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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर राज्यसभा में अपनी हंगामेदार पारी का अंत कर दिया। वकील से नेता बने धनखड़ सबसे पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए ममता सरकार से लगातार टकराव के कारण सुर्खियों में आए थे। अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद धनखड़ का कार्यकाल राज्यसभा के सभापति के रूप में शुरू हुआ। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) पर सुप्रीम कोर्ट के 2015 के फैसले को संसदीय संप्रभुता के खिलाफ बताया था।
खरगे को लेकर बयान पर मचा बवाल
आरएसएस पर बेबाक राय
न्यायाधीश प्रस्ताव पर सख्त रुख
खरगे को लेकर बयान पर मचा बवाल
पिछले साल जून में एक पेपर लीक मामले पर विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खरगे के वेल में विरोध करने को धनखड़ ने संसद पर धब्बा बताया था। इस बयान को लेकर सदन में हंगामा हुआ और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं ने उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाए।
आरएसएस पर बेबाक राय
धनखड़ ने पिछले साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को "बेदाग साख वाला संगठन" बताते हुए इसे वैश्विक स्तर का थिंक टैंक कहा था। उन्होंने संघ के राष्ट्र निर्माण में योगदान को भी रेखांकित किया।
न्यायाधीश प्रस्ताव पर सख्त रुख
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के प्रस्ताव पर धनखड़ ने सदन में बताया कि 55 सदस्यों के हस्ताक्षर वाले प्रस्ताव की जांच में एक ही सदस्य के दो बार हस्ताक्षर पाए गए। उन्होंने इसे गंभीर मामला बताया और कहा कि इस तरह की गड़बड़ियां प्रस्ताव की विश्वसनीयता को कमजोर करती हैं।
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