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श्रीमद भागवत कथा में तीन ऋण के बारे में विस्तार से वर्णन

सुदृढ़ शक्ति फाउंडेशन द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा में आज आचार्य विमल कृष्ण महाराज ने मनुष्य के तीनो ऋण के बारे में विस्तार से बताया। मनुष्य के तीन ऋण हैं - देव ऋण, ऋषि ऋण, और पितृ ऋण।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

बरेली। सुदृढ़ शक्ति फाउंडेशन द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा में आज आचार्य विमल कृष्ण महाराज ने मनुष्य के तीनो ऋण के बारे में  विस्तार से बताया। कथा व्यास ने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक मनुष्य के तीन ऋण हैं - देव ऋण, ऋषि ऋण, और पितृ ऋण।  इन तीनों ऋणों से मुक्त होना मनुष्य का अहम कर्तव्य है।

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ये तीनों ऋण क्यों होते हैं: 

देव ऋण - देवी-देवताओं के प्रति ऋण और ऋषि ऋण - शिक्षकों और गुरुओं के प्रति ऋण तथा पितृ ऋण - पूर्वजों के प्रति ऋण, इन ऋणों से मुक्त होने का तरीका: अपने माता-पिता की सेवा करके और उन्हें दुख न देकर पितृ ऋण से मुक्त हुआ जा सकता है। ऋषियों ने तप करके परमात्मा को जाना और हमें उनकी राह दिखाई। इसलिए, नित्य पंचयाज्ञ करना चाहिए। इन तीनों ऋणों को चुकाने से कई बुरे कर्मों के फल भोग से मुक्ति मिलती है। भारतीय संस्कृति के मुताबिक, मनुष्य जन्म लेते ही अपने देवों, ऋषियों, और पितरों के प्रति ऋणी हो जाता है। हिंदू धर्म में ऋण की अवधारणा है। और किसी व्यक्ति का नैतिक और आध्यात्मिक कर्तव्य है। कि वह अपने जीवन में मोक्ष प्राप्त करने के लिए अपने ऋण को चुकाए।

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कथा के मुख्य यजमान कुलदीप खन्ना एवं अनिल दीक्षित

कथा के मुख्य यजमान कुलदीप खन्ना एवं अनिल दीक्षित थे। इस अवसर पर नागेश मिश्रा विवेक मिश्रा प्रियांशु संगधार बंशीधर पांडे सहित अन्य नागरिक मौजूद थे। कथा की मुख्य यजमान डॉ ऋचा दीक्षित ने कहा कि देवियों से अनुरोध है। कि अधिक से अधिक संख्या में अपनी बेटियों को लेकर पहुंचे।

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