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बदलापुर में भी हुआ था हैदराबाद सरीखा Encounter, मजिस्ट्रेट ने 41 पेजों में बयां की सारी कहानी

वर्ष 2024 में महाराष्ट्र के ठाणे में हुई अक्षय शिंदे की हत्या , कुछ उसी तर्ज पर की गई थी , जैसे तेलंगाना पुलिस ने हैदराबाद में रेप के 4 आरोपियों को एनकाउंटर में मारा था।

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Shailendra Gautam
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः वाकया नवंबर 2019 का है। तेलंगाना में एक वेटरनरी डॉक्टर के गैंगरेप और हत्या के मामले में पुलिस ने चार आरोपियों का एनकउंटर कर दिया था। उस समय पुलिस पर फूल बरसे, हर ओर से उनकी तारीफें हुईं। लेकिन जैसे ही ये एनकाउंटर हाईकोर्ट पहुंचा सवालिया निशान लगने शुरू हो गए। मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया। एक आयोग का गठन हुआ जिसने रिपोर्ट दी कि तेलंगाना पुलिस ने नृशंस तरीके से चारों आरोपियों को हाइवे पर गोलियों से भून दिया। एनकाउंटर की टीम में 10 पुलिस वाले शामिल थे। सभी पर हत्या का केस चलाया जा रहा है। तेलंगाना जैसा ही एक मामला महाराष्ट्र में भी सामने आया था जिसमें पुलिस ने एक आरोपी का एनकाउंटर किया था। बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्देश पर जो न्यायिक जांच कराई गई उसमें पता चला है कि हैदराबाद की तर्ज पर ही ठाणे की पुलिस ने आरोपी का एनकाउंटर किया था। 

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सितंबर 2024 में पुलिस हिरासत में हुई थी अक्षय शिंदे की हत्या

बदलापुर के एक स्कूल में सफाईकर्मी अक्षय शिंदे नाम के आरोपी को बीते साल 17 अगस्त को दो नाबालिग छात्राओं से छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 23 सितंबर को उसे पुलिस वैन में तलोजा जेल से ठाणे क्राइम ब्रांच ले जाया जा रहा था, तभी सीनियर इंस्पेक्टर संजय शिंदे ने उसे गोली मार दी। एसआई ने दावा किया कि आरोपी ने वैन में मौजूद एक अन्य पुलिसकर्मी की बंदूक छीनी थी, जिसके बाद उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी। शिंदे के परिवार ने पुलिस की थ्योरी को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। उसके बाद हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया था। मजिस्ट्रेट ने हाईकोर्ट में जो रिपोर्ट पेश की है उसमें ठाणे पुलिस की थ्योरी की पूरी तरह से हवा निकल गई है। ठाणे की पुलिस के पांच मुलाजिम 2019 के तेलंगाना एनकाउंटर की तर्ज पर अदालत के फंदे में पूरी तरह से फंस चुके हैं। बीते साल 12 और 13 अगस्त को दो लड़कियों के साथ कथित छेड़छाड़ के बाद ठाणे में विरोध प्रदर्शन हुए थे। एक महीने बाद शिंदे की हत्या ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था।

अक्षय शिंदे के एनकाउंटर में जिन पांच पुलिस कर्मियों पर तलवार लटक रही है उनमें ठाणे के सीनियर इंस्पेक्टर संजय कुमार शिंदे, एपीआई निलेश मोरे, हेड कांस्टेबल अभिजीत मोरे, हरीश थावड़े और सतीश खतल शामिल हैं। जांच मजिस्ट्रेट अशोक शेंगड़े ने पूरी की। उन्होंने 41 पेजों की अपनी रिपोर्ट में सिलसिलेवार तरीके से क्राईम सीन की थ्योरी में झोल बताए।  

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सात प्वाइंट्स, जो एनकाउंटर पर उठा रहे हैं सवाल


हाथों में गोलियों का डिस्चार्ज नहीं मिला

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैन में मौजूद पुलिसकर्मियों ने दावा किया कि शिंदे ने सहायक पुलिस निरीक्षक मोरे पर तीन राउंड फायर किए, लेकिन इससे कुछ डिस्चार्ज या गोली के निशान रहने चाहिए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि मृतक के दोनों हाथों के हैंडवॉश से निकले गंदे तरल पदार्थ का गोली के निशान से कोई संबंध नहीं है। 

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हथकड़ी पर कोई निशान नहीं

आरोपी को अस्पताल ले जाने पर उसके बाएं हाथ की हथकड़ी हटा दी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि हथकड़ी पर भी कोई ऐसा निशान नहीं मिला, जिससे लगता हो कि अक्षय ने पिस्टल छीनकर पुलिस वालों पर गोलियां दागी थीं। 

पिस्तौल पर कोई फिंगरप्रिंट नहीं

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पुलिस के अनुसार कैदी ने एपीआई मोरे की 9 मिमी पिस्तौल छीन ली थी। बंदूक की दो बार फिंगरप्रिंट विशेषज्ञों ने जांच की। विशेषज्ञ ने उस पर कोई फिंगरप्रिंट नहीं देखा। जबकि ये चीज 24 सितंबर 2024 के क्राईम सीन रिकार्ड में पुलिस ने दर्ज की थी। कैदी ने पिस्तौल का इस्तेमाल किया तो उस पर फिंगरप्रिंट होना चाहिए था।

पानी की बोतलों पर कोई फिंगरप्रिंट नहीं

पुलिस के अनुसार आरोपी ने वैन में मौजूद पानी की दो बोतलों में से एक से पानी पीने के बाद हथकड़ी लगाए जाने के दौरान पुलिसकर्मी की पिस्तौल छीनी थी। लेकिन जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि वैन में 12 बोतलें थीं। सभी को फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेजा गया, लेकिन उनमें से किसी पर भी आरोपी का फिंगरप्रिंट नहीं था।

तीन फीट से ज्यादा दूरी से फायरिंग

रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्षय शिंदे ने जो फायरिंग पुलिस पर की वो तीन फीट से कम दूरी से की जानी चाहिए। लेकिन फोरेंसिक रिपोर्ट कहती है कि फायरिंग तीन फीट से अधिक दूरी से की गई थी। वैन में मिले छेद भी दर्शाते हैं कि गोलियां दूर से चलाई गईं। 

पुलिस ने थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया था

जांच में कहा गया है कि मृतक को लगी कुछ चोटें किसी कठोर, खुरदरी चीज से लगी थीं। यानि पुलिस ने उस पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया था।

सिर में गोली मारने की जरूरत नहीं थी

रिपोर्ट में कहा गया है कि इंस्पेक्टर शिंदे आरोपी को आसानी से काबू कर सकते थे और शरीर के उस हिस्से पर गोली चला सकते थे जिससे मौत नहीं होती। लेकिन इसके बजाय उन्होंने उसके सिर में गोली मार दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि चार अन्य पुलिसकर्मी आसानी से स्थिति को संभाल सकते थे, क्योंकि वो उसके पास ही बैठे थे। 

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