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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
बरेली। शहर के प्राचीनतम एवं भव्यतम बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छटवें दिवस कथा व्यास पंडित देवेंद्र उपाध्याय कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कथा सुनाई। किस तरह से सुदामा के तीन मुट्ठी चावल खाकर भगवान कृष्ण ने उनको निर्धन से धनवान बना दिया। इस बात को कथा व्यास ने भक्तों को बताया। यह कथा सुनकर पंडाल में उपस्थित भक्त भाव विभोर हो गए और पूरा पंडाल तालिया की गड़बड़ाहट से गूंज उठा।
श्रीमद्भागवताचार्य पूज्य पंडित देवेंद्र उपाध्याय ने बताया कि पूज्य के द्वारा अपूज्य की पूजा नहीं होती है।यह अनुचित है ,जैसे आप अपने घर में सबसे बड़े और आप अपने घर के सबसे छोटे सदस्य को प्रणाम नहीं करेंगे। यदि करते हैं तो अनुचित है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण श्री कृष्ण सर्वोपरि हैं। उनके सामने इंद्र बहुत छोटे है। इसलिए श्री कृष्ण ने इंद्र की पूजा का विरोध किया था। इंद्र के स्थान पर नारायण स्वरूप गोवर्धन गिरिराज की पूजा कराई ।जिसे देख इंद्र को अत्यंत क्रोध हुआ, परंतु जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि सामने स्वयं परमात्मा हैं तो उन्होने अपनी गलती स्वीकार की।
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कथाव्यास ने भगवान की गोपी लीला के बारे में बताते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को वचन दिया था कि मैं तुम्हारे साथ शरद पूर्णिमा की रात्रि के समय रास बिहार करूंगा। एक दिन वह पावन समय आया, जब भगवान ने अपनी वेणु का वादन किया। वह वेणु केवल उन गोपियों को सुनाई पड़ी जिनको भगवान ने वचन दिया। वेणु नाद सुन कर के गोपियां के आने पर lभगवान ने उनके साथ रास बिहार किया और रासलीला के माध्यम से कामदेव के अनुमान को भी चूर चूर किया।
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कथाव्यास कहते हैं कि इसका अभिप्राय है कि जो जीव परमात्मा के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होता है। केवल वही प्रभु कृपा का पात्र हो सकता है। वही प्रभु की बंसी को सुन पाता है। अतः हमें परमात्मा के प्रति लगन लगाये रहना चाहिये। कथा व्यास कहते हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण ने गुरूकुल लीला में गुरु माता द्वारा दिए गये अपने बालसखा सुदामा जी के तीन मुट्ठी चने खा लेते हैं। वही सुदामा जब द्वारकाधीश श्री कृष्ण के पास जाते हैं। तब बालसखा के प्रेमवश द्वार पर दौड़े चले आते हैं। बालसखा के पैरों को अपने हाथों से धोते हैं तथा बालसखा को धन धान्य से पूर्ण कर देते हैं।
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कथा व्यास ने बताया कि भक्तों के कष्टों के निवारण के लिए अवतार लेते हैं । भक्त जैसे परमात्मा का ही अंश होते हैं तथा उनको जरा सी पीढा होने पर व्याकुल हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण के 16 हजार 108 विवाह हुए थे।जिसमें 8 जो प्रमुख रानियां है। वह 8 प्रकार की प्रकृति हैं । सौ उपनिषद और 16000 उपासना कांड के मंत्र ही पत्नी के रूप में आई।
कथा के उपरांत बड़ी संख्या में उपस्थित भक्तों ने श्रीमद्भागवत जी की आरती की तथा प्रसाद वितरण किया गया। कथा में मंदिर कमेटी के प्रताप चंद्र सेठ, मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल, सुभाष मेहरा तथा हरिओम अग्रवाल का मुख्य सहयोग रहा।