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मुसलमानों का पवित्र माह रमजान चल रहा है। जुम्मे के दिन वह पाक होकर नमाज पढ़ने मस्जिदों में जाते हैं। इस बार हिदुंओं का त्योहार होली भी जुम्मे (शुक्रवार) के ही दिन पड़ रहा है। नेताओं की ओर से दोनों समुदायों के मध्य बनाई गई नफरत की दीवार से पुलिस प्रशासन अलर्ट है और वह पीस कमेटियों की बैठक कर रहा है, तो कोई संभल में तो कोई नेता अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रंग खेलने को लेकर जहर उगल रहा है और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है। मगर मुरादाबाद के मूंढापांडे ब्लॉक का वीरपुरवरियार उर्फ खरक गांव के मुसलमान भाईचारे में खाई पैदा करने वालों को पैगाम दे रहे हैं। यहां के मुसलमान और हिंदू संग-संग होली खेलते हैं और यह परंपरा कई दशक से चली आ रही है।
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बसंतपंचमी से मुस्लिम भाई होली खेलने की शुरू कर देते हैं तैयारी
जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूरी पर बसे वीरपुर वरियारपुर गांव में मुसलमान वसंत पंचमी के दिन से ही यहां के मुसलमान होली की तैयारियों में जुट जाते हैं। होलिका दहन से सात आठ दिन पहले गांव का माहौल ही बदल जाता है। गांव में लगने वाला होली का मेला भी पांच छह दिन पहले शुरू हो जाता है। चैपाल हो या चैराहा जिक्र होता है तो गांव से निकलने वाली चौपाई का। चौपाई के मुकाबले में पहला स्थान पाने को सभी बड़ी शिद्दत से जुटते हैं। आज भी गांव में होली की चौपाई खेलने की सबसे ज्यादा फिक्र बुजर्गां को रहती है। वह इस परंपरा को कायम रखना चाहते हैं और युवा पीढ़ी को हिदायत भी करते हैं।
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बुजुर्ग हाजी रशीद अहमद उर्फ भैया जी बोले उनके दादा भी खेलते थे होली
पूर्व प्रधान एवं बुजुर्ग हाजी रशीद अहमद उर्फ भैया जी कहते हैं कि हमारे दादा अल्लाह बख्श भी गांव में होली खेलने का जिक्र किया करते थे। डॉ. मुबश्शिर हुसैन और डॉ. गामा हुसैन कहते हैं कि बुजुर्गों से सुना है कि गांव में होली मनाए जाने की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। मुराद सकलैनी और हाजी रइस सकलैनी, हम्जा लाला कहते हैं कि मौजूदा वक्त में होली की तैयारियां चल रही हैं। बुजुर्ग भूरे लाला, गुड्डू लाला, प्यारे लाला, बड्डे लाला, मुन्ना लाला, चंदा लाला व शौकत लाला गांव में चौपाई निकालने की परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं।
रामपुर, बरेली, मुरादाबाद और पीलीभीत से भी आते हैं लोग
बुजुर्ग कहते हैं कि गांव में निकलने वाली चौपाई को देखने के लिए रामपुर, बरेली, मुरादाबाद और पीलीभीत के लोग भी आते हैं। कई बुजुर्गों के इंतकाल के बावजूद चौपाई की रस्म कम नहीं हुई हैं। चौपाई में अब आधुनिकता की झलक भी दिखाई देती है। गांव खरक में होली पर्व पर नए कपड़े पहनने का चलन भी अलग है। मुसलमान अमूमन ईद के मौके पर नए कपड़े पहनते हैं, लेकिन खरक में मर्द, औरतें और बच्चे होली पर नए कपड़े पहनते हैं। खोया, दूध के पकवान बनाकर मेहमानों की खातिरदारी करते हैं। हाजी रशीद भैया, डॉ. गामा और मुबश्शिर कहते है कि घर-घर में ये दस्तूर निभाया जाता है।
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मेहमानों के लिए बनाई जाती है गुझिया
महमानों की खातिरदारी गुजिया, खोया, दूध, दही और घी में शक्कर मिला कर की जाती है। वीरपुरवरियार उर्फ खरक का होली का त्योहार सांप्रदायिक एकता की मिसाल है। यहां की चौपाई और मेला देखने मुसलमान ही नहीं हिंदू भी आते हैं। परिवार के बच्चों समेत होली के मेले का पूरा आनंद लेते हैं। जगरंपुरा के पूर्व प्रधान देवेंद्र सिंह, खकपुर बाजे की सहकारी समिति के सभापति नरेश प्रताप सिंह, भानु प्रकाश यादव, भूकन सैनी व रामवतार सैनी कहते हैं कि खरक की होली सांप्रदायिक एकता की मिसाल है।