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Ramadan 2025 : मुसलमानों ने मस्जिद और दरगाहों में अदा की नमाज, एक-दूसरे को पेश की रमजान की मुबारकबाद

रमजान उल मुकद्दस का चांद शनिवार को नजर आने के बाद रविवार से रमजान का महीना शुरू हो गया। पहले रोजे पर बड़ी संख्या में मस्जिदों और दरगाह में नमाज पेश की गई। शाहदाना वली वेलफेयर सोसायटी ने मुस्लिम भाइयों और बहनों को रमजान की दिली मुबारकबाद पेश की। 

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KP Singh
रमजान माह।

रमजान माह।

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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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बरेलीरमजान उल मुकद्दस का चांद शनिवार को नजर आने के बाद रविवार से रमजान का पवित्र महीना शुरू हो गया। इसके साथ ही लोगों ने सहरी और इफ्तार की तैयारी शुरू कर दी। रविवार को मुसलमानों ने पहला रोजा रखा। इस दौरान बड़ी संख्या में रोजेदारों ने मस्जिदों और दरगाहों में नमाज अदा कर देश और कौम की तरक्की की दुआ की। शाहदाना वली वेलफेयर सोसायटी ने मुस्लिम भाइयों और बहनों को रमजान की दिली मुबारकबाद पेश की। 

सोसायटी की ओर से कहा गया कि यह महीना अल्लाह की नेमतों और बरकतों से भरा हुआ है। यह सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं, बल्कि अपने ईमान को मजबूत करने, अल्लाह की इबादत में मशगूल रहने और गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करने का बेहतरीन वक्त है। यही वह पाक महीना है जिसमें कुरआन मजीद नाजिल किया गया और जिसमें हर नेकी का अज्र कई गुना बढ़ा दिया जाता है। यह महीना हमें सब्र, तकवा और इबादत की तरफ रुझान देता है।

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रमजान बरकतों और रहमतों का महीना

रमजान में हर रोजेदार के लिए अल्लाह की तरफ से बेशुमार रहमतें बरसती हैं। रमजान में रोजे रखने से इंसान के जिस्म और रूह दोनों पाक होते हैं। यह इंसान को भूख और प्यास सहन करने की ताकत देता है और गरीबों के हालात का एहसास दिलाता है। इसी महीने में शबे-कद्र जैसी मुबारक रात आती है, जो हजार महीनों से बेहतर मानी जाती है।

जानें इफ्तार और सहरी का समय

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इफ्तार - सुन्नी : 6:17 बजे शाम, शिया : 6:26 बजे शाम
सहरी- 3 मार्च सुन्नी 5:12 बजे सुबह, शिया 5:04 बजे सुबह

रोजे और तरावीह की फजीलत

रोजा सिर्फ भूख-प्यास सहने का नाम नहीं, बल्कि यह दिल और रूह की पाकीजगी का जरिया है। हदीस शरीफ में आता है कि जो शख्स रमजान में ईमान और इखलास के साथ रोजा रखता है, उसके तमाम पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। इसी तरह तरावीह की नमाज भी बहुत अहमियत रखती है। यह रात की नमाज है, जिसमें कुरआन की तिलावत होती है और अल्लाह के नजदीक होने का बेहतरीन मौका मिलता है।

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रमजानन सिर्फ खुदा की इबादत और रोजे रखने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें इंसानियत की खिदमत करने का भी सबक देता है। इस मौके पर हमें गरीबों, यतीमों और जरूरतमंदों का खास ख्याल रखना चाहिए, दान-दक्षिणा और जकात अदा करनी चाहिए और जो लोग तंगी में हैं, उनकी मदद करनी चाहिए। हदीस में आता है कि जो शख्स किसी रोजेदार को इफ्तार करवाता है, उसे भी उसी रोजे का अज्र मिलता है।

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