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BPL के आंकडों को लेकर हकीकत और सरकारी दावे में जमीन आसमान का अंतर

रिव्यू ऑफ़ एग्रेरियन स्टडीज में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि देश में 24 फीसदी से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे का जीवन जीते हैं। यह रिपोर्ट सरकारी आंकडों से काफी अलग है।

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Suraj Kumar
BPL
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नई दिल्‍ली, वाईबीएन नेटवर्क। 

भारत पूरी दुनिया में एक उभरता हुआ देश है। देश की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो रहा है। सरकार ने कुछ समय पहले गरीबी को लेकर कुछ आंकडे जारी किए थे। इसमें बताया गया था कि देश में सिर्फ 5 फीसदी लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। हाल ही इसको लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसके आंकडों चौकाने वाले हैं। 

सरकारी आंकड़ों को बताया गलत 

रिव्यू ऑफ़ एग्रेरियन स्टडीज में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि देश में 24 फीसदी से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे का जीवन जीते हैं। इसमें यह दावा किया है कि सरकार गरीबी का आंकडा छुपा रही है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने Household Consumption Expenditure Survey (HCES) 2022 -23 के साथ-साथ सीए सेतु, एलटी अभिनव सूर्या और सीए रूथु रंगराजन समिति का भी सहारा लिया। ये समिति भोजन, आवास, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की बढती लागतों को ध्यान में रखती है। 

नीति आयोग के आंकडे़ 

देश में गरीबी को लेकर फरवरी 2024 में इसको लेकर आंकडे जारी किए थे। भारत सरकार ने नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम के साथ एचसीईएस 2022-23 से एक फैक्टशीट जारी किया था। इसमें बताया गया था कि गरीब लोगों की आबादी घटकर सिर्फ 5% रह गई है। 2011-12 की गरीबी रेखा से Inflation-adjusted  आंकड़ों का उपयोग करते हुए अन्य बनाई गई, जिसमें अनुमान लगाया गया था कि गरीबी घटकर 10.8% रह गई है।  हालाँकि, सरकार की इसके लिए आलोचना भी की जा रही है कि वे आर्थिक स्थितियों, सर्वेक्षण विधियों और उपभोग पैटर्न में बदलावों को ध्यान में नहीं रखते हैं। 

भारत में गरीबी की स्थिति 

भारत में आज भी लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आंकडों के अनुसार देश में गरीबी से ऊपर रहने के लिए कम से कम 2,515 रुपये प्रति माह खर्च करने की आवश्यकता है। शहरी क्षेत्रों में जीवनयापन थोडा मुश्किल है, यहां पर न्यूनतम आवश्यकता 3,639 रुपये प्रति माह पाई गई। ग्रामीण क्षेत्रों में 27.4% लोग और शहरों में 23.7% लोग अभी भी गरीबी में जी रहे हैं। जब इन्हें मिला दिया जाता है, तो इसका मतलब है कि भारत की कुल आबादी का 26.4% हिस्सा भोजन, आवास, स्वास्थ्य सेवा और परिवहन जैसे बुनियादी खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं कर पा रही है। यह रिपोर्ट पूरी तरह से सरकारी आंकडों को झूंठा साबित करती है। 

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