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Ludhiana Bypoll Election: जीत ने बचा लिया ‘आप’ का वजूद, हार लाती पार्टी में निराशा–टूट, पढ़ें क्या-क्या होता नुकसान

लुधियाना पश्चिम सीट से जीत दिल्ली विस चुनावों में मिली  शिकस्त के बाद निराशा में डूबे पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए संजीवनी का काम करेगी। साथ ही माना जा रहा है कि इससे पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए राज्यसभा जाने का रास्ता साफ हो गया है। 

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Deepak Gaur
Aam Admi parti victory
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट पर हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी ने जीत दर्ज कर न केवल विधानसभा में अपनी एक सीट को सुनिश्चित कर लिया, बल्कि इस जीत ने आदमी पार्टी के वजूद पर उठते सवालों पर भी फिलहाल विराम लगा दिया है। यह सीट आप के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई थी। इस जीत के साथ संजीव अरोड़ा को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ेगा। माना जा रहा है कि इससे आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए राज्यसभा जाने का रास्ता साफ हो गया है। इतना ही नहीं, यह जीत दिल्ली विधानसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद घोर निराशा में डूबे पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए संजीवनी का काम करेगी। 

जीत से विपक्ष को दिया स्पष्ट संदेश

लुधियाना पश्चिम की सीट पर शानदार जीत हासिल करके आम आदमी पार्टी, विपक्षी दलों के उन आरोपों और सवालों का जवाब देने में जरूर कामयाब हुई है, जो यह मानकर चल रहे थे कि दिल्ली में हार के बाद आप का राजनीतिक अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और उसका वोट बैंक तेजी से खिसक रहा है। निश्चिंत ही पार्टी को इस जीत से विपक्षी दलों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलेगी।  साथ ही ढुलमुल पड़े संगनात्मक ढांचे में नई ऊर्जा का संचार होगा।  सोचिए,  यदि पार्टी को इस उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ता तो पार्टी की बची-खुची साख भी मिट्टी में मिल जाती, और पार्टी के भीतर और बाहर दोनों तरफ से आलोचनाओं की बारिश से भीगना पड़ता। बहरहाल, उपचुनावों में मिली यह जीत आने वाले समय में पार्टी की रणनीति और ताकत का टेस्ट केस बनकर सामने आएगी। 

लोकप्रियता को दिखाती है जीत 

बता दें कि आम आदमी पार्टी के पंजाब में आम आदमी पार्टी को बड़ी सफलता हाथ लगी है। लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी संजीव अरोड़ा ने जीत दर्ज कर ली है। इस सीट पर पार्टी के साथ विपक्षी दलों के नेताओं की भी नजरें लगी हुई थीं । ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के सत्ता में रहते अगर वह इस सीट को हारती तो यह , राज्य में उनकी लोकप्रियता पर सवाल उठाती। विपक्ष के लिए यह सुनहरा मौका होता , जब वह दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप को मिली करारी हार के बाद उनके गढ़ में हुए उपचुनाव में सीट हार जाता । ऐसे समय में जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी और उनके संयोजक अरविंद केजरीवाल समेत अन्य कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे हों , पार्टी के उम्मीदवार का हारना , यह सुनिश्चित करता कि अब लोगों का मोह पार्टी से भंग हो गया है । 

वोट बैंक बरकरार रहना जरूरी 

असल में, आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों ने दबी जुबां में इस बात को माना है कि पिछले दिनों पार्टी ने अपने वोटरों का भरोसा खोया है । अब भले ही इसके कुछ भी कारण हों, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनावों में पार्टी को मिली करारी हार के बाद सामने आए पहले उपचुनाव में अपनी जीत को लेकर पार्टी को भी संशय था। पार्टी का पूरा जोर इस बात पर था कि उनका वोट बैंक पार्टी के साथ बरकरार रहे। आम आदमी पार्टी और ईडी जांच, केजरीवाल की गिरफ्तारी और फंडिग मामलों का सामना करने के बीच पार्टी को अपनी आगे की रणनीति बनाते हुए इस सीट पर हर हाल में जीत दर्ज करनी ही थी। इस जीत ने न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं को यह भरोसा दिलाया है कि तमाम आरोपों के बावजूद उनके वोट बैंक में सेंध नहीं लगी है। इसके साथ ही इस जीत ने विपक्ष के आरोपों का भी जवाब दे दिया है। 

हार से गिर सकता था कार्यकर्ताओं का मनोबल

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ऐसा मानना था कि अगर आम आदमी पार्टी इस सीट पर हारती , तो पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर इसका गहरा असर पड़ता । दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी के कई बड़े नेताओं का अपनी ही पार्टी पर गंभीर आरोप लगाते हुए भाजपा के साथ चले जाने के बाद आम पर भाजपा ने कई आरोप लगाए थे। बहरहाल , उपचुनावों में मिली इस जीत ने यह संकेत दिए हैं कि अभी भी पार्टी का मतदाता , तमाम आरोपों और राजनीतिक संकटों के बावजूद पार्टी के साथ खड़ा है। 

हाल से बढ़ता संकट

बता दें कि पार्टी अगर इस सीट पर हारती तो भाजपा और कांग्रेस आम आदमी पार्टी पर हमला करते हुए कह सकती थीं कि आप का जनाधार दिल्ली के बाद अब पंजाब से भी खत्म होने लगा है। इतना ही नहीं दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी के कई बड़े नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बाद फिर से पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में असंतोष बढ़ता। खासकर दिल्ली और पंजाब यूनिट में । ऐसे में अगर कुछ नेता समय रहते अपने राजनीतिक करियर को ध्यान में रखते हुए दूसरे दलों में जाते तो पार्टी के कार्यकर्ताओं और मतदाताओं का भरोसा भी डगमगा सकता था। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे है अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के अन्य नेताओं की कानूनी लड़ाई में उनका नैतिक पक्ष कमजोर दिखता। AAP government | aap leader speech | aap news | aap news update | aap Punjab | aap party Punjab not 



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