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NCERT की किताबों में बड़ा बदलाव! हटाए गए इतिहास के ये चैप्टर

NCERT ने अपनी किताबों में बड़े बदलाव किए हैं, मुगल साम्राज्य और टीपू सुल्तान के चैप्टर हटाए गए हैं। 12वीं की इतिहास और राजनीति विज्ञान की किताबों में ये बदलाव 2025-26 के सत्र से लागू होंगे। जानें क्या है वजह और किन नए अध्यायों को जोड़ा गया है?

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Ajit Kumar Pandey
NCERT की किताबों में बड़ा बदलाव! हटाए गए इतिहास के ये चैप्टर | यंग भारत न्यूज

NCERT की किताबों में बड़ा बदलाव! हटाए गए इतिहास के ये चैप्टर | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । NCERT ने 2025-26 के शैक्षणिक सत्र के लिए अपनी किताबों में कई बड़े बदलाव किए हैं। खासकर इतिहास और राजनीति विज्ञान में। मुगल साम्राज्य, टीपू सुल्तान और ऑपरेशन सिंदूर जैसे अध्यायों को संशोधित किया गया है। जबकि कुछ नए विषयों को जोड़ा गया है। इस बदलाव से शिक्षा जगत में एक नई बहस छिड़ गई है कि क्या यह इतिहास को दोबारा लिखने की कोशिश है? इस स्टोरी में हम उन सभी बदलावों का विश्लेषण करेंगे।

आपको बता दें कि पिछले कुछ सालों से शिक्षा के क्षेत्र में चल रही बहसें अब ज़मीनी हक़ीक़त में बदल रही हैं। साल 2025 के शैक्षणिक सत्र के लिए एनसीईआरटी (NCERT) ने अपनी किताबों में जो बदलाव किए हैं, वे न सिर्फ छात्रों बल्कि शिक्षाविदों और इतिहासकारों के लिए भी एक बड़ा मुद्दा बन गए हैं। सबसे ज्यादा चर्चा मुगल साम्राज्य और टीपू सुल्तान से जुड़े अध्यायों को हटाने को लेकर है।

आपको याद होगा कि पिछली बार भी कई अध्याय हटाए गए थे, लेकिन इस बार का बदलाव ज्यादा व्यापक और चौंकाने वाला है। 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब 'थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री' (Themes of Indian History) में 'मुगल कोर्ट्स' (Mughal Courts) और 'शासक और विभिन्न इतिवृत्त' (Rulers and Chronicles) जैसे अध्यायों को पूरी तरह से हटा दिया गया है। इसी तरह 10वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब से 'लोकतंत्र और विविधता' (Democracy and Diversity) और 'लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन' (Popular Struggles and Movements) जैसे अध्याय भी हटा दिए गए हैं।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर ये बदलाव क्यों किए गए हैं? 

आधिकारिक तौर पर NCERT का कहना है कि यह "सिलेबस को युक्तिसंगत" बनाने का प्रयास है, ताकि छात्रों पर से अनावश्यक बोझ कम हो सके। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह इतिहास का राजनीतिकरण है और एक खास एजेंडे के तहत कुछ अध्यायों को हटाया जा रहा है।

सिर्फ मुग़ल ही नहीं, ये अध्याय भी हुए 'गायब'

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यह बदलाव सिर्फ मुग़ल काल तक ही सीमित नहीं है। कई अन्य महत्वपूर्ण अध्यायों को भी किताबों से बाहर कर दिया गया है। आइए, जानते हैं कौन-कौन से अध्याय अब किताबों में नहीं दिखेंगे।

11वीं कक्षा की इतिहास की किताब: 'इस्लाम का उदय' (The Rise of Islam) और 'संस्कृति का टकराव' (The Clash of Cultures) जैसे अध्यायों को भी हटा दिया गया है।

12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब: 'समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व' (US Hegemony in World Politics) और 'शीत युद्ध' (The Cold War) जैसे अध्यायों को भी हटाया गया है।

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12वीं कक्षा की समाजशास्त्र की किताब: 'भारतीय समाज में विविधता' (Diversity in Indian Society) जैसे अध्यायों को संशोधित किया गया है।

इन बदलावों के पीछे तर्क यह दिया गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान छात्रों के नुकसान की भरपाई के लिए सिलेबस को छोटा किया जा रहा है। लेकिन कई शिक्षाविदों का कहना है कि ये अध्याय भारतीय और विश्व इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्से हैं और इन्हें हटाना छात्रों के ज्ञान को सीमित कर सकता है।

क्या जुड़ा नया? 'ऑपरेशन सिंदूर' और अन्य अध्याय

एक तरफ जहां कुछ अध्यायों को हटाया गया है तो वहीं कुछ नए विषयों को भी जगह दी गई है। इनमें से एक सबसे प्रमुख है 'ऑपरेशन सिंदूर'। यह अध्याय मुख्य रूप से भारतीय सेना के वीरतापूर्ण अभियानों पर केंद्रित है। इसके अलावा, भारतीय संस्कृति और प्राचीन भारतीय गणित से जुड़े कुछ विषयों को भी शामिल किया गया है।

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विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि इससे छात्रों को भारत की अपनी गौरवशाली विरासत और सैन्य इतिहास के बारे में जानने का मौका मिलेगा। हालांकि, यह भी एक बहस का विषय है कि क्या इन नए अध्यायों का समावेश उन अध्यायों को हटाने का औचित्य साबित करता है, जो भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण पहलू थे।

क्या ये बदलाव सही हैं?

पक्ष में तर्क: सिलेबस का बोझ कम होगा, छात्रों को सिर्फ जरूरी चीजें पढ़ने को मिलेंगी और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।

विपक्ष में तर्क: इतिहास से छेड़छाड़ हो रही है। छात्रों को इतिहास का अधूरा ज्ञान मिलेगा और यह एक राजनीतिक एजेंडा है।

क्या यह इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश है?

NCERT की किताबों में यह बदलाव सिर्फ शैक्षणिक नहीं बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक भी है। सरकार का कहना है कि यह छात्रों के हित में है लेकिन, कई आलोचक इसे एक खास विचारधारा को बढ़ावा देने की कोशिश मान रहे हैं।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इन बदलावों का क्या प्रभाव पड़ता है। क्या छात्र सच में बोझ मुक्त होंगे या फिर इतिहास का एक बड़ा हिस्सा उनके ज्ञान से अछूता रह जाएगा? यह सवाल आज भी हवा में है और इसका जवाब शायद आने वाले सालों में ही मिल पाएगा।

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