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केरल में बंदी-बंगाल में बवाल! कहीं दिखी खामोशी तो कहीं क्रांति! पढ़िए — Bharat Band 2025 की वो कहानी जो टीवी पर नहीं दिखे | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीए डेस्क । आज बुधवार 9 जुलाई 2025 को देश के कई हिस्सों में ट्रेड यूनियनों की हड़ताल ने जनजीवन को प्रभावित किया है, जबकि कुछ राज्य इससे अछूते रहे। कोलकाता में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई, तो केरल में पूर्ण बंद का नजारा देखने को मिला। केंद्र सरकार की कथित श्रमिक-विरोधी नीतियों और नए श्रम संहिताओं के विरोध में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 'भारत बंद' का आह्वान किया, जिसका उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों को मजबूत करना था। यह हड़ताल देश भर के श्रमिकों के बढ़ते असंतोष को दर्शाती है।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अमरजीत कौर ने कहा- 25 करोड़ से ज्यादा वर्कर इस हड़ताल में शामिल होने वाले हैं। किसान और ग्रामीण मजदूर भी इस प्रदर्शन का समर्थन किए। इसमें बैंक, डाक, कोयला खनन, बीमा, परिवहन, फैक्ट्रियां और निर्माण जैसे कई सेक्टरों के कर्मचारी शामिल हैं। इसके अलावा, किसान और ग्रामीण मजदूर भी इस विरोध में शामिल रहे।रेलवे और टूरिज्म जैसे सेक्टरों को इस हड़ताल से बाहर रखा गया है।
अन्य ट्रेड यूनियनों का कहना है कि सरकार की नीतियां मजदूरों और किसानों के खिलाफ हैं। उनका आरोप है कि सरकार कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए पब्लिक सेक्टर की कंपनियों का निजीकरण कर रही है, मजदूरों के हक छीन रही है और चार नए लेबर कोड्स के जरिए मजदूरों के हड़ताल करने और सामूहिक सौदेबाजी जैसे अधिकारों को कमजोर कर रही है।
देशभर में 'भारत बंद' का मिला-जुला असर: कहीं आंदोलन, कहीं सामान्य जनजीवन!
बुधवार को 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाए गए 'भारत बंद' ने देशभर में अलग-अलग रंग दिखाए। कहीं यह एक जोरदार प्रदर्शन में बदल गया, तो कहीं इसका नाममात्र का ही असर देखने को मिला। केंद्र सरकार की कथित श्रमिक-विरोधी नीतियों, जिसमें चार नए श्रम संहिता भी शामिल हैं, के विरोध में आहूत इस हड़ताल का मुख्य उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए बेहतर कामकाजी परिस्थितियों की मांग करना था। लेकिन क्या यह 'बंद' वाकई अपनी मंजिल तक पहुंच पाया? आइए, इस हड़ताल के विभिन्न पहलुओं और देशभर में इसके प्रभाव पर गहराई से नजर डालते हैं।
केरल में थमा जनजीवन, कोलकाता में हिंसक झड़पें!
केरल, वामपंथी गढ़ होने के नाते, इस हड़ताल से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। राज्य में जनजीवन पूरी तरह ठप रहा। यह हड़ताल माकपा शासित राज्य में ट्रेड यूनियनों और वामपंथी संगठनों के जबरदस्त समर्थन के साथ चली। दुकानें, शॉपिंग मॉल, और सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह बंद रहे। सड़कें खाली नजर आईं, जो हड़ताल की सफलता का स्पष्ट प्रमाण था। कोट्टायम और कोच्चि जैसे शहरों में इसका व्यापक असर देखने को मिला।
वहीं, पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में स्थिति थोड़ी अलग थी। यहां प्रदर्शनकारी और पुलिस आमने-सामने आ गए। 'भारत बंद' रैली के दौरान वामपंथी दलों के यूनियनों के कार्यकर्ताओं और कोलकाता पुलिस के बीच जुबानी जंग छिड़ गई, जो बाद में झड़प और आगजनी में बदल गई।
प्रदर्शनकारियों ने बसों को रास्ता देने से मना किया और पुलिस को स्थिति संभालने के लिए मोर्चा संभालना पड़ा। मिदनापुर में भी वामपंथी ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं को वाहनों की आवाजाही रोकने की कोशिश करते हुए हिरासत में लिया गया। यह दृश्य स्पष्ट रूप से बताता है कि श्रमिकों का गुस्सा कितना गहरा है और वे अपने अधिकारों के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
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श्रम सुधारों पर क्यों है इतना विवाद?
ट्रेड यूनियनों का मुख्य आरोप है कि केंद्र सरकार ऐसे आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ा रही है जो श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करते हैं। नए श्रम संहिता को लेकर उनकी सबसे बड़ी आपत्ति है। यूनियनों का कहना है कि ये संहिताएं श्रमिकों के लिए सुरक्षा कवच को कमजोर करती हैं, छंटनी को आसान बनाती हैं और यूनियनों की शक्ति को कम करती हैं।
न्यूनतम वेतन की मांग: यूनियनों की एक प्रमुख मांग 26,000 रुपये का न्यूनतम वेतन है, जिसे वे मौजूदा महंगाई और जीवन-यापन की लागत के मद्देनजर आवश्यक मानते हैं।
पुरानी पेंशन योजना की बहाली: नई पेंशन योजना के विरोध में पुरानी पेंशन योजना की बहाली भी इनकी मांगों में से एक है।
निजीकरण का विरोध: सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण का भी यूनियनों द्वारा पुरजोर विरोध किया जा रहा है, क्योंकि उनका मानना है कि इससे रोजगार के अवसर कम होंगे और श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा।
अन्य राज्यों में दिखा मिला-जुला असर: कहीं आंशिक, कहीं बेअसर!
जहां केरल और बंगाल में हड़ताल का असर साफ दिखा, तो वहीं अन्य राज्यों में स्थिति थोड़ी अलग देखने को मिली।
तमिलनाडु में सामान्य जनजीवन: तमिलनाडु के तिरुप्पुर में ट्रेड यूनियन हड़ताल से अप्रभावित रहा और जिले भर में 540 बसें सामान्य रूप से चलती रहीं। चेन्नई में भी बस सेवाएं सामान्य रहीं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि दक्षिण के सभी राज्यों में हड़ताल का प्रभाव एक जैसा नहीं था।
हरियाणा में आंशिक असर: हरियाणा में कुरुक्षेत्र में हड़ताल का रोडवेज पर आंशिक असर दिखाई दिया। कुछ बसें चलती रहीं, जबकि कुछ को रोका गया। झज्जर में रोडवेज का चक्का जाम बेअसर रहा और बसें प्रतिदिन की तरह चलती रहीं। पानीपत में भी रोडवेज की 124 में से करीब 100 बसें सड़क पर चलीं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि चक्का जाम की चेतावनी पूरी तरह से कामयाब नहीं रही। हालांकि, हरियाणा में तीन लाख से अधिक कर्मचारी हड़ताल पर रहे, फिर भी इसका असर मिला-जुला ही रहा।
झारखंड में प्रदर्शन: झारखंड की राजधानी रांची में भी अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सीएमपीडीआई मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।
यह दर्शाता है कि पूरे देश में श्रमिकों के बीच एकजुटता एक समान नहीं है, और इसका असर भी अलग-अलग रहा है।
हड़ताल के दौरान सार्वजनिक परिवहन एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा। जहां केरल में बसें पूरी तरह से बंद रहीं, वहीं हरियाणा और तमिलनाडु में उनका संचालन सामान्य रहा। पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी और जादवपुर में सरकारी बसों के चालकों को एहतियात के तौर पर हेलमेट पहनने पड़े, क्योंकि 'भारत बंद' के बावजूद वहां निजी और सरकारी बसें चल रही थीं। यह स्थिति सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाती है और यह सवाल उठाती है कि क्या ऐसे विरोध प्रदर्शनों में सार्वजनिक संपत्ति और व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
इस 'भारत बंद' ने एक बार फिर केंद्र सरकार और ट्रेड यूनियनों के बीच बढ़ते गतिरोध को उजागर किया है। यूनियनों का आरोप है कि सरकार कॉर्पोरेट-समर्थक नीतियों को बढ़ावा दे रही है, जबकि सरकार का कहना है कि वे आर्थिक सुधारों के माध्यम से देश को आगे बढ़ाना चाहती है।
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