Advertisment

निजी स्कूलों की बढ़ती मनमानी... और अभिभावकों की लाचारी

निजी स्कूलों की मनमानी साल दर साल बढ़ती जा रही है। बात चाहे मनमानी फीस बढ़ोतरी की हो या किताबों, ड्रेस और अन्य चीजों पर कमीशनखोरी की। अभिभावकों की लाचारी यह कि वह चुपचाप खुद को लुटता देख रहे हैं मगर बच्चों के भविष्य की खातिर विरोध भी नहीं कर पा रहे।

author-image
KP Singh
book store
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

बरेली, वाईबीएन संवाददाता

निजी स्कूलों की मनमानी साल दर साल बढ़ती जा रही है। बात चाहे मनमानी फीस बढ़ोतरी की हो या किताबों, ड्रेस और अन्य चीजों पर कमीशनखोरी की। अभिभावकों की लाचारी यह कि वह चुपचाप खुद को लुटता देख रहे हैं मगर बच्चों के भविष्य की खातिर विरोध भी नहीं कर पा रहे। इसी का फायदा उठाकर स्कूल मनमानी कर रहे हैं।

एक अप्रैल से स्कूलों का नया सत्र शुरू होने जा रहा है, इसके साथ ही हर साल पढ़ाई के बढ़ते खर्च की वजह से उनकी अभिभावकों की टेंशन भी बढ़ती जा रही है, लेकिन बच्चों के भविष्य की खातिर जैसे-तैसे वे यह खर्च उठा रहे हैं। महीने का अंत होने के बावजूद इस समय किताबों और स्कूल ड्रेस की दुकानों पर अभिभावकों की भीड़ लगी हुई।

बरेली में बृहस्पतिवार को सप्ताहिक अवकाश के दिन ज्यादातर किताबों की दुकानें खुली हुईं थीं और वहां अभिभावकों की भीड़ लगी हुई थी। दुकानदारों ने स्कूल और क्लास के हिसाब से पहले ही सेट बनाकर तैयार कर रखे हैं, इनमें कॉपी, किताबों के साथ ही स्टेशनरी का हर छोटे से छोटा सामान मौजूद है। यहां तक कि कॉपी-किताबों पर चढ़ाने के लिए कवर भी दुकानदर सेट के साथ ही दे रहे हैं।

book stall
किताबों की दुकान पर कोर्स खरीदने के लिए लगी अभिभावकों की भीड़।

 दो से चार हजार रुपये तक बढ़ी स्कूल फीस

Advertisment

नए सत्र में निजी स्कूलों ने फीस में भी बढ़ोतरी कर दी है। पहले जो बढ़ोतरी सालना 500 से 1000 रुपये के बीच होती थी इस बार दो से चार हजार रुपये तक की गई है, इससे अभिभावकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, लेकिन उनकी मजबूरी यह है अगर बच्चे को पढ़ाना है तो फीस तो भरनी ही होगी। हालांकि शहर में ऐसे भी कई स्कूल हैं, जिनकी फीस सालाना लाखों रुपये में है।

हर चीज पर कमीशन और दुकान तय

निजी स्कूलों की किताबें और ड्रेस किस दुकान पर मिलेगी यह सब पहले से तय होता है। दुकानदार भी मनमाना सामान अभिभावकों पर थोपता है। सूत्रों के मुताबिक ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन दुकानदारों से स्कूल प्रबंधन 40 से 50 प्रतिशत तक कमीशन लेता है, जो दुकानदार जितना ज्यादा कमीशन देता है स्कूल उसके साथ ही गठबंधन करता है। दुकानदारों और स्कूल प्रबंधन के बीच रिजल्ट घोषित होने से पहले ही यह सौदेबाजी हो जाती है। इसके बाद स्कूल रिजल्ट के साथ ही अभिभावकों को पर्चा थमा देते हैं कि किताबें और ड्रेस किस दुकान से लेनी हैं।

ऐसे करते हैं कोर्स में खेल : किताब वही... बस जिल्द नई

वैसे तो सीबीएसई में एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाने का नियम है लेकिन निजी स्कूल एक-दो किताबें ही अपने सिलेबस में एनसीईआरटी की रखते हैं बाकि प्राइवेज पब्लिशर्स की होती है। क्लास बदलने के बाद बच्चे किताबों का आदान-प्रदान न कर सकें, इसके लिए पब्लिशर्स बदल दिए जाते हैं। किताबों में चेप्टर तो अमूमन वही होते हैं लेकिन उनका क्रम बदल जाता है। 

Advertisment

इसी तरह छुटपुट बदलाव ड्रेस में भी किए जाते हैं। इतना ही नहीं कुछ स्कूलों ने तो विषय के हिसाब से कॉपियों का रंग तय कर रखा है। उदाहरण के तौर पर यदि विज्ञान की कॉपी का रंग नीला तय कर रखा है तो बच्चे को उसी रंग की कॉपी लानी होगी वरना बच्चे को टीचर की डांट खानी पड़ेगी। कई स्कूलों में वही कॉपी चलती है, जिस पर स्कूल का नाम लिखा होता है।

यह भी पढ़ें- Bareilly News : कैंसर से जीती मगर पति की बेवफाई से हारी शबाना, सुसाइड नोट में लिखी पति की करतूत

bareilly bareilly news Education education reforms
Advertisment
Advertisment