नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty - IWT) को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जारी विवाद के बीच
भारत अब इस संधि को दरकिनार करते हुए एक नई रणनीति पर काम कर रहा है। सरकार का फोकस अब उन हाइड्रोपावर परियोजनाओं पर है, जो IWT के कारण वर्षों से अटकी हुई थीं। अब इन परियोजनाओं को रफ्तार देने की तैयारी है, जिससे पाकिस्तान को बड़ा झटका लग सकता है।
IWT के नियमों से बाहर निकलने की तैयारी
IWT के तहत भारत को किसी भी नई परियोजना पर कार्य शुरू करने से पहले
पाकिस्तान को छह महीने पहले सूचना देनी होती है। लेकिन अब खबर है कि भारत सरकार पाकिस्तान के साथ IWT से जुड़ी सभी नियमित बैठकों को रोकने की योजना बना रही है। इससे पहले भारत ने संधि समाप्त करने के संकेत भी दिए थे।
हाइड्रोपावर परियोजनाओं को मिलेगी रफ्तार
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चिनाब, झेलम और सिंधु नदी क्षेत्र में किरु से क्वार तक हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स जैसे, 540 मेगावाट क्वार, 1000 मेगावाट पकल दुल, 624 मेगावाट किरु, 390 मेगावाट किरथई-1, 930 मेगावाट किरथई-2, 1856 मेगावाट सावलकोट। इन परियोजनाओं को प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाया जाएगा। इनका अनुमानित संयुक्त लाभ लगभग 10,000 मेगावाट तक हो सकता है, जिससे जम्मू-कश्मीर को बिजली आपूर्ति में बड़ी राहत मिलेगी।
डेटा शेयरिंग पर भी पुनर्विचार
भारत अब पाकिस्तान के साथ हाइड्रोलॉजिकल डेटा (Hydrological Data), विशेष रूप से बाढ़ संबंधी जानकारी साझा न करने पर भी विचार कर रहा है। वर्तमान में, IWT के तहत भारत को हर महीने और तिमाही में एक बार डेटा साझा करना होता है। अब इस व्यवस्था पर कानूनी समीक्षा चल रही है। इन योजनाओं के अलावा, भारत सरकार ने कई अन्य लंबित परियोजनाओं पर भी ध्यान देना शुरू किया है, जैसे: तुलबुल परियोजना, बगलीहार बांध, किशनगंगा प्रोजेक्, रतले और उरी बांध, लोअर कलनई योजना। ये सभी योजनाएं पाकिस्तान की आपत्तियों के चलते धीमी गति से चल रही थीं या पूरी तरह से रुकी हुई थीं।
‘फ्लशिंग’ तकनीक पर लगी थी रोक
IWT के तहत भारत अपने जलाशयों में ‘फ्लशिंग’ तकनीक, यानी जमा गाद को हटाने की प्रक्रिया भी नहीं अपना पा रहा था। अब इस प्रतिबंध को दरकिनार कर बांधों के बेहतर रखरखाव और जल संग्रहण क्षमता बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं। भारत की इस नई रणनीति से जहां देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता मिलेगी, वहीं पाकिस्तान के लिए यह एक कूटनीतिक और व्यावहारिक चुनौती बन सकती है।