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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । कभी खाई, कभी चट्टान और कभी बर्फबारी-इन तमाम चुनौतियों को मात देते हुए जब भारतीय इंजीनियरिंग ने चेनाब नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज खड़ा किया, तो ये सिर्फ एक संरचना नहीं रही, बल्कि ये बन गई ‘नई भारत’ की ताक़त की पहचान। जम्मू-कश्मीर की दुर्गम वादियों में खड़ा ये ब्रिज न सिर्फ तकनीक का चमत्कार है, बल्कि यह उस संकल्प का प्रतीक है जो देश के हर कोने को जोड़ने की भारतीय सरकार की कोशिशों को दर्शाता है।
क्या है चेनाब ब्रिज?
चेनाब ब्रिज जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में स्थित है और यह चेनाब नदी के ऊपर बनाया गया है। इसकी ऊंचाई नदी तल से 359 मीटर (1178 फीट) है, जो इसे दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज बनाती है। यह ब्रिज एफिल टावर से भी 35 मीटर ऊंचा है। इसकी कुल लंबाई 1315 मीटर है और मुख्य आर्च की स्पैन 467 मीटर है।
यह ब्रिज भारत सरकार की उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेलवे लिंक (USBRL) परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य कश्मीर घाटी को शेष भारत से रेलवे के माध्यम से जोड़ना है।
परियोजना की शुरुआत और अवधि
चेनाब ब्रिज का निर्माण एक साधारण परियोजना नहीं था। यह एक बहुप्रतीक्षित और चुनौतीपूर्ण मिशन था जिसकी नींव साल 2003 में रखी गई थी। लेकिन भौगोलिक जटिलताओं, मौसम की मार और सुरक्षा कारणों से निर्माण कार्य को कई बार रोका गया। अंततः इसे सफलतापूर्वक पूरा करने में करीब 22 साल का समय लगा।
परियोजना की शुरुआत: 2003
निर्माण कार्य का समापन: 2025
कुल समय: लगभग 22 वर्ष
कितनी आई लागत?
चेनाब ब्रिज के निर्माण में आई लागत शुरुआत में तय अनुमान से कहीं अधिक रही। प्रारंभिक लागत लगभग ₹500 करोड़ मानी गई थी, लेकिन जमीनी हालात, तकनीकी आवश्यकताएं और समय के बढ़ने के कारण अंततः इसकी लागत बढ़कर ₹1,486 करोड़ तक पहुंच गई।
कौन बना रहा था ये ब्रिज?
इस ब्रिज को भारतीय रेलवे के अंतर्गत Konkan Railway Corporation Limited (KRCL) और Afcons Infrastructure Limited ने मिलकर तैयार किया। परियोजना में लगभग 30,000 टन इस्पात, 10 मिलियन क्यूबिक मीटर कंक्रीट, और अत्याधुनिक निर्माण तकनीकों का इस्तेमाल किया गया।
तकनीकी खूबियां जो इसे खास बनाती हैं
आर्च डिजाइन: चेनाब ब्रिज एक स्टील आर्च ब्रिज है, जो उच्च तीव्रता के भूकंपों और तूफानों को भी सहने में सक्षम है।
वायुगतिकीय डिज़ाइन: इसे 266 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार वाले तूफानों को झेलने के हिसाब से डिज़ाइन किया गया है।
एंटी-टेरर स्ट्रक्चर: ब्रिज को ब्लास्ट प्रूफ बनाया गया है, ताकि आतंकवादी हमलों की स्थिति में भी यह संरचना सुरक्षित रह सके।
भूकंप रोधी निर्माण: यह जोन-V के भूकंप क्षेत्र में आता है, फिर भी यह संरचना भूकंप के सबसे उच्च स्तर को भी सह सकती है।
इस ब्रिज का सामरिक और सामाजिक महत्व
सामरिक दृष्टि: यह पुल भारतीय सेना के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम है। कश्मीर घाटी में सैनिकों और आपूर्ति को तीव्रता से पहुंचाने के लिए यह एक वैकल्पिक व सशक्त मार्ग प्रदान करता है।
सामाजिक और आर्थिक दृष्टि: यह ब्रिज केवल लोहे और सीमेंट की संरचना नहीं, बल्कि कश्मीर घाटी में नई उम्मीदों और संभावनाओं का पुल है। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार व विकास के नए द्वार खुलेंगे।
चुनौतियां जो निर्माण के दौरान सामने आईं
बर्फबारी और मौसम की मार: निर्माण स्थल पर तापमान कभी-कभी -20°C तक गिर जाता था, जिससे कार्य प्रभावित होता।
भू-स्खलन और चट्टानों की अस्थिरता: पहाड़ी इलाकों में मशीनें लगाना और उन्हें ऑपरेट करना बेहद चुनौतीपूर्ण था।
सुरक्षा की चिंता: आतंकवादी गतिविधियों की आशंका के चलते सुरक्षा के सख्त प्रबंध करने पड़े।
उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेलवे लिंक (USBRL) प्रोजेक्ट क्या है?
यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में रेलवे नेटवर्क बिछाने की सबसे महत्त्वाकांक्षी योजना है।
कुल दूरी: 272 किलोमीटर
लिंकिंग: उधमपुर से बारामुल्ला तक
मुख्य स्टेशनों में: कटरा, रियासी, बनिहाल, श्रीनगर और बारामुल्ला
प्रोजेक्ट का उद्देश्य: जम्मू-कश्मीर को अखंड भारत के साथ भौगोलिक रूप से जोड़ना।
इस परियोजना में अब तक 38 सुरंगें और 900 से ज्यादा पुल बनाए जा चुके हैं।
अब जब चेनाब ब्रिज बनकर तैयार है, तो जम्मू से श्रीनगर तक की ट्रेन यात्रा जल्द ही हकीकत बनने जा रही है। रेलवे मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि 2025 तक पूरी परियोजना चालू हो जाएगी, जिससे आम नागरिकों को श्रीनगर तक रेल यात्रा की सीधी सुविधा मिलेगी।
6 जून को PM मोदी करेंगे उद्घाटन
आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले में स्थित चेनाब नदी पर बने दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6 जून 2025 को सुबह 10 बजे करेंगे। यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेलवे लिंक (USBRL) प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है, जिसकी कुल लंबाई 272 किलोमीटर है।
चेनाब ब्रिज की ऊंचाई 359 मीटर है, जो पेरिस के एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ज्यादा ऊंचा है। यह पुल भारतीय रेलवे के इतिहास में तकनीकी चमत्कार के रूप में देखा जा रहा है, जो न केवल सामरिक दृष्टि से बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
रणनीतिक और तकनीकी महत्व
पुल की कुल लंबाई: 1315 मीटर
ऊंचाई: 359 मीटर (पानी की सतह से)
प्रोजेक्ट लागत: ₹1,486 करोड़
निर्माण एजेंसी: कोनकॉन रेलवे और AFCONS की साझेदारी
मुख्य उद्देश्य: कश्मीर घाटी को भारत के शेष हिस्से से रेलवे नेटवर्क द्वारा जोड़ना
सुरक्षा विशेषताएं: पुल पर बम प्रूफ और भूकंप रोधी तकनीक लागू की गई है
रेलवे सुरक्षा बल (RPF) का कहना है, "इस पुल की निगरानी के लिए एक अत्याधुनिक सेंसिंग और ड्रोन निगरानी तंत्र लगाया गया है, जिससे यह आतंकवादियों के निशाने से बचा रहेगा।"
रेलवे मंत्रालय द्वारा दी जानकारी के अनुसार, “यह पुल केवल इंजीनियरिंग का नहीं, बल्कि भारत की जिद और संकल्प का प्रतीक है। 20 वर्षों की मेहनत का परिणाम अब लोगों के सामने है।”
वहीं, जम्मू रेलवे मंडल के डीआरएम ई श्रीनिवास ने कहा कि इस उद्घाटन से पहले सभी संरचनात्मक टेस्ट पूरे कर लिए गए हैं और अब यह यात्री और मालगाड़ी संचालन के लिए पूरी तरह तैयार है।
पर्यावरण और संरचनात्मक मंजूरियों का रिकॉर्ड
रेल मंत्रालय के दस्तावेज़ “आदेश संख्या USBRL-2023/INFRA/264” के अनुसार, चेनाब ब्रिज को अटल बिहारी सरकार ने साल 2003 में मंजूरी दी थी और इसका आधार 2017 में बनकर तैयार हुआ। बीच में कई बार पर्यावरणीय बाधाएं और सुरक्षा कारणों से निर्माण रुका, लेकिन 2022 में ब्रिज की संरचना पूरी हो गई और अब ट्रायल रन सफल होने के बाद इसे जनता के लिए खोला जा रहा है।
समाजसेवी अखिलेश कुमार गौतम का कहना है, “इस पुल को बनाने से पहले हरियाली अधिनियम, वन संरक्षण कानून और हिमालयन संरचना संरक्षण के नियमों के तहत सभी जरूरी क्लियरेंस ली गई हैं।”
रक्षा और पर्यटन को मिलेगी नई रफ्तार
इस ब्रिज के खुलने से जहां भारतीय सेना को सर्दियों में भी कश्मीर तक सामान पहुंचाने में सुविधा मिलेगी, वहीं घरेलू पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। अनुमान है कि इस मार्ग से प्रतिदिन 12 से अधिक यात्री ट्रेनें और 8 मालगाड़ियां चलेंगी।
रेल मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया, “अगले छह महीनों में कश्मीर को दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु से जोड़ने की योजना है, जिससे घाटी को पर्यटन, व्यापार और विकास के नए अवसर मिलेंगे।”
रेलवे द्वारा जारी एक आंकड़े के अनुसार, इस परियोजना से 200+ परिवारों को स्थायी रोजगार और 400+ लोगों को अस्थायी काम मिला है।
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