नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। ईको फ्रेंडली होली और दीवाली के बाद अब ईको फ्रेंडली बकरीद की मांग उठ रही है। भोपाल के संस्कृति बचाओ मंच ने आगामी बकरीद (ईद-उल-अजहा) के अवसर पर मुस्लिम समुदाय से एक विशेष अपील की है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और पशु कल्याण को ध्यान में रखते हुए इस बार ईको फ्रेंडली बकरीद मनाने की अपील की है। उन्होंने बकरों की प्रतीकात्मक कुर्बानी देने का सुझाव दिया है।
मिट्टी के बकरे की कुर्बानी
संस्कृति बचाओ मंच के अध्यक्ष चंद्रशेखर तिवारी ने कहा कि समाज धीरे-धीरे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो रहा है- जैसे होली पर रासायनिक रंगों की जगह हर्बल रंगों का प्रयोग, दीपावली पर कम पटाखे और गणेश चतुर्थी पर मिट्टी की प्रतिमाओं का चलना, उसी तरह बकरीद पर भी एक नई पहल की जा सकती है। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि मिट्टी के बकरे की प्रतीकात्मक कुर्बानी दी जाए।
कुर्बानी से खून और अपशिष्ट
चंद्रशेखर तिवारी ने बताया कि पारंपरिक रूप से बकरीद पर दी जाने वाली कुर्बानी से भारी मात्रा में खून और अपशिष्ट पैदा होता है, जिसे साफ करने में लाखों गैलन पानी खर्च होता है। यदि मिट्टी के बकरों की प्रतीकात्मक बलि दी जाए, तो इससे न केवल पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है बल्कि प्रदूषण और पशु हत्या को भी कम किया जा सकता है।
पशु क्रूरता कानून पर सवाल
चंद्रशेखर तिवारी ने पशु क्रूरता अधिनियम (Prevention of Cruelty to Animals Act) की समानता पर भी सवाल उठाया है। उनका कहना है कि जब अन्य जानवरों के साथ दुर्व्यवहार पर कार्रवाई की जाती है, तो बकरों की बलि को इससे छूट क्यों दी जाती है? उन्होंने कहा, "बकरा क्या पशु नहीं होता? अगर कुत्तों या गायों के साथ हिंसा करने पर कानून सख्ती से लागू होता है, तो बकरों की बलि को सामाजिक परंपरा कहकर अनदेखा क्यों किया जाए?"
धर्म के खिलाफ नहीं, पर्यावरण की तरफ कदम
चंद्र शेखर तिवारी ने यह भी चिंता जताई कि छोटे बच्चे जब महीनों तक बकरों को पालते हैं, उन्हें खास खुराक देते हैं और फिर त्योहार के दिन उसी जानवर की बलि देते हैं, तो इससे उनके मन में हिंसा और संवेदनहीनता की भावना पनप सकती है। तिवारी ने यह स्पष्ट किया कि उनकी अपील किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि एक भावनात्मक और पर्यावरण-संवेदनशील समाज की ओर एक कदम है। उन्होंने सभी धर्मगुरुओं और सामाजिक संगठनों से इस दिशा में विचार करने और समाधान खोजने की अपील की।
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