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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
बरेली। बांस बरेली के नाम से पहचाने जाने वाले इस जिले के किसानों का बांस की खेती से मोहभंग हो गया है, जबकि इसकी खेती में मुनाफा ही मुनाफा है। बांस से तैयार होने वाले उत्पादों की दुनिया भर में मांग है।
राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत बरेली के विकास भवन सभागार में हुई कार्यशाला में भी इस विषय पर चर्चा हुई। हरा सोना कहे जाने वाले बांस की खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया ताकि किसान इससे अच्छा मुनाफा कमा सकें। कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि डीएम रविंद्र कुमार और डीएफओ दीक्षा भंडारी मौजूद रहीं।
कार्यक्रम में बांस की खेती के अलावा ओडीओपी, मुख्यमंत्री युवा उद्यमी, पीएम विश्वकर्मा, नेशनल बैम्बू मिशन आदि योजनाओं के बारे में जानकारी दी गई। बताया गया कि इन योजनाओं के जरिये स्वयं सहायता समूहों और किसान अपनी अजीविका में बढ़ोतरी कर सकते हैं। जिला उद्यान अधिकारी को बांस की पौध की जानकारी उपायुक्त एनआरएलएम और उप कृषि निदेशक को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए।
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पीलीभीत डीएफओ भारत कुमार डीके ने बताया कि भारत दूसरा सबसे बड़ा बांस का उत्पादक है लेकिन यह अपना ज्यादातर बांस दूसरे देशों को निर्यात कर देता है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में उप्र में बांस का रकबा करीब 1832 वर्ग किमी है। यह एक पर्यावरणीय पौधा है और इसमें गर्मी को अधिक अवशोषण की क्षमता होती है। बांस से कई प्रकार के उत्पाद और दवाइयां भी बनती हैं। यदि भारत में टैक्सटाइल, फर्नीचर, मेडिसिन आदि उद्योगों में बांस को बढ़ावा दिया जाए तो इसमें काफी रोजगार के अवसर हैं। अंत में बांस से बनी साड़ी, तौलिया, नेपकिन आदि को दिखाया गया।
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प्रयागराज के फॉरेस्ट रिसर्च सेंटर फॉर रिहैबिलिटेशन की दर्षिता रावत ने बांस को हरा सोना बताया। उन्होंने कहा कि बांस की लगभग 136 प्रजातियां हैं। भारत में पाई जाने वाली विभिन्न प्रजातियों के बांस को दूसरे देशों को निर्यात किया जाता है। यह अन्य वृक्षों की तुलना में 35 प्रतिशत ऑक्सीजन पर्यावरण में देता है। 18 सितंबर को विश्व बैम्बू दिवस मनाया जाता है। उन्होंने बांस की विभिन्न प्रजातियों को तैयार करने, उनके उत्पादन के विषय में तकनीकी जानकारी दी।
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रुहेलखंड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. ललित कुमार पांडेय ने कहा कि बांस सबसे अधिक तेजी से वृद्धि करने वाली प्रजाति है। यह एक दिन में 89 से 100 सेमी तक बढ़ जाता है। विश्व के अधिकांश देशों ने बांस के उत्पादन पर पॉलिसी तैयार कर ली है लेकिन भारत में कोई पॉलिसी नहीं है, इस कारण भारत का अधिकांश बांस दूसरे देशों को निर्यात कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि रुहेलखंड यूनिवर्सिटी में बांस के पौधों को लगाया गया है, जिससे वहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स अन्य स्थानों से काफी अच्छा है। उन्होंने बांस उत्पादन पर विस्तृत तकनीकी जानकारी दी।
प्रगतिशील किसान डॉ. अनिल कुमार साहनी ने कहा कि बांस को जैविक खेती से तैयार किया जाए तो यह बहुत उपयोगी है। किसान भाई अपने खेतों के किनारे बाढ़ के रूप में इसे लगा सकते हैं, जिससे हवा का दबाव कम होगा। इसकी खेती से क्षेत्र का वाटर लेवल तेजी से बढ़ता है। बांस से कॉर्बन क्रेडिट के माध्यम से भी लाभ लिया जा सकता है। काले बांस का उपयोग फर्नीचर, अगरबत्ती आदि में किया जाता है। जिले में प्रस्तावित टेक्सटाइल पार्क में बांस के उत्पादन को बढ़ावा दिया सकता है।