Advertisment

India’s First Female Prime Minister: 'गूंगी गुड़िया' से कैसे आयरन लेडी बन गई थीं इंदिरा गांधी

इंदिरा देश की पहली महिला प्रधानमंत्री रहीं। दृढ़ निश्चयी व इरादों की पक्की इंदिरा को उनके कुछ कठोर और विवादास्पद फैसलों के कारण भी याद किया जाता है। 1975 में आपातकाल की घोषणा और 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के फैसले भारी पड़े।

author-image
Mukesh Pandit
Indora gandhi

Photograph: (साभार Magnum)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

नयी दिल्ली, वाइबीएन नेटवर्क

Advertisment

वर्ष के पहले महीने का 19वां दिन भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक बड़ी जगह रखता है। 1966 में वह 19 जनवरी का ही दिन था, जब इंदिरा गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी ने वह कुर्सी संभाली जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार उनके पिता जवाहर लाल नेहरू ने संभाली थी। वह 1967 से 1977 और फिर 1980 से 1984 में उनकी मृत्यु तक इस पद पर रहीं। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इंदिरा को संसद में कई बार 'गूंगी गुड़िया' कहकर संबोधित किया था, लेकिन वह गूंगी गुड़िया आगे चलकर एक आयरन लेडी कहलायीं और पाकिस्तान का विभाजन करके बांग्लादेश बनाने में उनकी भूमिका के लिए भी इंदिरा को याद किया जाता है। इसके बाद किसी ने उन्हें दुर्गा कहकर पुकारा, किसी ने आयरन लेडी की उपाधि से नवाजा।

INdia
Indira Gandhi at a congress session, Delhi. India. 1966 Photograph: (साभार Magnum)

 Delhi Election 2025: केजरीवाल की कार पर पथराव, भाजपा का आरोप- हमारे दो कार्यकर्ताओं को टक्कर मारी

Advertisment

इंदिरा पर आपातकाल का भी  लगा 'दाग'

इंदिरा गांधी देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। दृढ़ निश्चयी और अपने इरादों की पक्की इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी को उनके कुछ कठोर और विवादास्पद फैसलों के कारण याद किया जाता है। 1975 में आपातकाल की घोषणा और 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के फैसले उनके जीवन पर भारी पड़े। आपातकाल के बाद जहां उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी वहीं स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के फैसले की कीमत उन्हें अपने सिख अंगरक्षकों के हाथों जान देकर चुकानी पड़ी।

INDIRA MARRIGE
Photograph: (Archive)
Advertisment

 ये भी पढ़े:- Delhi Election 2025: 70 सीटों पर 981 उम्मीदवार, केजरीवाल के खिलाफ मैदान में उतरे 28 प्रत्याशी

इंदिरा प्रियदर्शनी से इंदिरा गांधी बनने की कहानी

इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद के फिरोज जहांगीर घांदी से शादी की। इसके बाद ही वह इंदिरा प्रियदर्शनी नेहरू से इंदिरा गांधी बन गई। इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है। उनके पति फिरोज गांधी का वास्तविक नाम फिरोज जहांगीर 'घांदी' था, जो स्वादिष्ट धानसाक डिश की तुलना में अधिक पारसी था। इंदिरा की मदद से, घांदी में थोड़ा परिवर्तन कर इसे गांधी बना दिया गया और कांग्रेस नेटवर्क ने इसका नेहरू-गांधी परिवार के रूप में बढ़-चढ़ कर प्रचार किया। इसके साथ ही परिवार जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के एक अकाट्य मेल का प्रतिनिधित्व करने लगा।

Advertisment
INdira
Photograph: (Archive)

 

मोरारजी को हराकर हासिल की पीएम की कुर्सी

वर्ष 1966 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद में आकस्मिक निधन के बाद, पार्टी के रूढ़िवादी धड़े के उम्मीदवार मोरारजी देसाई को हराकर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। इस वास्तविकता से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि नेहरू की बेटी थीं, 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण यही बना था.। इससे निश्चित ही पार्टी के दक्षिणपंथी धड़े में उनके खिलाफ कुछ विरोधी उत्पन्न हुए। इस गुट को शांत करने के लिए उन्होंने केरल की  सत्ता में आई प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता और पहले मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद की सरकार को बर्खास्त करके वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। विडंबना तो यह थी कि खुद इंदिरा को उसी साल पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था।

दक्षिणपंथ की ओर था झुकाव

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि शुरुआत में उनका झुकाव दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर था, लेकिन इंदिरा गांधी ने 1969 में कांग्रेस के विभाजन, बैंकों के राष्ट्रीयकरण से और राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स बंद करने जैसे अहम फैसले लेकर इसे संतुलित कर दिया था। हालांकि, लंदन स्थित टाइम्स की पत्रकार पीटर हेजलहर्स्ट उन्हें 'स्वार्थ की ओर झुकाव' वाला बताती थीं। कट्टर समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इंदिरा को संसद में  'गूंगी गुड़िया' तक कहते थे। लेकिन उन्होंने इसका कभी प्रतिकार नहीं किया और बाद में आग चलकर खुद को एक सशक्त राजनेता और कड़े फैसले लेने वाली प्रधानमंत्री साबित किया।

INdira
Photograph: (Archive)

 

इंदिरा के नाम दर्ज उपलब्धियां

वर्ष 1966 में अपने पहले चुनाव के बाद श्रीमती गांधी की लोकप्रियता उनके 'हरित क्रांति' कार्यक्रम के साथ बढ़ी, जो खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाला कार्यक्रम था। बाद में पाकिस्तान युद्ध को नियंत्रित करने में उनकी भूमिका, जिसके परिणामस्वरूप 1971 में बांग्लादेश का गठन हुआ। एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए समर्पित, जिसमें कोई भी जाति या धर्म दूसरों के साथ भेदभाव या वर्चस्व नहीं कर सकता था, उन्हें अपने पिता द्वारा अपनाए गए वामपंथी आदर्श विरासत में मिले थे, जो काफी हद तक मार्क्सवादी सिद्धांतों से थे। उनके व्यावहारिक कार्यालय के तरीके ने उन्हें भ्रष्टाचार से दूर रहने की एक दुर्जेय प्रतिष्ठा दिलाई। हालांकि, राजनीतिक जीवन में एक महिला होने का अर्थ था कि उन्हें अनूठी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा।

Indira funaral
Cremation of Indira Gandhi, Dehli, India. 1984. Photograph: (साभार Magnum)

  ये भी पढ़े:-Sheila Dikshit की तारीफ क्यों कर रहे Arvind Kejriwal, क्या हैं इसके सियासी मायने?

31 अक्टूबर की वो सुबह

31 अक्टूबर की सुबह, इंदिरा दिल्ली के अपने घर में थीं। यह दिन भी किसी अन्य दिन की तरह ही शुरू हुआ था। ब्रिटिश अभिनेता पीटर उस्तीनोव के साथ लॉन में इंदिरा गांधी के साथ एक इंटरव्यू की तैयारी थी। पीटर इंदिरा गांधी पर एक डाक्यूमेंट्री बना रहे थे। बेअंत सिंह इंदिरा गांधी के अंगरक्षक थे। जब इंदिरा, पीटर से मिलने के लिए जा रही थी बेअंत ने रास्ते में उन पर हमला कर दिया। पीटर उस्तीनोव के अनुसार, 'हम पचास यार्ड की दूरी पर थे। शुरू में गोलियां चलने की तीन आवाजें आईं। मेरे साथ एक इंडियन कैमरामैन था। गोलियों की आवाज आई तो कैमरामैन ने कहा, लगता है कोई फिर पटाखे छोड़ रहा है। जब मशीनगन की आवाज आई तब समझ में आया, ये पटाखे नहीं थे।' इंदिरा का गोलियों से छलनी शरीर जमीन पर पड़ा हुआ था। इस तरह से एक युग खत्म हो गया। जैसे ही इंदिरा गांधी के मरने की खबर फैली भारत के राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई। इंदिरा के बेटे राजीव गांधी कोलकाता से लौटे रहे थे और तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह खबर सुन विदेश यात्रा से वापस आ रहे थे। राजीव गांधी ने  इंदिरा गांधी की जगह प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। लोग इंदिरा की मौत की खबर से बुरी तरह सन्न थे। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था। दुख गुस्से और आक्रोश का रूप लेता जा रहा था। इसकी परिणिति बेहग दुखदायी रही। दिल्ली में सिखों का जो कत्लेआम हुआ, वह आज भी भारत के इतिहास की काली घटनाओं में दर्ज हो चुका है।

Advertisment
Advertisment