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Election Commission की दो टूक, कहा- क्या मुर्दों के वोट डलवा दें?

बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है। चुनाव आयोग ने विपक्ष की आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया दी और पूछा— क्या फर्जी और पलायन कर चुके मतदाताओं को वोट डालने देना चाहिए? जानिए पूरा मामला।

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Dhiraj Dhillon
Election Commission of India (1)

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर जारी सियासी घमासान के बीच चुनाव आयोग (ECI) ने पहली बार अपना रुख स्पष्ट करते हुए विपक्ष की आलोचनाओं को गंभीरता से खारिज किया है। आयोग ने सवाल उठाया कि क्या उसे फर्जी, मृत या पलायन कर चुके मतदाताओं को भी वोट देने की अनुमति दे देनी चाहिए? चुनाव आयोग का जवाब, बिहार की राजनीति में छिड़े इस विवाद को नया मोड़ दे सकता है। एक ओर आयोग मतदाता सूची को निष्पक्ष बनाने पर जोर दे रहा है, तो दूसरी ओर विपक्ष इसे जनसंख्या नियंत्रण और राजनीतिक गणित से जोड़कर देख रहा है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा बिहार चुनाव 2025 की रणनीति का केंद्र बन सकता है।

"क्या फर्जी वोटर लोकतंत्र के हकदार हैं?"

चुनाव आयोग ने बयान में कहा- भारत का संविधान, भारतीय लोकतंत्र की जननी है। तो क्या सिर्फ विरोध के डर से आयोग को भ्रमित हो जाना चाहिए और उन लोगों को लाभ देना चाहिए जो मृत मतदाताओं के नाम पर फर्जी मतदान करते हैं? आयोग ने आगे कहा कि यह आवश्यक है कि मतदाता सूची सटीक, निष्पक्ष और पारदर्शी हो ताकि लोकतंत्र की नींव मजबूत बनी रहे। चुनाव आयोग के मुताबिक बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के दौरान जो प्रारंभिक आंकड़े सामने आए हैं, उनके मुताबिक 20 लाख मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है। 28 लाख मतदाता स्थाई रूप से पलायन कर गए हैं। एक लाख मतदाताओं का कोई रिकॉर्ड नहीं है और सात लाख वोटर एक से अधिक स्थानों पर दर्ज। इसके चलते कुल 56 लाख नामों के हटने की आशंका जताई जा रही है।

अभी भी 15 लाख फॉर्म लंबित

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चुनाव आयोग ने बताया है कि इस विशेष पुनरीक्षण अभियान के तहत अब तक 7.7 करोड़ (90.89%) फॉर्म एकत्र किए जा चुके हैं। इनका डिजिटलीकरण भी पूरा कर लिया गया है और करीब 15 लाख मतदाताओं ने अभी भी फॉर्म जमा नहीं किए हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि वह राजनीतिक दलों के साथ मिलकर इन बचे हुए फॉर्म को एकत्र करने के प्रयास कर रहा है। बता दें कि बिहार विधानसभा और संसद में विपक्ष ने इसे "जनता से मतदान का अधिकार छीनने की साजिश" बताया है। कई नेताओं का कहना है कि यह अभियान बीजेपी के इशारे पर किया जा रहा है ताकि विशेष समुदायों के वोटर लिस्ट से नाम हटाए जा सकें।

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