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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 2 अप्रैल को एक बड़ी घोषणा करने वाले हैं, जिससे वैश्विक बाजारों में हलचल मच सकती है। उन्होंने कई देशों पर counter tariffs लगाने की योजना बनाई है, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रभावित हो सकता है। अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा trading partner है, और अगर नए टैरिफ लागू होते हैं, तो इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। यह नीति, जिसे "रेसिप्रोकल टैरिफ" (पारस्परिक शुल्क) के रूप में जाना जा रहा है, उन देशों पर केंद्रित है जो अमेरिकी सामानों पर उच्च टैरिफ लगाते हैं। ट्रंप का तर्क है कि यह कदम अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करने और घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने के लिए जरूरी है। लेकिन इसके वैश्विक प्रभाव और विशेष रूप से भारत जैसे देशों पर पड़ने वाले असर को लेकर व्यापक चर्चा और चिंता शुरू हो गई है। सवाल यह है कि क्या भारतीय बाजार इस झटके के लिए तैयार है?
जानते हैं इसका वैश्विक प्रभाव
Trump के tariff का सबसे बड़ा असर वैश्विक व्यापार संतुलन पर पड़ सकता है। टैरिफ, जो आयातित सामानों पर कर के रूप में लगाया जाता है, आमतौर पर कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति शृंखला में व्यवधान का कारण बनता है। जब अमेरिका जैसे विशाल बाजार में टैरिफ लागू होते हैं, तो यह न केवल निर्यातक देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है, बल्कि अमेरिकी उपभोक्ताओं और उद्योगों पर भी दबाव डालता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे एक नया "ट्रेड वॉर" शुरू हो सकता है, जिसमें प्रभावित देश जवाबी टैरिफ लागू कर सकते हैं। इससे वैश्विक व्यापार की मात्रा में कमी और आर्थिक मंदी की आशंका बढ़ सकती है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला, जो पहले से ही कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक तनावों से प्रभावित हैं, और अधिक जटिल हो सकती हैं। मसलन, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्र, जो कई देशों से कच्चे माल और पार्ट्स पर निर्भर हैं, लागत में वृद्धि और उत्पादन में देरी का सामना कर सकते हैं। साथ ही, तेल और गैस जैसे ऊर्जा संसाधनों पर टैरिफ बढ़ने से वैश्विक ऊर्जा बाजार में अस्थिरता आ सकती है, जिसका असर सभी देशों पर पड़ेगा।
भारत पर टैरिफ का असर
भारत और अमेरिका के बीच 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 129.2 अरब डॉलर का था, जिसमें भारत ने 77.52 अरब डॉलर का निर्यात किया था। ट्रंप की रेसिप्रोकल टैरिफ नीति का भारत पर असर कई स्तरों पर देखा जा सकता है।
1. निर्यात पर प्रभाव
India, america को कई प्रमुख वस्तुओं का निर्यात करता है, जैसे फार्मास्यूटिकल्स (8 अरब डॉलर), ऑटोमोबाइल पार्ट्स (1.5 अरब डॉलर), आभूषण, कपड़ा, और रसायन। टैरिफ बढ़ने से इन वस्तुओं की कीमतें अमेरिकी बाजार में बढ़ेंगी, जिससे उनकी मांग घट सकती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत को सालाना 7 से 31 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि टैरिफ कितना व्यापक और सख्त होगा।
2. फार्मास्यूटिकल सेक्टर
भारत जेनेरिक दवाओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, और america में 10 में से 9 प्रिस्क्रिप्शन भारतीय दवाओं पर निर्भर हैं। टैरिफ से दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे अमेरिकी मरीजों पर बोझ बढ़ेगा और भारत के फार्मा उद्योग को नुकसान हो सकता है। हालांकि, भारत वैकल्पिक बाजारों की तलाश कर सकता है, लेकिन अमेरिका जैसे बड़े बाजार की भरपाई आसान नहीं होगी।
3. ऑटोमोबाइल और आईटी सेक्टर
ऑटोमोबाइल पार्ट्स पर पहले से ही 25% टैरिफ की घोषणा हो चुकी है, जो भारतीय कंपनियों की लागत बढ़ाएगी। दूसरी ओर, आईटी सेक्टर पर सीधा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि टैरिफ मुख्य रूप से सामानों पर लागू होते हैं, सेवाओं पर नहीं। फिर भी, अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, तो वहां की कंपनियां आईटी खर्च में कटौती कर सकती हैं, जो टीसीएस और इन्फोसिस जैसी भारतीय कंपनियों को प्रभावित करेगा।
4. घरेलू अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार
टैरिफ की घोषणा से भारतीय शेयर बाजार में अनिश्चितता बढ़ सकती है। निर्यात-निर्भर कंपनियों के शेयरों में गिरावट संभव है, हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की मजबूत घरेलू मांग इस झटके को कुछ हद तक कम कर सकती है। साथ ही, रुपये की कीमत पर भी दबाव पड़ सकता है, जिससे आयात महंगा हो सकता है।
5. अवसर और रणनीति
टैरिफ के बावजूद, भारत के लिए कुछ अवसर भी हैं। उदाहरण के लिए, अगर चीन का निर्यात प्रभावित होता है, तो भारत अमेरिकी बाजार में उसकी जगह ले सकता है। इसके लिए भारत को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना होगा और अन्य देशों (जैसे यूरोप, यूएई) के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) पर ध्यान देना होगा। हाल के वर्षों में भारत ने 13 एफटीए पर हस्ताक्षर किए हैं, जो इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं।
6. जवाबी कदम
भारत सरकार टैरिफ युद्ध से बचने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत कर रही है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात की थी, और द्विपक्षीय व्यापार समझौते की संभावना पर चर्चा हुई थी। भारत कुछ क्षेत्रों में टैरिफ कम करने पर विचार कर सकता है, ताकि अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव कम हो।
प्रभावित होने वाले देश
Donald Trump की नीति के तहत वे देश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जो अमेरिका के साथ बड़े ट्रेड सरप्लस में हैं या अमेरिकी सामानों पर हाई टैरिफ लगाते हैं। इनमें कुछ प्रमुख देश इस प्रकार हैं:
चीन: अमेरिका और चीन के बीच पहले से ही तनावपूर्ण व्यापारिक संबंध हैं। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चीन पर बड़े पैमाने पर टैरिफ लगाए थे, और अब नई नीति के तहत यह और सख्त हो सकता है। चीन, जो अमेरिका को इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और उपभोक्ता वस्तुओं का बड़ा निर्यातक है, को अपने निर्यात में भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है।
कनाडा और मैक्सिको: उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते (नाफ्टा) के बावजूद, ट्रंप ने इन दोनों देशों पर 25% टैरिफ की घोषणा की है। कनाडा और मैक्सिको अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक साझेदार हैं, और यह कदम उनके ऑटोमोबाइल, ऊर्जा और कृषि निर्यात को प्रभावित करेगा। दोनों देशों ने जवाबी टैरिफ की धमकी दी है, जिससे तनाव और बढ़ सकता है।
यूरोपीय संघ (ईयू): ईयू देशों, खासकर जर्मनी और फ्रांस, से ऑटोमोबाइल, मशीनरी और विलासिता वस्तुओं का बड़ा आयात होता है। ट्रंप ने इन देशों पर भी टैरिफ की बात कही है, जिससे यूरोपीय अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ सकता है।
जापान और दक्षिण कोरिया: ये दोनों देश अमेरिका को ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स का बड़ा निर्यात करते हैं। टैरिफ से इन देशों की कंपनियों को नुकसान होगा, और वे अपने बाजारों को विविध करने की कोशिश कर सकते हैं।
भारत: भारत भी इस नीति की चपेट में आएगा, क्योंकि यह अमेरिका का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है और कुछ क्षेत्रों में उच्च टैरिफ लगाता है। इसके प्रभाव को नीचे विस्तार से देखते हैं।
अर्थव्यवस्था का शुरू हो सकता है नया दौर
कुल मिलाकर डोनाल्ड ट्रंप के 2 अप्रैल से लागू होने वाले टैरिफ वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक नए दौर में ले जा सकते हैं, जहां व्यापारिक तनाव और अनिश्चितता बढ़ सकती है। चीन, कनाडा, मैक्सिको, ईयू और भारत जैसे देश इससे सीधे प्रभावित होंगे। भारत के लिए यह नीति चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसका असर निर्यात, उद्योगों और शेयर बाजार पर पड़ेगा। हालांकि, सही रणनीति और वैकल्पिक बाजारों की तलाश से भारत इस संकट को अवसर में बदल सकता है। आने वाले महीने इस बात का निर्धारण करेंगे कि यह टैरिफ युद्ध कितना गहरा और व्यापक होगा, और विश्व अर्थव्यवस्था इसका कितना दबाव झेल पाएगी।