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बरेली। समता योग आश्रम के 67वें वार्षिक समता सत्संग सम्मेलन में तीन विचार प्रस्तुत किए गए, पहला विचार हल्द्वानी के विकास सचदेवा, दूसरा बरेली के मनोज मिश्रा और तीसरा शिवनाथ अग्रवाल ने किया।
विकास सचदेवा ने कहा कि आज मानुष का सही स्वरूप ही बिगड़ गया है। मानुष उसे कहना चाहिए जिसका शुद्ध विचार हो, पाप और पुण्य को पहचाने। झूठ न बोले, चुगली न करे, किसी की निंदा न करे। ईश्वरीय मार्ग पर चलने के लिए सर्वप्रथम मानुषपन के सही स्वरूप को जानना और इस पर चलना जरूरी है।
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मनोज मिश्रा ने कहा कि कर्म की गति बड़ी गहन है। सभी को अपनी करनी का फल मिलता है, कोई भी नहीं छूट सकता। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा। इसलिए सभी मानुष को प्रत्येक कर्म बहुत ही सोच समझकर करना चाहिए। प्रारब्ध कर्म, संचित कर्म, क्रियामोड़ कर्म को सही रूप में विचार करना। जो निष्काम कर्म की साधना करता है वही सर्वोत्तम है। उन्होंने कहा कि गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन अर्थात कर्म करने में तेरा अधिकार है फल में कदापि नहीं है। इसलिए मानुष को कर्म के सही स्वरूप को समझकर ईश्वर को प्राप्त करने का यत्न करना चाहिए जो मनुष्य जन्म का लक्ष्य है।
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शिवनाथ अग्रवाल ने कहा कि प्रारब्ध के आधीन मनुष्य मजबूर है लकिन कर्म करने के लिए स्वतंत्र है, इसके साथ-साथ कर्मों के फल के लिए मजबूर भी है। जैसे मनुष्य कर्म करता है वैसे ही उसका स्वभाव बनता जाता है और अंत में गहरे संस्कार का रूप धारण कर लेता है और उसी संस्कार के वशीभूत होकर ये उन सभी कर्मों को करने पर मजबूर होता है जिन कर्मों के लिए वह करना भी नहीं चाहता है।
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उन्होंने कहा कि इस बेचैनी को दूर करने के लिए शास्त्रों में चैन का रास्ता सुकर्म ही बताया गया है अर्थात तू अच्छे कर्म कर यानि तू ईश्वर के लिए कर्म कर, जिससे तेरा कल्याण होगा। और ईश्वर का सिमरन कर जिससे तेरे गलत संस्कार मिट जाएंगे और जन्म जन्मांतर के लिए ईश्वर में ही लीन हो जाएगा। संचालन मनोज मिश्रा ने किया। सत्संग की समाप्ति पर सभी ने गुरु लंगर ग्रहण किया।