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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS), जो खुद को निष्पक्ष और स्वतंत्र रिसर्च संस्था बताती है, उस पर अब पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह संस्था चुनावी सर्वे और राजनीतिक विश्लेषण के लिए मशहूर है और इसके साथ जुड़े हैं राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार। संजय कुमार इस समय महाराष्ट्र चुनाव में वोटों की गड़बड़ी का मुद्दा उठाकर चर्चा में हैं। हालांकि संजय कुमार अब इस मामले में बैकफुट पर जाते हुए माफी मांग चुके हैं।
क्यों चर्चा में आई CSDS
दरअसल राहुल गांधी द्वारा लगाए गए वोट चोरी के आरोपों का एक तरह सीएसडीएस ने ही आधार दिया था, हालांकि अब सीएसडीएस के संजय कुमार अपने दावों से पलटकर माफी भी मांग चुके हैं। CSDS के संजय कुमार ने दावा किया था कि लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र की रामटेक विधानसभा में कुल 4,66,203 वोटर्स थे, जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान यहां वोटर घटकर केवल 2,86,931 हो गए। यहां लोकसभा के बाद हुए विधानसभा चुनाव में वोटरों की संख्या में 38 फीसदी की कमी हुई। संजय कुमार ने देवलाली विधानसभा सीट को लेकर भी ऐसे ही दावे किए थे। उन्होंने लिखा था- लोकसभा चुनाव के दौरान यहां 4,56,072 वोटर थे, जबकि विधानसभा चुनाव में ये घटकर 2,88,141 हो गए। अब उन्होंने इस ट्वीट को डिलीट करते हुए कहा कि महाराष्ट्र चुनाव को लेकर किए गए एक्स पोस्ट के लिए मैं ईमानदारी से माफी मांगता हूं। उन्होंने कहा कि पिछले साल हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव के आंकड़ों की तुलना करते समय गड़बड़ी हो गई थी।
केंद्र से करोड़ों की फंडिंग
संसद में 7 अगस्त 2023 को शिक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए लिखित उत्तर के अनुसार, पिछले तीन साल में CSDS को 13 करोड़ रुपये की फंडिंग दी गई। मंत्रालय ने साफ किया कि संस्था की 67% फंडिंग सीधे केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से होती है। यानी सरकारी फंड पर चलने वाली यह संस्था पूरी तरह स्वतंत्र नहीं कही जा सकती।
मैं क्या करूं? बात दुखद है. पर बतानी पड़ेगी.
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) August 19, 2025
संजय कुमार जिस संस्था सीएसडीएस से जुड़े हैं, वह केंद्र सरकार के करोड़ों रुपए के फंड से चल रही है. सीएसडीएस को रिसर्च का पैसा केंद्र सरकार का शिक्षा मंत्रालय देता है.
7 अगस्त 2023 को संसद में एक प्रश्न के उत्तर में शिक्षा मंत्रालय… pic.twitter.com/bUFVQ8QOX6
पारदर्शिता पर सवाल
विवाद की असली जड़ यह है कि CSDS-लोकनीति का रॉ डाटा आम जनता या छात्रों को आसानी से उपलब्ध नहीं कराया जाता। शोधार्थियों और स्टूडेंट्स को यह डाटा पाने के लिए भारी-भरकम फीस चुकानी पड़ती है और फिर भी उन्हें बेहद सीमित जानकारी ही मिलती है। जबकि CSDS और इसके जुड़े विश्लेषक लगातार चुनाव आयोग से पारदर्शिता की मांग करते रहते हैं। आलोचकों का कहना है कि जब संस्था खुद डाटा सार्वजनिक नहीं करती तो दूसरों से पारदर्शिता की अपेक्षा करना विरोधाभासी है।
छात्रों को हो रहा नुकसान
देशभर के हजारों-लाखों स्टूडेंट्स, जो चुनाव और समाज से जुड़े डाटा पर रिसर्च करना चाहते हैं, उन्हें इस नीति का नुकसान उठाना पड़ रहा है। CSDS का डाटा बंद दरवाजों के पीछे सीमित लोगों तक ही पहुंचता है, जबकि बाकी संस्थाओं से खुले डाटा की मांग की जाती है। सोशल मीडिया पर कई लोग कह रहे हैं कि सरकारी फंड से चलने वाली संस्था को अपने डाटा को सार्वजनिक करना चाहिए ताकि रिसर्च और अकादमिक कार्य में पारदर्शिता बनी रहे। वहीं, शिक्षा मंत्रालय और आईसीएसएसआर से भी जवाबदेही की मांग उठ रही है।
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