Advertisment

Holi Festiwal: मुस्लिम नवाब ने 18 वीं सदी में शुरू किया था प्रसिद्ध लाट साहब का जुलूस, सौहार्द का है प्रतीक

जुलूस की परंपरा 18वीं सदी की बताई जाती है, जिसे शाहजहांपुर के अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां ने 1746 के आस-पास शुरू किया था। यही भारत की परंपरा है, जिसमें भाईचारे, सौहार्द के साथ पर्व मनाए जाते थे। 

author-image
Mukesh Pandit
JULUS

Photograph: (file)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

Laat Sahab Julus: लाट साहब का जुलूस, उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में होली के दिन निकाला जाने वाला बेहद अनूठा पारंपरिक जुलूस है। इसमें एक व्यक्ति को "लाट साहब" बनाकर भैंसा गाड़ी पर बिठाया जाता है और उसे जूते-चप्पल से पीटा जाता है। इस जुलूस को जूतामार होली भी कहा जाता है। इस जुलूस की परंपरा 18वीं सदी की बताई जाती है, जिसे शाहजहांपुर के अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां ने 1746 के आस-पास शुरू किया था। यही भारत की परंपरा है, जिसमें भाईचारे, सौहार्द के साथ पर्व मनाए जाते थे। जुलूस के आयोजकों का कहना है कि लाट साहब की तलाश होली से एक महीने पहले शुरू कर दी जाती है।

Advertisment

लाट साहब जुलूस की खास बातें

इस जुलूस की परंपरा 18वीं सदी की बताई जाती है। शाहजहांपुर के अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां ने 1746 के आस-पास यह परंपरा शुरू की थी। ब्रिटिश शासन में गवर्नर को लाट साहब कहा जाता था। ब्रिटिश शासन के प्रति वितृष्णा की भावना के चलते, लाट साहब बनाए गए व्यक्ति को जूते से पीटने का रिवाज शुरू हुआ था। आजादी के बाद इस जुलूस का नाम लाट साहब का जुलूस रख दिया गया। इस जुलूस में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया जाता है। 

भैंसा गाड़ी पर निकलते हैं लाट साब

Advertisment

शाहजहांपुर में होली के त्योहार पर लाट साहब के जुलूस में एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है। फूलमती देवी मंदिर में लाट साहब के मत्था टेकने के बाद यह जुलूस शुरू होकर कोतवाली पहुंचता है। परंपरा है कि कोतवाल लाट साहब को सलामी देते हैं। जब लाट साहब कोतवाल से पूरे साल में हुए अपराधों का ब्योरा मांगते हैं। तब कोतवाल इनाम के तौर पर उन्हें नकद और एक शराब की बोतल देते हैं। यह जुलूस शहर के काफी बड़े इलाके से होकर गुजरता है। इस दौरान हुरियारे लाट साहब के जयकारों के बीच उन्हें जूतों से मारते हैं। इसी तरह छोटे लाट साहब के भी आधा दर्जन से ज्यादा जुलूस मोहल्लों में निकाले जाते हैं।

300 साल पुरानी परंपरा

जुलूस के आयोजकों का कहना है कि लाट साहब की तलाश होली से एक महीने पहले शुरू कर दी जाती है। लाट साहब बनाए गए शख्स को गुप्त स्थान पर रखा जाता है और उसके खाने-पीने का पूरा ख्याल रखा जाता है। स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज में इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर विकास खुराना ने कहा कि शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक विवाद के चलते फर्रुखाबाद चले गए थे और वर्ष 1729 में 21 वर्ष की उम्र में वह शाहजहांपुर वापस आए थे। एक बार होली के पर्व पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के मानने वाले लोग होली खेलने उनके घर गए। नवाब ने उनके साथ होली खेली. बाद में नवाब को ऊंट पर बैठाकर पूरे शहर का एक चक्कर लगाया गया। तब से यह परंपरा बन गई।

Advertisment

आजादी के बाद जूते मारने का रिवाज आया

पहले ये जुलूस बहुत ही तहजीब के साथ निकाला जाता था मगर आजादी के बाद इस जुलूस का नाम लाट साहब का जुलूस रख दिया गया. अंग्रेजी शासन में आमतौर पर गवर्नर को लाट साहब कहा जाता था. बाद में लाट साहब बने व्यक्ति को जूते मारने का रिवाज शुरू हो गया जिस पर आपत्ति भी दर्ज कराई गई और मामला कोर्ट पहुंचा, मगर अदालत ने इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।

अब सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखना बड़ी चुनौती

Advertisment

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में होली के मौके पर निकलने वाला 'लाट साहब' का जुलूस  इस बार पुलिस प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होगा? जुलूस के दिन ही जुमे की नमाज  है। ऐसे में पुलिस प्रशासन ने जुलूस को शांतिपूर्वक तरीके से निकालने के लिए मुस्तैदी से काम शुरू कर दिया है।  उसी रोज जुमे की नमाज भी है। लिहाजा जोनल और स्टैटिक मजिस्ट्रेट को जुलूस के रास्ते में हर तिराहे और चौराहे पर तैनात किया जाएगा। लाट साहब का जुलूस के दौरान खुफिया निगरानी होगी। जुलूस के रास्ते पर पड़ने वाली सभी मस्जिदों को नगर निगम द्वारा मोटी प्लास्टिक से पूरी तरह ढंक दिया गया है। जुलूस के लिए सड़कों और छोटी गलियों पर बैरिकेडिंग हो रही है।

Advertisment
Advertisment