Advertisment

ICAR में होगा बड़ा बदलाव, किसानों की जरूरतों पर आधारित होगी कृषि अनुसंधान नीति

ICAR अब किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर कृषि अनुसंधान की दिशा तय करेगा। कृषि विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका भी बदलेगी। जानिए क्या बोले नए DG डॉ. मांगीलाल जाट।

author-image
Dhiraj Dhillon
Dr Mangilal Jat, Director General of ICAR

Photograph: (Google)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) अब अपने अनुसंधान मॉडल में बड़ा बदलाव करने जा रहा है। किसानों की जरूरतों के अनुसार अनुसंधान को नया स्वरूप दिया जाएगा। इसके तहत कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) की भूमिका फिर से परिभाषित होगी, ताकि वे कृषि विस्तार में और अधिक प्रभावी हो सकें। साथ ही देशभर में मौजूद कृषि अनुसंधान संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली में भी व्यापक बदलाव होंगे। यह जानकारी ICAR के नवनियुक्त महानिदेशक और कृषि शिक्षा विभाग (DARE) के सचिव डॉ. मांगीलाल जाट ने एक साक्षात्कार में दी। उन्होंने कहा कि "वन आईसीएआर" (One ICAR) की अवधारणा को आगे बढ़ाया जाएगा और अनुसंधान के केंद्र में होलिस्टिक एग्री-फूड सिस्टम अप्रोच को रखा जाएगा।

कृषि की मजबूती के बिना विकसित भारत संभव नहीं

डॉ. जाट ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि है। “2047 तक विकसित भारत का सपना कृषि के विकास के बिना अधूरा है। भारत में कृषि बेहद विविधतापूर्ण है – भूमि, जलवायु, किसान वर्ग और संसाधनों के अनुसार। ऐसे में एक ही समाधान हर जगह लागू नहीं किया जा सकता। इसी कारण कृषि अनुसंधान का मूलमंत्र है – मांग आधारित और प्रासंगिक अनुसंधान।”

हर समस्या के लिए स्थानीय समाधान चाहिए

Advertisment

हर क्षेत्र की अपनी समस्याएं हैं। डॉ. जाट ने उदाहरण देते हुए बताया, “कभी देश में खाद्यान्न की कमी थी, इसलिए हरित क्रांति में उत्पादकता बढ़ाने पर जोर रहा। लेकिन अब स्थिति उलट है – अब अतिउत्पादन (Overproduction) एक चुनौती बन गई है। किसान फसलें औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं, जबकि दूसरी तरफ हम दाल और तेल विदेशों से मंगा रहे हैं। ये असंतुलन ठीक नहीं है।” उन्होंने कहा, “हमें ऐसे अनुसंधान की जरूरत है जो स्थानीय आवश्यकताओं, पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक व्यवहार्यता को ध्यान में रखे।”

जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज नहीं कर सकते

जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण और जैव विविधता की हानि जैसे मेगा-चैलेंज अब कृषि के लिए गंभीर खतरे बन चुके हैं। डॉ. जाट ने कहा, “हमें अपने अनुसंधान के ढांचे को बदलना होगा। सिर्फ उत्पादन ही कृषि की सफलता नहीं है। अब समय आ गया है कि हम पूर्व और पश्च-उत्पादन गतिविधियों, मार्केट लिंक, टेक्नोलॉजी टार्गेटिंग और बिजनेस मॉडल्स पर भी ध्यान दें।”

Advertisment

जानें क्या बदलेगा आने वाले समय में

  • कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका को अधिक प्रासंगिक और प्रभावी बनाया जाएगा।
  • अनुसंधान का फोकस किसानों की वास्तविक जरूरतों पर होगा, न कि केवल उत्पादन बढ़ाने पर।
  • कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों को एकजुट कर 'One ICAR' की अवधारणा को लागू किया जाएगा।
  • एग्री-फूड सिस्टम अप्रोच को अनुसंधान के केंद्र में रखा जाएगा।
  • उत्पादन के साथ-साथ बाजार, भंडारण, प्रसंस्करण और निर्यात पर भी रणनीति बनेगी।
agriculture
Advertisment
Advertisment