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नई दिल्ली , वाईबीएन डेस्क। बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी गलियारों में सुगबुगाहट तेज हो गई है । सत्तारूढ़ एनडीए जहां गठबंधन में विरोधी सुर बढ़ने से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुट गया है। वहीं, विपक्षी INDI गठबंधन में भी सरगर्मी तेज हो गई है। इस सबके बीच बिहार में कांग्रेस एक ऐसी पार्टी नजर आ रही है जो अपने अस्तित्व को लेकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD ) के फैसले पर निर्भर हो गई है। बिहार के लिए कांग्रेस के पास न तो कोई ठोस रोडमैप दिख रहा है, न ही मजबूत नेतृत्व ।
आलम यह है कि बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन राजद –कांग्रेस की सुनने को तैयार नहीं है। ऐसे में अगर समय रहते सीटों के बंटवारे पर राजद के साथ सहमति नहीं बनी तो , हर गुजरते दिन के साथ कांग्रेस बिहार में और कमजोर होती नजर आएगी।
कांग्रेस मांग रही पहले जितनी सीटें
असल में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर बिहार में राजद और कांग्रेस के बीच सीटों के गठबंधन को लेकर कई बार बैठकें हो गई हैं । जहां कांग्रेस पिछली बार की तरह ही 70 सीटों की मांग पर अड़ी है , वहीं राजद पिछली बार के कांग्रेस के प्रदर्शन को देखते हुए सीटों को घटाने पर अड़ी है । यही कारण है कि कई दौर की बैठकें होने के बावजूद अभी तक दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर अभी तक कोई सांझा बयान जारी नहीं हो पाया है । कांग्रेस चाहती है कि वह समय रहते सीटों के बंटवारे को कर ले ताकि समय से अपना चुनावी अभियान शुरू करे। हालांकि बिहार में हर दिन बदलते सियासी समीकरणों के बीच राजद, कांग्रेस को उनकी मर्जी के अनुसार सीट देने के मुद्दे पर और कंजूस होती दिख रही है। राहुल गांधी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की तेजस्वी यादव के वन-टू-वन बैठक हो चुकी हैं, लेकिन कुछ ठोस निकल कर नहीं आया है।
क्या राहुल को दिखने लगी है हार
अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी अपनी आरोप – प्रत्यारोप की राजनीति और बिहार में कमजोर होते संगठन को फिर से मजबूती के साथ सत्ता के करीब ले जा पाएंगे। असल में ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि गत शनिवार को एक बार फिर से राहुल गांधी ने अपने आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के तहत महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है । उनका कहना है कि एक सुनियोजित साजिश के तहत महाराष्ट्र चुनावों में हेराफेरी की गई और अब आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए भी भाजपा ऐसी ही साजिश करती नजर आएगी। हालांकि उनके इस बयान पर भाजपा समेत एनडीए के कई दलों ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि राहुल गांधी को अभी से बिहार में अपनी हार दिखने लगी है , इसलिए अभी से इस तरह के बयान दे रहे हैं। असल में बिहार में कांग्रेस हाशिए पर जा चुकी है और अब राजद के फैसले पर उनका राजनीतिक वजूद बचा है।
क्या है बिहार को लेकर कांग्रेस का मास्टरप्लान
अगर बात बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस या राहुल गांधी के किसी मास्टर प्लान की करें तो पार्टी ने पिछले दिनों कुछ संगठनात्मक बदलाव तो किए हैं । हालांकि पार्टी की जमीनी स्तर पर पकड़ बनाती नजर नहीं आ रही है। कांग्रेस ने चुनावों से पहले बिहार के प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी अब राजेश कुमार को दी गई है , वहीं प्रभारी कृष्णा अल्लावरू को बनाया गया है। सीटों के बंटवारे को लेकर जो रणनीति बनाई है ।
असल में कांग्रेस ने बिहार में संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के लिए जिला कांग्रेस समितियों (DCC) की भूमिका को बढ़ावा दिया है। इतना ही नहीं टिकट बंटवारे में अब जिला स्तर के नेताओं को शामिल किए जाने का प्लान बनाया गया है। इतना ही नहीं पार्टी ने अपने संविधान में संशोधन करके संगठन के 50% पद युवाओं को और 50% अनुसूचित जातियों, पिछड़ी जातियों और आदिवासियों को आवंटित करने का निर्णय लिया है । लेकिन इस सबके बीच सवाल वही उठता है आखिर कांग्रेस किन मुद्दों के साथ जनता के बीच जाने वाली है, इसे लेकर कोई ठोस रोडमैप अभी कांग्रेस के पास नजर नहीं आ रहा है । ऐसे में फिर बिहार चुनाव कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए एक बड़ा सवाल बनने वाले हैं।
अगर मन-मुताबिक सीट नहीं मिली तो
इस सबसे इतर, सियासी गलियारों में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर तेजस्वी यादव , जो बिहार में विपक्ष का मुख्य चेहरा हैं, कांग्रेस को उनके मनमुताबिक सीट नहीं देते, तो कांग्रेस क्या करेगी। क्या कांग्रेस इस स्थिति में है कि वह वह बिहार में मन मुताबिक सीट नहीं मिलने पर सभी सीटों पर अकेली चुनावी मैदान में उतरेगी । अगर इस सवाल का जवाब पार्टी के ही नेताओं से मांग लिया जाए , तो यह चौंकाने वाला नहीं होगा कि पार्टी के नेता ही न बोल देंगे । हाल में पार्टी में व्यापक फेरबदल किए गए हैं , जिससे कुछ लोग नाराज भी बताए जा रहे हैं । आशंका है कि ये लोग मौका देखकर इधर-उधर भी जा सकते हैं। बहरहाल, मौजूदा हालातों पर नजर डालें तो ये बात साफ नजर आ रही है कि बिहार में इस समय कांग्रेस, राजद के फैसले पर अपनी आगे की रणनीति और राजनीति की बिसात बिछाए बैठी है। अगर राजद ने कांग्रेस को मनमुताबिक सीट नहीं दीं , तो कांग्रेस को अपने लिए एक नई रणनीति बनाकर आगे बढ़ना होगा।
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