/young-bharat-news/media/media_files/2025/05/16/KburkfMpyDtBbe3hocih.jpeg)
कार्यक्रम स्थल पर जाते राहुल गांधी
राजनीतिक मायने
राहुल गांधी के बार-बार बिहार दौरे का पहला और सबसे बड़ा संकेत यह है कि कांग्रेस राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने को लेकर अत्यंत गंभीर है। बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, राहुल गांधी और कांग्रेस की अगुआई वाला महागठबंधन (जिसमें राजद और वाम दल भी शामिल हैं) एनडीए (भाजपा-जदयू) को चुनौती देने की तैयारी में जुटा है। उनके 15 मई 2025 को दरभंगा में 'शिक्षा न्याय संवाद' कार्यक्रम और गया में कार्यकर्ताओं से मुलाकात जैसे कदम शिक्षा, बेरोजगारी और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को उठाने की रणनीति का हिस्सा हैं। ये मुद्दे बिहार के युवाओं और छात्रों के बीच गहरी पैठ रखते हैं और कांग्रेस इन्हें भुनाने की कोशिश कर रही है।
/young-bharat-news/media/media_files/2025/05/16/0h1Jv6wTRBxj1soF7Fcd.jpeg)
दूसरा, राहुल गांधी का दलित, महादलित, और अति पिछड़ा वर्ग पर फोकस बिहार की जातिगत राजनीति में कांग्रेस की नई रणनीति को दर्शाता है। बिहार में दलित और महादलित आबादी करीब 14% और अति पिछड़ा वर्ग 36% है। राहुल गांधी ने पटना में 'फुले' फिल्म देखकर और दरभंगा में SC/ST समुदाय के लिए आरक्षण की मांग उठाकर इस वर्ग को लुभाने की कोशिश की है। इसके अलावा, जातिगत जनगणना को लेकर उनकी सक्रियता कुछ और नहीं बिहार के सामाजिक समीकरणों को कांग्रेस के पक्ष में करने का प्रयास है। पहले से विरोध करने वाली भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने भी अब जातिगत जनगणना को स्वीकार कार कर लिया है। राजनीतिक गलियारे में इस मुद्दे पर केंद्र के कदम को राहुल की जीत माना जा रहा है।
कांग्रेस को राजनीतिक लाभ की संभावना
/young-bharat-news/media/media_files/2025/05/16/DwefnptSfPegcvuqI0Ge.jpeg)
दूसरा, महागठबंधन में सीट बंटवारा: 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और 19 सीटें जीतीं। इस बार, राजद के साथ सीट बंटवारे में कांग्रेस 30-35 सीटों तक सीमित हो सकती है, क्योंकि राजद अपनी बढ़ती ताकत के आधार पर अधिक सीटें चाहता है। यदि कांग्रेस को कम सीटें मिलती हैं, तो उसका प्रभाव सीमित हो सकता है।
तीसरा, राहुल गांधी की छवि और मुद्दों का प्रभाव: राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' और 'शिक्षा न्याय संवाद' जैसे अभियानों ने उनकी छवि को कुछ हद तक सुधारा है। बिहार में शिक्षा, बेरोजगारी, और जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों को उठाकर वह युवाओं और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, कन्हैया कुमार जैसे नेताओं की 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा को कुछ हद तक 'फ्लॉप' माना गया, जिसे कांग्रेस ने 'शिक्षा न्याय संवाद' के जरिए फिर से जीवंत करने की कोशिश की है।
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती : राजद के साथ गठबंधन में संतुलन बनाए रखना है। तेजस्वी यादव की सक्रियता और राजद की मजबूत जमीनी पकड़ के सामने कांग्रेस को 'जूनियर पार्टनर' की भूमिका निभानी पड़ सकती है। इसके अलावा, नीतीश कुमार की 'डबल इंजन सरकार' के खिलाफ कांग्रेस का Narrative कितना प्रभावी होगा, यह भी एक सवाल है।
राहुल गांधी के बिहार दौरे कांग्रेस की रणनीति : नई दिशा देने और पार्टी को बिहार में प्रासंगिक बनाए रखने का प्रयास हैं। यदि कांग्रेस जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत बनाने में कामयाब रहती है, युवाओं और वंचित वर्गों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाती है और महागठबंधन में सम्मानजनक सीटें हासिल करती है, तो उसे लाभ मिल सकता है। हालांकि, राजद की प्रमुखता, कमजोर संगठन, और एनडीए की मजबूत स्थिति के कारण यह लाभ सीमित रह सकता है। राहुल गांधी की सक्रियता से कांग्रेस का आत्मविश्वास तो बढ़ेगा, लेकिन इसका चुनावी परिणाम में कितना असर होगा, यह समय और रणनीति की सफलता पर निर्भर करता है।