नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क
आइए आज आपको इतिहास के उस अध्याय में लेकर चलते हैं, जब अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए भारत के हर कोने में अलग अलग क्रांतिकारी आंदोलन चल रहे थे। आज हम आपको एक ऐसे की क्रांतिकारी की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनका नाम इतिहास की किताब में दब कर रह गया है। मगर उनकी लगाई हुई आग और उनके द्वारा शुरू गए उस आंदोलन को आज भी याद किया जाता है।
हम बात कर रहे हैं, उस क्रांतिकारी की जिसने आज़ाद हिंद फौज़ का गठन किया और उसकी बुनियाद रखी। लोग आज़ाद हिन्द फौज़ और सुभाष चंद्र बोस को जानते हैं मगर इसकी बुनियाद रखने वाले क्रांतिकारी रास बिहारी बोस से शायद ही परिचित होंगे।
महान क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने आज़ाद हिंद फौज का गठन किया और फिर उसकी कमान सुभाष चंद्र बोस के हाथ में थमा दी थी। रास बिहारी बोस भले ही ब्रिटिश सरकार के लिए काम कर रहे थे मगर वो हमेशा ही ब्रिटिश शासन और उनकी नीतियों के खिलाफ ही रहे थे।
परिचय
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के एक छोटे से गांव सुभालदा में रास बिहारी बोस का जन्म सन् 1886 में हुआ था। स्कूल के दिनों से ही वह क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर बहुत आकर्षित होते थे। बेहद कम उम्र में उन्होंने क्रूड बम को बनाने की विधि तक सीख ली थी। रास बिहारी बोस बचपन से पढ़ने के शौकीन थे। बंकिम चंद्र के उपन्यास आनंद मठ से ही उनके अंदर क्रांति का जज्बा पैदा हुआ था।
रास बिहारी बोस का क्रांतिकारी सफ़र
रास बिहारी बोस शुरू से ही बाघा और जतीन जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में रहे थे। मगर 1905 में बंगाल विभाजन के बाद बोस ने क्रांतिकारियों के मीटिंग्स में हिस्सा लेना तेज़ कर दिया। बंगाल विभाजन के बाद बोस के मन मे अंग्रेजों के प्रति और नफरत भर गई।
सन् 1912 में क्रांतिकारियों ने रासबिहारी बोस के नेतृत्व में उस समय के भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग को मारने की योजना बनाई। आपको बता दें कि दिसंबर 1912 में अंग्रेजों ने नई दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। बोस और उनके एक साथी बसंत कुमार दोनों ही उस कार्यक्रम में शामिल हुए थे। योजना के तहत इन दोनों युवा क्रांतिकारियों ने वायसराय लॉर्ड हार्डिंग को बम से उड़ाने की प्लानिंग की। हालांकि, बोस के बनाए उस बम से हार्डिंग केवल गंभीर रूप से जख्मी हुआ था। वायसराय के कत्ल की योजना नाकाम जरूर हुई थी मगर बोस और उनके साथी बसंत कुमार की इस बहादुरी की वजह से भारत से लेकर ग्रेट ब्रिटेन तक पूरा ब्रिटिश शासन हिल गया था। जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों पर शिकंजा कसने की हर संभव कोशिश की। मगर बोस अपनी चतुराई से ब्रिटिश सरकार से बच निकलने में कामयाब रहे थे।
अमेरिका और कनाडा में भी लहराया परचम
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रास बिहारी बोस ग़दर आंदोलन से भी जुड़े थे। इस आंदोलन की विफलता और इसके नेताओं की गिरफ़्तारी के बावजूद भी, बोस गिरफ़्तारी से बचने में एक बार फिर से कामयाब रहे थे।
सन् 1915 में रास विहारी बोस जापान चले गए थे और उन्हें पैन-एशियाई समूहों से समर्थन मिला। अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए उन्होंने कई बार अपनी पहचान और निवास स्थान बदला। आपको बता दें कि रासबिहारी जब जापान में थे, तब उन्होंने खुद को रबिंद्रनाथ टैगोर का दूर का रिश्तेदार बताया था। जापान में उन्होंने एक पत्रकार के तौर पर काम किया और फिर सन् 1923 में जापान की नागरिकता भी हासिल कर ली। बोस ने 28 से 30 मार्च, 1942 तक टोक्यो में एक सम्मेलन का आयोजन किया। उसी सम्मेलन में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना का फैसला लिया गया था, जो भविष्य में आज़ाद हिंद फौज़ बनी और जिसकी कमान बाद में सुभाष चंद्र बोस ने थामी थी।
ऐसे महान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी रास बिहारी बोस को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि।