सिखों में भी है लेकिन यह एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
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