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शशांक भारद्वाज , सीनियर वीपी, चॉइस ब्रोकिंग
भारतीय शेयर मार्केट में एक बार फिर मंदी का वातावरण है। पिछले सप्ताह निफ्टी में 202 अंकों की गिरावट रही। एक महीने की अवधि में तो निफ्टी 1112 अंक नीचे हो चुका है।वर्तमान स्तरों पर निफ्टी की पीई 21.5 है। तेजी का वातावरण रहता तो यह पीई आकर्षक मानी जाती परंतु इसमें गिरावट के बाद भी मंदी में इसे थोड़ा अधिक ही माना जाएगा। निफ्टी का 200 मूविंग एवरेज 24080 है जो साप्ताहिक बंदी 24363 से अभी 283 अंकों के अंतर पर है।अंतिम बार निफ्टी ने अपने 200 दिनों का मूविंग एवरेज 2004 के लोकसभा चुनाव परिणाम के समय छुआ था।यदि भारत अमेरिका के मध्य टैरिफ को ले कर कोई समझौता नही होता है तो विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली से भारतीय शेयर मार्केट में गिरावट बनी रह सकती है तथा एक बार पुनः निफ्टी अपने 200 दिनों के मूविंग एवरेज को छू सकता है। हां, यदि ऐसा होता है तथा इन स्तरों से अधिक नीचे नहीं जाता है तो फिर यहां से एक बड़ी खरीदारी दिख सकती है। सामान्यतया 200 डीएमए निवेश का अच्छा स्तर माना जाता है।
भारत के लिए ट्रंप टैरिफ ही एक समस्या नहीं है।जिस प्रकार अमेरिका भारत को दबाव में लाने के लिए पाकिस्तान को बढ़ावा दे रहा है,सैन्य दृष्टि से यह भी चिंताजनक है। फिर भारत का अमेरिका को निर्यात पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है,भारत की जीडीपी में भी आधे प्रतिशत की कमी आ सकती है।ऐसे भी विदेशी संस्थागत निवेशक विक्रेता बने ही हुए हैं,उनका विक्रय अधिक बढ़ सकता है।पिछले सप्ताह उन्होंने नकद संभाग में 10652 करोड़ रुपए के शेयर बेचे। इसमें यदि भारती टेली के शेयरों की खरीद का प्रभाव ले लिया जाए तो अन्य शेयरों में कुल विक्रय 15000 करोड़ रुपए का हो सकता है।अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव के कारण भारत के एक निवेश स्थल के रूप में रेटिंग में कमी आ सकती है।
अमेरिका की शर्तों पर टैरिफ समझौता नहीं
भारत अमेरिका के शर्तों पर टैरिफ समझौता कर ही नहीं सकता है। भारत अपने कृषि क्षेत्र को अमेरिका के लिए किसी भी परिस्थिति में नहीं खोल सकता है। यह भारत की आर्थिक विवशता तो है ही ,एक राजनीतिक विवशता भी है।अमेरिका को यह समझना होगा तथा उसी के अनुसार,अनुरूप किसी समझौते पर आना होगा अन्यथा यह गतिरोध बना ही रहेगा। अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने पर भी भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की है।
भारत अपनी आवश्यकता का 85 प्रतिशत तेल आयात करता है,भारत को सस्ता कच्चा तेल चाहिए ही। अतः भारत रूस अथवा कहीं से भी सस्ता क्रूड ऑयल खरीदना बंद नहीं कर सकता है। भारत किसी अनुचित हठ पर नहीं अड़ा हुआ है एवं अमेरिका तो यह समझना चाहिए।
ट्रंप टैरिफ उबरने की कड़ी चुनौती
यदि अमेरिका नहीं मानता है तो फिर भारत को अनुचित ट्रंप टैरिफ युग के प्रतिकार के लिए,उसके दुष्प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए अथवा उससे ऊबर अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़, गतिशील बनाने के लिए आवश्यक पग युद्धस्तर पर उठाने पड़ेंगे। उत्पन्न नई परिस्थितियों के मध्य मार्ग ढूंढना होगा,निकलना होगा,व्यवस्थित करना होगा। नए मार्केट ढूंढने होंगे। व्यापार तथा उद्योग धंधों के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करना होगा। विशेषकर लाइसेंस विहीन युग की ओर बढ़ना होगा।
शेयर मार्केट को भी सहारा देना होगा
शेयर मार्केट को भी सहारा देना होगा। ऐसी नीतियां बनानी होंगी,उपाय करने होंगे जिससे भारतीय घरेलू निवेशकों को शेयर मार्केट में निवेश को बड़ा प्रोत्साहन मिल सके। इसमें शेयर में एक लाख रुपए तक के नए निवेश में कर की छूट,पूंजीगत लाभ के दर में कमी इत्यादि उपाय किए जा सकते हैं। विदेशी संस्थागत निवेशकों के द्वारा बड़ी बिकवाली में घरेलू निवेशक एक प्रभावी प्रतिकार की शक्ति के रूप में उभर सकते हैं,उभरे भी है किन्तु विदेशी संस्थागत निवेशकों की बड़ी बिकवाली आती ही रहती है तो फिर उसका प्रभावी प्रतिकार बने रहने के लिए कुछ विशेष प्रोत्साहनात्मक उपाय करने ही होंगे।
उनकी बिकवाली से हम शेयर संपति का क्षय होते देखते नही रह सकते हैं।
भारत चीन तथा रूस के मध्य एक व्यापारिक धुरी बनने तथा ट्रंप टैरिफ भयादोहन से निपटने के लिए इनके निकट व्यापारिक संबंधों की संभावनाएं बन रहीं हैं।यह ट्रंप को दबाव में का सकती हैं।इस सप्ताह रूस के पुतिन तथा अमेरिका के ट्रंप में भी वार्ता की बात है।वहां से यदि ट्रंप टैरिफ पर कोई अच्छा समाचार निकल के आता है तो फिर परिस्थितियां बदल सकती हैं एवं ऐसा होने पर भारतीय शेयर मार्केट तब तो बड़ी उछाल दिखा सकते हैं।
पूरे विश्व तथा भारत को भी ट्रंप टैरिफ युग के अनुसार अपने को व्यवस्थित करना तथा तदनुसार नीतियां बनानी होगी,उसमें जीना तथा जीवित रहना,प्रगति करना सीखना होगा।
कई बार आपदा भी बड़े अवसरों को जन्म देती है।
अगले सप्ताह बहुत सी कंपनियों के वित्तीय परिणाम परिणाम आने वाले हैं।निवेश करना ही है तो इन परिणामों के आधार पर कंपनी विशेष में निवेश का निर्णय लेना चाहिए। यदि ट्रंप अड़े रहते हैं तो फिर उन क्षेत्रो की कंपनियों में निवेश करने से बचना चाहिए जिनपर ट्रंप टैरिफ का बुरा प्रभाव पड़ेगा। पिछले सप्ताह घोषित मौद्रिक नीति में भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती नहीं की। वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रख यदि ब्याज दरों में कमी की जाती तो इससे कंपनियों की वित्तीय लागत कम तो होती ही,उपभोक्ताओं की खरीद में उछाल आता।यह अर्थव्यवस्था की गति बढ़ा सकता था। दीर्घ अवधि में तो भारत में कोष प्रबंधन तथा वित्तीय सेवाओं में बहुत बड़ी,कई गुणा वृद्धि की संभावना है।वित्त वर्ष 25 26 में वेल्थ मैनेजमेंट के अंतर्गत राशि 37.8 ट्रिलियन रुपए हो सकती है।इसके प्रतिवर्ष 12 से 14 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है वित वर्ष 27 में यह 47 ट्रिलियन रुपए हो सकती है। अभी यह भारत की जीडीपी का 11.4 प्रतिशत है जबकि विकसित राष्ट्रों में यह जीडीपी का 60 से 70 प्रतिशत होती है।
इससे आप भारत में वित्तीय संपत्ति प्रबंधन में वृद्धि की संभावना का अनुमान लगा सकते हैं। अमेरिकी शेयर मार्केट ऐतिहासिक ऊंचाइयां बना रहें हैं। ब्रेंट क्रूड गिरकर 66.32 डॉलर प्रति बैरेल है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है। डॉलर इंडेक्स 98.01 है तथा इसमें दुर्बलता बनी हुई है। शेयरों में मंदी व्यापक तौर पर भी है।निफ्टी 200 सूचकांक के दो तिहाई से अधिक शेयर 100 दिनों के मूविंग एवरेज के नीचे हैं। ध्यान रखें, यदि किसी कंपनी में विशेषकर मिड ,स्मॉल कंपनी में अचानक बड़ी बिक्री होने लगे एवं भाव तेजी से कम होने लगे तो समझ लीजिए उसमें कोई बड़ी गिरावट आने वाली है । गिरावट पर घरेलू उपभोग की कंपनियों के शेयर खरीदे जा सकते हैं। जिन शेयरों में बड़ा लाभ है, उनमें लाभ ले लेना चाहिए। कभी अभी कुछ समय के लिए नकद धन रखना भी अच्छा निर्णय होता है। Indian Stock Market | stock market | Stock Market Down Today | stock market news
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