नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: भारत और पाकिस्तानइन दिनों अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने-अपने राजनयिक अभियानों के जरिए एक-दूसरे को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने जहां अपने कूटनीतिक मिशन को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के रूप में प्रस्तुत किया, वहीं पाकिस्तान का अभियान भारत को "आक्रामक" बताने और खुद को "शांति प्रिय पीड़ित" साबित करने की नाकाम कोशिश बनकर रह गया है।
भारत की रणनीति: आतंकवाद पर सख्ती
भारत ने सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों को 33 देशों में भेजा, जिनमें ताजिकिस्तान, कोलंबिया, ब्राज़ील और पनामा जैसे देश शामिल हैं। भारत का स्पष्ट संदेश है: अब आतंकवाद को लेकर "
जीरो टॉलरेंस"। भारत ने साफ कहा कि पाकिस्तान का न्यूक्लियर ब्लैकमेल अब नहीं चलेगा और यदि भविष्य में कोई आतंकी हमला होता है, तो सख्त जवाब मिलेगा। भारत को अपने इस रुख के लिए सऊदी अरब, फ्रांस, इटली और इंडोनेशिया जैसे देशों का समर्थन भी मिला है। शशि थरूर जैसे वरिष्ठ नेता भारत का पक्ष मजबूती से रखते नजर आए। उन्होंने दुनिया को बताया कि पाकिस्तान आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह देता है, उन्हें ट्रेनिंग देता है और खुलेआम उन्हें हथियारों से लैस करता है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: जल विवाद और भारत की शिकायतें
दूसरी ओर, पाकिस्तान ने अपने प्रतिनिधिमंडल को अमेरिका, यूके, ब्रुसेल्स और रूस भेजा। पीपीपी नेता बिलावल भुट्टो जरदारी और पीएम शहबाज शरीफ के सलाहकार तारिक फातमी जैसे नेता इन मिशनों का नेतृत्व कर रहे हैं। लेकिन ये अभियान आतंकवाद के ठोस समाधान की दिशा में काम करने के बजाय भारत की ‘चुगली’ करने तक सीमित रह गए हैं। बिलावल ने UN महासचिव से मुलाकात में भारत पर “जल युद्ध” थोपने का आरोप लगाया, लेकिन इस बात का कोई जवाब नहीं दिया कि भारत को सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करने की नौबत क्यों आई।
भारत का तर्क, हालात बदल चुके हैं
भारत के प्रतिनिधियों ने यह तर्क दिया कि सिंधु जल समझौता अब उस संदर्भ में नहीं रह गया है, जिस आधार पर वह बना था। जलवायु परिवर्तन, तकनीकी और जनसांख्यिकीय बदलाव, और सबसे अहम – सीमा पार आतंकवाद – ने हालात को मूलतः बदल दिया है।
पहले आतंकवाद खत्म करें, फिर बात करें
ब्राजील में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे शशि थरूर ने पाकिस्तान के बयानों को खारिज करते हुए दो टूक कहा: “अगर आप बातचीत चाहते हैं, तो पहले आतंकवाद के ढांचे को खत्म करें।” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर पाकिस्तान निर्दोष है, तो वांटेड आतंकियों को वहां खुली छूट क्यों मिली हुई है? रूस में फातमी की लावरोव से मुलाकात के दौरान भी पाकिस्तान सिंधु जल संधि पर ही रोता रहा, जबकि आतंकवाद के मुद्दे पर कोई जवाब नहीं दे सका। पाकिस्तान OIC जैसे इस्लामी संगठनों से भी भारत पर दबाव डालने की गुहार लगा रहा है।
भारत को मिल रहा है वैश्विक समर्थन, पाकिस्तान अलग-थलग
भारत के पास जहां आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट नीति, तथ्य और वैश्विक समर्थन है, वहीं पाकिस्तान बार-बार "विक्टिम कार्ड" खेलता नजर आता है। कश्मीर को "गले की नस" बताने वाला पाकिस्तान जब तक अपने भीतर पल रहे आतंकी ढांचे पर लगाम नहीं लगाएगा, तब तक दुनिया को उसकी बातें संदेहास्पद लगती रहेंगी। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का अभियान आतंकवाद विरोधी नैरेटिव के चलते ज़्यादा प्रभावी साबित हो रहा है। पाकिस्तान के पास बयानबाज़ी के सिवा दिखाने को कुछ नहीं है, और यही कारण है कि उसकी ‘चुगली कूटनीति’ अब उसे वैश्विक समर्थन दिलाने में असफल हो रही है।
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