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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
शिक्षा हर बच्चे का मूलभूत हक होने के बावजूद इसका तेजी से व्यावसायिकरण हो रहा है। शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले स्कूल अभिभावकों के आर्थिक शोषण का केंद्र बनते जा रहे हैं। बढ़ती फीस, अनावश्यक खर्चों का बोझ और पारदर्शिता की कमी अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ रही है। बच्चों के भविष्य की खातिर अभिभावक भी आवाज उठाने के बजाय हर जुल्म खामोशी से सहन कर रहे हैं। उनकी खामोशी इनकी मनमानी को और बढ़ावा दे रही है।
निजी स्कूलों में लूट का सिलसिला केवल फीस तक सीमित नहीं है बल्कि हर चीज पर इनका कमीशन तय है। भले एक ग्रुप फोटो ही क्यों न हो, जो काम बाजार में 50 रुपये में हो जाता है, उसका शुल्क स्कूलों में तीन से चार गुना होता है। अभिभावकों से हर साल किताबों, ड्रेस और अन्य गतिविधियों के नाम पर मनमाने ढंग से पैसे वसूले जाते हैं सो अलग।
एनसीईआरटी की एक सामान्य किताब, जिसकी बाजार में कीमत 65 रुपये होती है, स्कूल उसकी जगह दूसरी किताब के 4-5 सौ रुपये तक में कोर्स के नाम पर थोपते हैं। यह सबकुछ भी उसी दुकान से मिलता है, जो स्कूल प्रबंधन ने निर्धारित करता है। स्कूल भी इन्हीं दुकानों से सामान खरीदने का दबाव बनाते है ताकि एकाधिकार स्थापित किया जा सके।
कोरोना काल में सभी गतिविधियां बंद थी, स्कूल में पढ़ाई भी नहीं हो रही थी, बावजूद इसके अभिभावकों से फीस वसूली का सिलसिला जारी रहा। लॉकडाउन की वजह से लोगों की कमाई का जरिया बंद हो चुका था। कंपनियां वेतन में कटौती कर रही थीं और लोग नौकरी से निकाले जा रहे थे।
ऐसे संकट के दौर में भी इन स्कूलों की मनमानी बंद नहीं हुई। मजबूरन लोगों ने निजी स्कूल से बच्चों के नाम कटवाकर उनका दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया। यह पहली बार था जब सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ी।
एक रिपोर्ट के अनुसार बरेली में करीब 7,000 छात्रों ने निजी स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया था क्योंकि अभिभावक निजी स्कूलों का खर्च उठा नहीं पा रहे थे, इसके बाद भी इन स्कूलों ने अपनी नीतियों में सुधार करने के बजाय शोषण को और बढ़ावा दिया।
निजी स्कूलों की मनमानी का सबसे बड़ा शिकार मध्यम वर्गीय परिवार बन रहे हैं। ये परिवार अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहता है, हर महीने हजारों रुपये फीस, ट्रांसपोर्ट और अतिरिक्त गतिविधियों पर खर्च करने को मजबूर होते हैं। कई बार तो फीस जमा न होने पर बच्चों को स्कूल में बंधक तक बना लिया जाता है।
मई 2022 में बरेली के इज्जतनगर थाना क्षेत्र में 35 बच्चों को फीस जमा न होने पर कक्षा में बंद कर दिया गया। बच्चे घर नहीं पहुंचे तो अभिभावक ने स्कूल जाकर पता किया तो इसकी जानकारी हुई। अभिभावकों ने हंगामा किया तो पुलिस मौके पर पहुंची और बच्चों को बंधनमुक्त कराया लेकिन मामले में न तो प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई की गई न ही किसी अभिभावक ने शिकायत करने की जहमत उठाई।
हाल ही में आंवला सांसद नीरज मौर्य ने लोकसभा में इस मुद्दे को उठाया था और निजी स्कूलों में हो रहे भ्रष्टाचार पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने सरकार से Education System में पारदर्शिता लाने और अभिभावकों पर अनावश्यक बोझ डालने वाले स्कूलों पर सख्त कार्रवाई करने की मांग की थी। हालांकि सरकारी हस्तक्षेप ही इस समस्या का समाधान नहीं है, जब तक समाज जागरूक होकर इनके खिलाफ आवाज नहीं उठाएगा यह मनमानी बंद नहीं होने वाली।
इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को कुछ ठोस नियम बनाने होंगे। साथ ही इनका सख्ती से पालन भी कराना होगा। सरकार को निजी स्कूलों की फीस पर एक सीमा तय करनी चाहिए ताकि मनमानी पर रोक लगे। स्कूलों को अपनी आय-व्यय का हिसाब सार्वजनिक करना अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसके अलावा सरकार को सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार कर निजी स्कूलों पर निर्भरता कम करने की जरूरत है। अभिभावकों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा ताकि वे शोषण के खिलाफ खड़े हो सकें।
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