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Business News: 5 महीने के शिखर पर भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार, जाने पाकिस्तान कहां तक पहुंचा ?

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अरब डॉलर पर पहुंचा, जो पांच महीने में सबसे उच्च स्तर है। अमेरिकी डॉलर की कमजोरी और विदेशी निवेश ने इस वृद्धि में योगदान दिया।

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Ajit Kumar Pandey
Indian foreign exchange reserves
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क ।

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भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार चमक रहा है। बीते 4 अप्रैल 2025 को समाप्त सप्ताह में इसमें 10.872 अरब डॉलर की शानदार वृद्धि दर्ज की गई, जिसके बाद यह 676.268 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। यह पिछले पांच महीनों का उच्चतम स्तर है। यह लगातार पांचवां सप्ताह है जब भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। 

 business news | Latest Business News : दूसरी ओर, पड़ोसी देश पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में भी हाल के सप्ताह में वृद्धि देखी गई है, जो 15.752 अरब डॉलर तक पहुंच गया। वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल, खासकर अमेरिकी डॉलर की कमजोरी और भारत में विदेशी निवेश की बढ़ोतरी ने इस वृद्धि में अहम भूमिका निभाई है। यह रिपोर्ट भारत और पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति, इसके कारणों, और आर्थिक महत्व पर विस्तार से चर्चा करता है।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में ऐतिहासिक उछाल

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भारत का विदेशी मुद्रा भंडार देश की आर्थिक ताकत का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 4 अप्रैल 2025 को जारी साप्ताहिक आँकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में 10.872 अरब डॉलर की बड़ी वृद्धि हुई।

यह वृद्धि पिछले सप्ताह की 6.59 अरब डॉलर की बढ़ोतरी के बाद आई है, जो दर्शाता है कि भारत का भंडार लगातार मजबूत हो रहा है। अब कुल भंडार 676.268 अरब डॉलर के स्तर पर है, जो सितंबर 2024 में दर्ज 704.885 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर के बाद दूसरा बड़ा आंकड़ा है।

इस उछाल का श्रेय कई कारकों को दिया जा सकता है। हाल ही में अमेरिकी डॉलर में कमजोरी देखी गई, जिसका कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा वैश्विक स्तर पर पारस्परिक टैरिफ (रेसिप्रोकल टैरिफ) लगाने की घोषणा थी।

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इस घोषणा ने वैश्विक शेयर बाजारों में हलचल मचाई और डॉलर की कीमत को प्रभावित किया। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय रुपये ने डॉलर के मुकाबले मजबूती दिखाई। साथ ही, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय शेयर और बॉन्ड बाजारों में भारी निवेश किया, जिससे विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ा।

विदेशी मुद्रा भंडार के घटक

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चार प्रमुख घटकों से मिलकर बनता है: विदेशी मुद्रा आस्तियाँ (एफसीए), स्वर्ण भंडार (गोल्ड रिजर्व), विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर), और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में रिजर्व पोजीशन। इन सभी में हाल के सप्ताह में वृद्धि दर्ज की गई है, जो भारत की आर्थिक स्थिरता को और मजबूत करती है।

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1. विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए)

विदेशी मुद्रा आस्तियां भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा होती हैं, जिसमें अमेरिकी डॉलर, यूरो, पाउंड, और जापानी येन जैसी प्रमुख मुद्राएँ शामिल हैं। 4 अप्रैल 2025 को समाप्त सप्ताह में एफसीए में 9.074 अरब डॉलर की वृद्धि हुई, जिसके बाद यह 574.088 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इस वृद्धि का कारण रुपये की मजबूती और विदेशी निवेश में बढ़ोतरी है। एफसीए में गैर-अमेरिकी मुद्राओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव का प्रभाव भी शामिल होता है, जो इस बार भारत के पक्ष में रहा।

2. स्वर्ण भंडार (गोल्ड रिजर्व)

सोना भारत के लिए न केवल आर्थिक, बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच सोना एक सुरक्षित निवेश माना जाता है। बीते सप्ताह भारत के स्वर्ण भंडार में 1.567 अरब डॉलर की वृद्धि हुई, जिसके बाद यह 79.360 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह वृद्धि वैश्विक स्तर पर सोने की कीमतों में तेजी और आरबीआई की रणनीतिक खरीदारी को दर्शाती है।

3. विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर)

एसडीआर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रदान किया गया एक अंतरराष्ट्रीय रिजर्व एसेट है, जो सदस्य देशों को अतिरिक्त तरलता प्रदान करता है। समीक्षाधीन सप्ताह में भारत के एसडीआर में 186 मिलियन डॉलर की वृद्धि हुई, जिसके बाद यह 18.362 अरब डॉलर हो गया। यह वृद्धि भारत की वैश्विक वित्तीय स्थिति को और मजबूत करती है।

4. आईएमएफ में रिजर्व पोजीशन

आईएमएफ में भारत का रिजर्व पोजीशन देश की कोटा हिस्सेदारी और वैश्विक वित्तीय संस्थान में उसकी स्थिति को दर्शाता है। इस सप्ताह इसमें 46 मिलियन डॉलर की वृद्धि हुई, जिसके बाद यह 4.459 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह छोटी लेकिन महत्वपूर्ण वृद्धि भारत की अंतरराष्ट्रीय वित्तीय विश्वसनीयता को दर्शाती है।

भंडार वृद्धि के पीछे वैश्विक और घरेलू कारक

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में इस ऐतिहासिक उछाल के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारक जिम्मेदार हैं। सबसे पहले, अमेरिकी डॉलर की कमजोरी ने रुपये को मजबूती दी। ट्रंप प्रशासन द्वारा घोषित टैरिफ नीतियों ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता पैदा की, जिसके कारण कई निवेशक उभरते बाजारों, खासकर भारत, की ओर आकर्षित हुए। भारतीय शेयर बाजारों में सेंसेक्स और निफ्टी ने इस दौरान मजबूती दिखाई, जिसने विदेशी निवेश को और प्रोत्साहित किया।

दूसरा, आरबीआई की रणनीतिक नीतियों ने भी भंडार को बढ़ाने में मदद की। आरबीआई ने विदेशी मुद्रा बाजार में समय-समय पर हस्तक्षेप कर रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित किया। साथ ही, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और सेवा निर्यात, खासकर आईटी क्षेत्र में, निरंतर वृद्धि ने भंडार को मजबूती दी।

विदेशी मुद्रा भंडार का महत्व

विदेशी मुद्रा भंडार किसी देश की आर्थिक सेहत का दर्पण होता है। भारत के लिए यह भंडार कई कारणों से महत्वपूर्ण है...

आयात कवरेज: 676.268 अरब डॉलर का भंडार भारत को 11 महीने से अधिक के आयात को कवर करने की क्षमता प्रदान करता है। यह देश को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी व्यवधान से बचाता है।

रुपये की स्थिरता: भंडार की मजबूती रुपये को स्थिर रखने में मदद करती है, जिससे आयातित वस्तुओं, जैसे कि कच्चा तेल, की कीमतें नियंत्रित रहती हैं।

वैश्विक विश्वसनीयता: बड़ा भंडार भारत को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में विश्वसनीयता प्रदान करता है, जिससे विदेशी निवेश और ऋण की लागत कम होती है।

आर्थिक संकट में ढाल: वैश्विक मंदी या आर्थिक संकट के समय भंडार एक सुरक्षा कवच की तरह काम करता है, जो भारत को बाहरी झटकों से बचाता है।

पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार

पाकिस्तान, जो लंबे समय से विदेशी मुद्रा भंडार की कमी से जूझ रहा है, ने हाल के सप्ताह में कुछ राहत देखी है। 2 अप्रैल 2025 को समाप्त सप्ताह में उसके भंडार में 173 मिलियन डॉलर की वृद्धि हुई, जिसके बाद यह 15.752 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इससे पहले के सप्ताह में भी 28.7 मिलियन डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई थी।

इस वृद्धि का कारण भी डॉलर की कमजोरी और कुछ हद तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जैसे संस्थानों से मिली सहायता है। हालांकि, पाकिस्तान का भंडार अभी भी केवल दो महीने के आयात को कवर करने में सक्षम है, जो उसकी आर्थिक नाजुकता को दर्शाता है। बढ़ते कर्ज, घटते निर्यात, और प्रवासी प्रेषण में कमी जैसे कारक पाकिस्तान के लिए चुनौती बने हुए हैं। फिर भी, हाल की वृद्धि ने वहां के आर्थिक नीति निर्माताओं को कुछ राहत दी है।

भारत बनाम पाकिस्तान: एक तुलना

भारत और पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना करने पर दोनों देशों की आर्थिक स्थिति में भारी अंतर दिखता है। जहां भारत का भंडार 676.268 अरब डॉलर है, वहीं पाकिस्तान का भंडार केवल 15.752 अरब डॉलर है। इसका मतलब है कि भारत का भंडार पाकिस्तान से लगभग 43 गुना बड़ा है। यह अंतर दोनों देशों की आर्थिक नीतियों, निर्यात क्षमता, और वैश्विक निवेशकों के भरोसे को दर्शाता है।

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में निर्यात, विशेष रूप से आईटी और सेवा क्षेत्र में, उल्लेखनीय वृद्धि की है। साथ ही, उसकी स्थिर राजनीतिक और आर्थिक नीतियों ने विदेशी निवेश को आकर्षित किया है। दूसरी ओर, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कर्ज और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही है, जिसने उसके भंडार को सीमित रखा है।

भविष्य की संभावनाएं

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की यह वृद्धि देश की आर्थिक स्थिरता को और मजबूत करती है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर वैश्विक आर्थिक स्थिति अनुकूल रही और विदेशी निवेश का प्रवाह बना रहा, तो भंडार जल्द ही अपने सर्वकालिक उच्च स्तर को पार कर सकता है। हालांकि, वैश्विक व्यापार युद्ध और टैरिफ नीतियों से उत्पन्न अनिश्चितताएं चुनौतियां पेश कर सकती हैं।

आरबीआई की नीतियां भी इस दिशा में महत्वपूर्ण रहेंगी। रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित करने और भंडार को बढ़ाने के लिए आरबीआई लगातार विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता रहेगा। साथ ही, सोने की रणनीतिक खरीदारी और वैश्विक मुद्राओं में विविधता लाने की नीति भंडार को और मजबूत कर सकती है।

पाकिस्तान के लिए भविष्य उतना उज्ज्वल नहीं दिखता। भले ही हाल के सप्ताह में भंडार में वृद्धि हुई हो, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता के लिए उसे निर्यात बढ़ाने, कर्ज कम करने, और राजनीतिक स्थिरता लाने की जरूरत है। आईएमएफ और अन्य दाताओं पर निर्भरता कम करना भी उसके लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 676.268 अरब डॉलर के स्तर पर पहुँचकर देश की आर्थिक ताकत का प्रतीक बन गया है। यह वृद्धि न केवल रुपये को स्थिर रखती है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की साख को भी बढ़ाती है। विदेशी निवेश, डॉलर की कमजोरी, और आरबीआई की रणनीतियों ने इस उछाल को संभव बनाया। दूसरी ओर, पाकिस्तान के भंडार में मामूली सुधार के बावजूद उसकी आर्थिक चुनौतियाँ बरकरार हैं।

यह भंडार भारत को वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं से निपटने की ताकत देता है और निवेशकों का भरोसा बढ़ाता है। अगर यह रुझान जारी रहा, तो भारत जल्द ही नई ऊंचाइयों को छू सकता है। वहीं, पाकिस्तान को अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए और ठोस कदम उठाने होंगे। यह दोनों देशों की आर्थिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो उनकी नीतियों और प्राथमिकताओं को उजागर करता है।

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