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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मनमोहन ने शनिवार को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को लेकर समाज में संवेदनशीलता और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अदालतें ऐसे मामलों पर निर्णय देती रही हैं और भविष्य में भी देती रहेंगी, लेकिन केवल न्यायपालिका की भूमिका पर्याप्त नहीं है — राज्य के अन्य अंगों को भी इसमें सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
समय की मांग समाज में जागरूकता लाई जाए
न्यायमूर्ति मनमोहन ‘जजिंग एंड लायरिंग एट द मार्जिंस डिसेबिलिटी राइट्स एंड बियॉन्ड’ विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में बोल रहे थे, जिसे न्यायमूर्ति सुनंदा भंडारे फाउंडेशन और काबल (KABAL) के सहयोग से आयोजित किया गया था। कार्यक्रम के दौरान जब उनसे अदालती फैसलों के अनुपालन और क्रियान्वयन को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “समय की मांग है कि समाज में अधिक से अधिक जागरूकता और संवेदनशीलता लाई जाए। जितनी ज्यादा जानकारी होगी कि कानून क्या कहता है और अधिकार क्या हैं, उतनी ही बेहतर समझ समाज और अदालतों में विकसित होगी, जिससे अनुपालन भी बेहतर होगा।
अदालतों को अक्सर कई जटिल मामलों से निपटना पड़ता है
न्यायमूर्ति मनमोहन ने यह भी माना कि अदालतों की पहले से ही बहुत अधिक कार्यसूची है और हर दिन उन्हें कई जटिल मामलों से निपटना होता है। ऐसे में किसी एक मुद्दे को पूर्ण प्राथमिकता देना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होता। उन्होंने कहा, “इन वास्तविकताओं को समझते हुए जरूरी है कि न्यायपालिका के साथ-साथ सरकार और अन्य संस्थान भी जिम्मेदारी लें और अपने-अपने स्तर पर दिव्यांगों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करें। chief justice of india