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Kanpur Schools News : स्कूलों में कट रही पैरेंट्स की जेब, प्रशासन की समिति को शिकायत का है इंतजार

निजी स्कूलों द्वारा जल्द से जल्द किताबें व कापी खरीदने का दबाव बच्चों और पैरेंट्स पर डाला जा रहा है। अभिभावक भी स्कूलों में लगे स्टाल या बताए गए बुक स्टाल पर मानमाने दामों पर कापी-किताबें खरीदकर अपनी जेब कटवा रहे हैं।

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Abhishek kumar
कानपुर में स्‍कूलों की मनमानी चरम पर है।

स्‍कूलों के बताए स्‍टाल पर बुक सेट खरीदने को मजबूर पैरेंट़स। Photograph: (फोटो- प्रतीकात्मक)

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कानपुर, सुनील वर्मा

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शहर के स्कूलों में नए सत्र का तीसरा दिन भी बीत चुका है। निजी स्कूलों द्वारा जल्द से जल्द किताबें व कापी खरीदने का दबाव बच्चों और पैरेंट्स पर डाला जा रहा है। बड़ी संख्या में अभिभावक भी स्कूलों में लगे स्टाल या फिर बताए गए बुक स्टाल पर पहुंचकर मानमाने दामों पर कापी-किताबें खरीदकर अपनी जेब कटवा रहे हैं। लेकिन, प्रशासन द्वारा गठित समिति को कार्रवाई करने के बजाए शिकायत का इंतजार है।

सीबीएसई, आईसीएसई और यूपी बोर्ड के करीब 775 स्कूल

शहर में सीबीएसई, आईसीएसई, आईएससी और यूपी बोर्ड के करीब 775 स्कूल पंजीकृत है। इनमें दिल्ली पब्लिक स्कूल, मंटोरा, चिंतेल्स, गौरव मेमोरियल, महाराणा प्रताप स्कूल, इस्कार्ट वर्ल्ड, केडीएमए समेत करीब 175 नामी स्कूल सीबीएसई, आईसीएसई और आईएससी बोर्ड से संबद्ध हैं, वहीं करीब 600 स्कूल यूपी बोर्ड से संबद्ध है। स्कूल छोटा हो या बड़ा सभी के बीच ज्यादा कमाने की होड़ मची हुई है। फीस बढ़ोतरी से लेकर मनमाने तरीके से तय जगहों से कॉपी, किताबें, जूते-मोजे, ड्रेस और स्टेशनरी खरीदने के लिए अभिभावकों को मजबूर करना आदत बन गई है। 

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कल्याणपुर और बिठूर क्षेत्रों की हालत और ज्यादा खराब

नई टाउनशिप के चलते ज्यादातर नामी स्कूलों की शाखाएं कल्याणपुर और बिठूर इलाकों में ज्यादा खुली हैं। इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के अभिभावकों की जेब कापी किताब के नाम पर ढीली कराई जा रही है। स्कूल प्रबंधन द्वारा अभिभावकों को तय जगहों से ही किताब कापी खरीदने के लिए बाध्य किया जा है। इतना ही नहीं स्कूल प्रबंधन इस कदर मनमानी पर उतारू है कि स्कूल के नाम वाली ही कापी खरीदने को बाध्य कर रहे हैं। यही वजह है कि खुले बाजार में कॉपी के रेट कम होने के बाद भी शहर में बुक स्टाालों पर कॉपी किताब का धंधा करीब 55 करोड़ तक पहुंच गया है।

डीआइओएस ने दी नोटिस, डीएम ने बनाई समिति

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स्कूलों की कमीशनबाजी और मनमानी की कई शिकायतें डीआईओएस कार्यालय में पहुंची। इसके बाद आनन फानन में दस नामी स्कूलों को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण तलब किया गया। इसमें तीन दिनों में संतोषजनक जवाब न मिलने पर कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। इसके अलावा जिलाधिकारी ने अपनी अध्यक्षता में निजी स्कूलों पर नकेल कसने के लिए जिला शुल्क नियामक समिति का गठन किया। अब ये समिति शिकायतों का इंतजार कर रही है लेकिन समिति के घुमावदार नियमों की वजह से अभिभावक शिकायत दूरी बनाए हैं। वहीं अबतक 80 प्रतिशत से ज्यादा पैरेंट्स बुकसेट और स्टेशनरी स्कूलों के बताए स्थान से खरीदकर अपनी जेब कटवा चुके हैं।

अलग अलग किताबों के चैप्टर निकाल कर प्रकाशित हो रही किताब 

सभी स्कूलों में 1 अप्रैल से नया सत्र शुरू हो चुका है।सत्र शुरू होने के पहले ही स्कूल और दुकानदार के बीच कमीशन की डील होती है।इनके स्कूलों में मान्य किताब पूरे शहर में कही और नहीं मिलेगी।इनके द्वारा सूचीवृद्ध की गई किताब सिर्फ तय जगह पर ही उपलब्ध होगी । दुकानदारों की माने तो एक विषय की कई किताबों से कई चैप्टर निकाल कर किताब प्रकाशित करा ली जाती है और फिर उसे संबंधित स्कूल के जरिए बेचा जाता है।इसीलिए ये किताब कही और नहीं मिलती।

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स्कूलों को मिलता है कमीशन

किताब, कापी, स्टेशनरी के नाम पर निजी स्कूलों में लूट मची है। स्कूल द्वारा बताए तय स्थान पर मिलने वाली कॉपी बाजार से लेने पर 20 से 30 प्रतिशत रेट का अंतर मिलता है।स्टेशनरी में भी काफी अंतर होता है। परेड के दुकानदार आशीष की माने तो कापी का रेट एक बार पुनः डाउन हुआ है। इस हिसाब से कापी का रेट कम होना चाहिए, जबकि स्कूल से मिलने वाली कापी का रेट बढ़ गया है।

प्रिंट रेट पर बिक रही किताबें, GST की भी चोरी

स्कूलों की शह पर न सिर्फ लाखों के राजस्व की चोरी हो रही है। बल्कि अवैध तरीके से प्रिंट रेट पर किताब कापी और स्टेशनरी का सामान बेचा जा रहा है। ये पूरा खेल स्कूल के पास ही या फिर मनपसंद जगह पर किताब कापी की बिक्री की जाती है। अभिभावक अजय राजपूत बताते हैं कि स्कूल से किताब, कापी की सूची देकर उन्हें जगह बताई गई थी। कक्षा 4 की किताब कापी का सेट स्कूल के पास स्थित एक बेसमेंट हाल से 11 हजार रुपए से ज्यादा की कीमत में खरीदा है। जब बिल मांगा तो वंश ट्रेडिंग कंपनी का कच्चा बिल िदिया गया, वो भी किसी किताब कापी का उल्लेख किए बगैर। जबकि आॅनलाइन पेमेंट किसी संजय के नाम पर लिया गया। अजय राजपूत तो बानगी भर हैं, कमोवेश यही अपबीती सभी अभिभावकों की है, जो सबकुछ जानते हुए ठगी का शिकार होने को मजबूर हैं।

समिति के घुमावदार नियमों के चलते नही आती कोई शिकायत

यूं तो सत्र शुरू होने ही जिला शुल्क नियामक समिति का गठन जिलाधिकारी की अध्यक्षता में होता है। इस बार भी हुआ है लेकिन समिति के उलझे और घुमावदार नियमों की वजह से कोई शिकायत समिति तक नहीं पहुंचती। वर्ष 2020 से लेकर अब तक सिर्फ एक शिकायत समिति के पास आई थी। पांच वर्षों में महज एक शिकायत के पीछे समिति के उलझे नियम हैं। यदि किसी अभिभावक को फीस वृद्धि, किताब कॉपी के दाम या फिर कोई और कारण से स्कूल की शिकायत करनी है तो अभिभावक को पहले स्कूल में आपत्ति दर्ज करानी होगी। 15 दिन में कोई कार्रवाई नहीं होने पर अभिभावक समिति में शिकायत कर सकेगा। इसके बाद बैठक होगी, जिसमें अभिभावक को स्कूल के विरुद्ध सारे साक्ष्य उपलब्ध कराने होंगे।यही वजह है कि अभिभावक शिकायत करने से परहेज करते हैं।

पांच लाख रुपये तक जुर्माना, सभी स्कूलों के लिए नियम

जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि जिला शुल्क नियामन समिति है, उसका गठन कर लिया गया है। इसमें शिक्षक, अभिभावाक और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट को सदस्य भी नामित कर लिया गया है और डीआइओएस को रेप्सिन पीडब्लूडी शामिल हैं। स्कूल संचालक जो भी फीस तय करेंगे, उसे अपनी वेबसाइट पर 60 दिन पूर्व अपलोड करनी होगी और पैरेंट्स को फीस की रसीद भी देंगे। कोई भी स्कूल संचालक किसी विशेष दुकान से पैरेंट्स को कापी-किताब खरीदने के लिए बाध्य नहीं करेंगे। इसका उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान है। अगर कोई प्रभावित पक्ष है तो उसे पहले स्कूल प्रबंधक से शिकायत करनी होगी, जिसका निस्तारण 15 दिन में करना अनिवार्य होगा। इसके बाद समिति के पास या डीआईओएस के समक्ष शिकायत कर सकते हैं। इसमें यह प्रावधान है कि यदि प्रथम बार शिकायत की पुष्टि होती है तो वूसला गया अतिरिक्त शुल्क के साथ एक लाख रुपये जुर्माना देना होगा और यदि पुनरावृत्ति मिलती है तो पांच लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। यह नियम सभी तरह के स्कूलों के लिए हैं, स्कूल संचालक नियमों का पालन करें और शैक्षिक वातावरण को बेहतर बनाए रखें।

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