वाराणसी, आईएएनएस। अंतरराष्ट्रीय गौरैया दिवस के मौके पर वाराणसी के ककरमत्ता निवासी नवनीत पांडेय 'अतुल' गौरैया को बचाने के लिए एक अनोखी मुहिम चला रहे हैं। अतुल ने इस छोटी चिड़िया को विलुप्त होने से बचाने के लिए अपने घर पर 'गौरैया कॉलोनी' बनाई है, जहां सैकड़ों गौरैया चहचहाती नजर आती हैं। उनका मकसद सिर्फ गौरैया को बचाना ही नहीं, बल्कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता फैलाना भी है। आज जब पूरा देश विश्व गौरैया दिवस मना रहा है, तब भी गौरैया की घटती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है।
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लकड़ी के घोंसले और मिट्टी के पानी पात्र मुफ्त में
व्यग्र फाउंडेशन के संस्थापक और अध्यक्ष अतुल पांडेय की यह पहल इस चिंता को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो रही है। व्यग्र फाउंडेशन के तहत अतुल लोगों को जन्मदिन, शादी जैसे खुशी के मौकों पर और यहां तक कि मृत्यु के बाद होने वाली तेरहवीं जैसे शोक के अवसरों पर लकड़ी के बने घोंसले और मिट्टी के पानी के पात्र मुफ्त में बांटते हैं। नवरात्रि जैसे त्योहारों में नव कन्याओं को भी ये उपहार दिए जाते हैं।
देश-विदेश में हजारों घोंसले बांटे
उन्होंने बातचीत में बताया कि कि हर घर में एक घोंसला लगाने से गौरैया फिर से हमारे आसपास लौट सकती है। इस पहल के जरिए वे लोगों को यह संदेश देना चाहते हैं कि गौरैया को बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। अब तक देश-विदेश में हजारों घोंसले बांटे जा चुके हैं, जिनमें फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी शामिल हैं। हम कोई मौका नहीं छोड़ते। हर अवसर को गौरैया संरक्षण से जोड़ते हैं।
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पूरी तरह ईको-फ्रेंडली है 'गौरैया कॉलोनी'
अतुल ने अपने घर को गौरैया के लिए एक सुरक्षित ठिकाने में बदल दिया है। इस 'गौरैया कॉलोनी' में लकड़ी के घोंसले, टीन शेड, जालियां और खेलने के लिए शीशे लगाए गए हैं। साफ-सफाई के लिए दरवाजे बनाए गए हैं और एक ऑक्सीजन पार्क भी तैयार किया गया है, जिसमें नीम, पीपल और बांस जैसे पौधे लगाए गए हैं। यह माहौल गौरैया के लिए पूरी तरह ईको-फ्रेंडली है।
अतुल बताते हैं कि इस कॉलोनी की शुरुआत दस साल पहले हुई थी, जबकि व्यग्र फाउंडेशन की स्थापना का आधिकारिक दिन 9 जून, 2018 माना जाता है। इस कॉलोनी में गौरैया न सिर्फ रहती हैं, बल्कि प्रजनन भी करती हैं।
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...ताकि हर घर गौरैया का ठिकाना बने
देवरिया जिले के मूल निवासी अतुल कहते हैं कि गांव में उनके बचपन में आंगनों में गौरैया की चहचहाहट आम थी। लेकिन शहरों में कंक्रीट के जंगलों ने इनका ठिकाना छीन लिया। इसी कमी को महसूस कर वे इस मुहिम से जुड़े। वे लोगों को लकड़ी के घोंसले, पानी के पात्र और गौरैया के पसंदीदा ककूनी व बाजरा जैसी चीजें मुफ्त में देते हैं, ताकि हर घर गौरैया का ठिकाना बन सके। उनकी यह कोशिश अब वैश्विक स्तर पर पहचान बना रही है।
घर में गौरैया प्रजनन करती
अतुल के छोटे भाई जयंत सिंह शर्मा और सहयोगी पप्पू यादव भी इस मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। जयंत ने अतुल से प्रेरणा लेकर अपने घर में पांच घोंसले लगाए, जिनमें से तीन में गौरैया ने घोंसला बनाकर बच्चे दिए। वे बताते हैं कि हर साल मार्च और सितंबर में उनके घर में गौरैया प्रजनन करती है। जयंत कहते हैं, “अतुल भैया मेरे गुरु हैं। उन्होंने बनारस और देवरिया में लोगों की छतों पर ऑक्सीजन पार्क बनवाए और गौरैया के लिए माहौल तैयार किया।”
वहीं, पप्पू यादव 'गौरैया एक्सीडेंट क्लब' के जरिए लोगों को जागरूक करते हैं। वे अपने घर पर भी घोंसले लगाते हैं और दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं।
इस अभियान ने न सिर्फ स्थानीय लोगों को, बल्कि देश-विदेश के बड़े नेताओं, समाजसेवियों और बॉलीवुड हस्तियों को भी जोड़ा है। अतुल की मेहनत से गौरैया के प्रति लोगों में लगाव बढ़ा है। उनकी यह पहल अब एक मिसाल बन चुकी है। वे कहते हैं, “हमारा सपना है कि हर घर में गौरैया की चहचहाहट फिर से सुनाई दे।” यह प्रयास न केवल गौरैया को बचाने की दिशा में कारगर है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है।
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