नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
दिल्ली हाई कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं के लिए असुरक्षित बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा है कि जब तक उत्पीड़न और भय से मुक्त माहौल नहीं बनाया जाता, तब तक महिलाओं की प्रगति पर सभी चर्चाएं सतही रहेंगी। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि वास्तविक सशक्तीकरण महिलाओं के बिना किसी डर के स्वतंत्र रूप से जीने और घूमने के अधिकार से शुरू होता है। अदालत ने पारित अपने एक फैसले में ये टिप्पणियां कीं।
Delhi Government का फरमान ऊंची इमारतों, होटलों और व्यावसायिक परिसरों में एंटी-स्मॉग गन लगाना अनिवार्य
बस में महिला सहयात्री के यौन उत्पीड़न का मामला
कोर्ट ने 2015 में एक बस में महिला सह-यात्री का यौन उत्पीड़न करने के लिए एक व्यक्ति की सजा में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। निचली अदालत ने 2019 में आरोपी को दोषी ठहराया था और उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से उस पर आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक साल के साधारण कारावास और धारा 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द, हाव-भाव या कृत्य) के तहत छह महीने की सजा सुनाई। अपील में सत्र न्यायालय ने भी इस फैसले को बरकरार रखा।
किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जा सकती
यौन उत्पीड़न के मामले में किसी भी तरह की नरमी बरतने से इनकार करते हुए अदालत ने इस बात पर अफसोस जताया कि कड़े कानून होने के बावजूद आजादी के दशकों बाद भी महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि इस मामले में सार्वजनिक परिवहन पीड़िता के लिए असुरक्षित स्थान बन गया तथा आरोपी के प्रति किसी भी प्रकार की अनुचित नरमी भविष्य में अपराधियों को बढ़ावा देगी। आरोपी अनुचित इशारे करने तथा पीड़िता को जबरन चूमने के बाद मौके पर ही पकड़ा गया था।
‘मामले के तथ्य और आरोपी के कृत्य दर्शाते हैं कि लड़कियां आज भी सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित नहीं हैं। मामले के तथ्य यह भी दर्शाते हैं कि यह एक कठोर और परेशान करने वाली वास्तविकता है।दिल्ली हाई कोर्ट
लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं
अदालत ने कहा, ‘मामले के तथ्य और आरोपी के कृत्य दर्शाते हैं कि लड़कियां आज भी सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित नहीं हैं। मामले के तथ्य यह भी दर्शाते हैं कि यह एक कठोर और परेशान करने वाली वास्तविकता है।’’ इसने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में फैसले समाज और समुदाय को यह संदेश देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि अगर हम वास्तव में महिलाओं के उत्थान की आकांक्षा रखते हैं, तो यह जरूरी है कि हम सबसे पहले ऐसा माहौल बनाएं जहां वे सुरक्षित हों।
उत्पीड़न, अपमान और भय से मुक्त हों और जो लोग सार्वजनिक स्थानों को असुरक्षित बनाते हैं, उनसे सख्ती से निपटा जाए। जब तक ऐसा नहीं होता, महिलाओं की प्रगति पर सभी चर्चाएं सतही ही रहेंगी।’अदालत ने कहा कि यह मामला एक ‘दुर्लभ उदाहरण’ है, जहां बस कंडक्टर और एक अन्य सह-यात्री जैसे अजनबियों ने ‘सराहनीय साहस’ का परिचय दिया और अभियोजन पक्ष के समर्थन में पुलिस के साथ-साथ अदालत के समक्ष खुलकर गवाही दी।
Court's comment, पहले दिल्ली के Public places को सुरक्षित बनाएं, फिर महिला प्रगति की सोचें...
महिलाओं के लिए Public places असुरक्षित बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा है कि जब तक उत्पीड़न और भय से मुक्त माहौल नहीं बनाया जाता, तब तक महिलाओं की प्रगति पर सभी चर्चाएं सतही रहेंगी।
नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
दिल्ली हाई कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं के लिए असुरक्षित बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा है कि जब तक उत्पीड़न और भय से मुक्त माहौल नहीं बनाया जाता, तब तक महिलाओं की प्रगति पर सभी चर्चाएं सतही रहेंगी। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि वास्तविक सशक्तीकरण महिलाओं के बिना किसी डर के स्वतंत्र रूप से जीने और घूमने के अधिकार से शुरू होता है। अदालत ने पारित अपने एक फैसले में ये टिप्पणियां कीं।
Delhi Government का फरमान ऊंची इमारतों, होटलों और व्यावसायिक परिसरों में एंटी-स्मॉग गन लगाना अनिवार्य
बस में महिला सहयात्री के यौन उत्पीड़न का मामला
कोर्ट ने 2015 में एक बस में महिला सह-यात्री का यौन उत्पीड़न करने के लिए एक व्यक्ति की सजा में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। निचली अदालत ने 2019 में आरोपी को दोषी ठहराया था और उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से उस पर आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक साल के साधारण कारावास और धारा 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द, हाव-भाव या कृत्य) के तहत छह महीने की सजा सुनाई। अपील में सत्र न्यायालय ने भी इस फैसले को बरकरार रखा।
किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जा सकती
यौन उत्पीड़न के मामले में किसी भी तरह की नरमी बरतने से इनकार करते हुए अदालत ने इस बात पर अफसोस जताया कि कड़े कानून होने के बावजूद आजादी के दशकों बाद भी महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि इस मामले में सार्वजनिक परिवहन पीड़िता के लिए असुरक्षित स्थान बन गया तथा आरोपी के प्रति किसी भी प्रकार की अनुचित नरमी भविष्य में अपराधियों को बढ़ावा देगी। आरोपी अनुचित इशारे करने तथा पीड़िता को जबरन चूमने के बाद मौके पर ही पकड़ा गया था।
लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं
अदालत ने कहा, ‘मामले के तथ्य और आरोपी के कृत्य दर्शाते हैं कि लड़कियां आज भी सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित नहीं हैं। मामले के तथ्य यह भी दर्शाते हैं कि यह एक कठोर और परेशान करने वाली वास्तविकता है।’’ इसने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में फैसले समाज और समुदाय को यह संदेश देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि अगर हम वास्तव में महिलाओं के उत्थान की आकांक्षा रखते हैं, तो यह जरूरी है कि हम सबसे पहले ऐसा माहौल बनाएं जहां वे सुरक्षित हों।
उत्पीड़न, अपमान और भय से मुक्त हों और जो लोग सार्वजनिक स्थानों को असुरक्षित बनाते हैं, उनसे सख्ती से निपटा जाए। जब तक ऐसा नहीं होता, महिलाओं की प्रगति पर सभी चर्चाएं सतही ही रहेंगी।’अदालत ने कहा कि यह मामला एक ‘दुर्लभ उदाहरण’ है, जहां बस कंडक्टर और एक अन्य सह-यात्री जैसे अजनबियों ने ‘सराहनीय साहस’ का परिचय दिया और अभियोजन पक्ष के समर्थन में पुलिस के साथ-साथ अदालत के समक्ष खुलकर गवाही दी।