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"उपराष्ट्रपति का पद छोड़ना आसान नहीं! जानिए — Article 67(क) के वो राज़ जो आप नहीं जानते!" | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।क्या आप जानते हैं भारत के उपराष्ट्रपति का पद कितना महत्वपूर्ण है? इस पद पर कौन-कौन आसीन हुए और कितनों का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ? इस स्टोरी में आपको उप-राष्ट्रपति के पद, उनकी चयन प्रक्रिया, और संविधान के अनुच्छेद 67(क) के तहत कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफे के नियमों से जुड़ी दिलचस्प जानकारियों से रूबरू कराएगा।
भारत का उपराष्ट्रपति पद, भारतीय लोकतंत्र की नींव का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। अक्सर राष्ट्रपति के पद की भव्यता में यह पद कुछ हद तक पीछे रह जाता है, लेकिन इसकी संवैधानिक महत्ता और गरिमा अद्वितीय है। यह पद न केवल राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनके कर्तव्यों का निर्वहन करता है, बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में विधायी प्रक्रियाओं को भी दिशा देता है।
एक पद, कई चेहरे: भारत के उप-राष्ट्रपति अब तक
भारत के संवैधानिक इतिहास में अब तक कुल 14 व्यक्ति उप-राष्ट्रपति पद की शोभा बढ़ा चुके हैं। हर उप-राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में देश की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आइए, एक नज़र डालते हैं इन महान हस्तियों पर:
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1952-1962): स्वतंत्र भारत के पहले उप-राष्ट्रपति, एक महान दार्शनिक और शिक्षाविद। वे बाद में भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने। उनके जन्मदिन को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
- डॉ. ज़ाकिर हुसैन (1962-1967): शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे बाद में भारत के तीसरे राष्ट्रपति बने।
- वी.वी. गिरि (1967-1969): श्रम मामलों के विशेषज्ञ, जो बाद में भारत के चौथे राष्ट्रपति बने। उन्होंने उप-राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था।
- गोपाल स्वरूप पाठक (1969-1974): एक प्रख्यात विधिवेत्ता।
- बी.डी. जत्ती (1974-1979): कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री।
- मोहम्मद हिदायतुल्लाह (1979-1984): भारत के मुख्य न्यायाधीश भी रहे, और उन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया।
- आर. वेंकटरमन (1984-1987): एक अनुभवी राजनेता, जो बाद में भारत के आठवें राष्ट्रपति बने।
- डॉ. शंकर दयाल शर्मा (1987-1992): एक शिक्षाविद और राजनेता, जो बाद में भारत के नौवें राष्ट्रपति बने।
- के.आर. नारायणन (1992-1997): एक राजनयिक और राजनेता, जो बाद में भारत के दसवें राष्ट्रपति बने।
- कृष्णकांत (1997-2002): अपने कार्यकाल के दौरान निधन होने वाले एकमात्र उप-राष्ट्रपति।
- भैरोंसिंह शेखावत (2002-2007): राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री।
- मोहम्मद हामिद अंसारी (2007-2017): लगातार दो कार्यकाल पूरे करने वाले चुनिंदा उप-राष्ट्रपतियों में से एक। वे एक प्रख्यात राजनयिक थे।
- एम. वेंकैया नायडू (2017-2022): एक अनुभवी राजनेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री।
- जगदीप धनखड़ (2022-वर्तमान): वर्तमान में भारत के उप-राष्ट्रपति, और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल।
इन नामों को देखकर हमें भारत की विविधता और लोकतांत्रिक परंपरा की गहरी जड़ें समझ में आती हैं।
कार्यकाल पूरा न करने वाले राष्ट्रपतियों के अनसुने कारण
जहां तक राष्ट्रपतियों का सवाल है, भारत के संवैधानिक इतिहास में कुछ ऐसे मौके भी आए हैं जब राष्ट्रपतियों ने अपना पूरा कार्यकाल (5 वर्ष) पूरा नहीं किया। इसके पीछे कई कारण रहे हैं:
डॉ. ज़ाकिर हुसैन (1967-1969): वे पद पर रहते हुए निधन को प्राप्त हुए। उनका कार्यकाल 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक ही रहा।
फखरुद्दीन अली अहमद (1974-1977): वे भी पद पर रहते हुए निधन को प्राप्त हुए। उनका कार्यकाल 24 अगस्त 1974 से 11 फरवरी 1977 तक रहा।
ये दोनों ही मामले प्राकृतिक कारणों से हुए निधन के उदाहरण हैं, जो दर्शाते हैं कि सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों का जीवन भी सामान्य मानवीय परिस्थितियों से अछूता नहीं होता।
उप-राष्ट्रपति का इस्तीफा: संविधान का अनुच्छेद 67(क) क्या कहता है?
उप-राष्ट्रपति का पद त्याग करने या उन्हें पद से हटाने के संबंध में भारतीय संविधान में स्पष्ट प्रावधान हैं। अनुच्छेद 67 उप-राष्ट्रपति के कार्यकाल से संबंधित है और इसके खंड (क) में इस्तीफे का उल्लेख है:
अनुच्छेद 67(क): "उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।"
इसका सीधा अर्थ है कि उपराष्ट्रपति को यदि अपने पद से इस्तीफा देना हो, तो उन्हें अपना त्यागपत्र लिखित रूप में भारत के राष्ट्रपति को सौंपना होगा। यह एक औपचारिक और संवैधानिक प्रक्रिया है, जो पद की गरिमा और संवैधानिक नियमों का पालन सुनिश्चित करती है।
कुछ असाधारण मामले
एक महत्वपूर्ण उदाहरण वी.वी. गिरि का है। उन्होंने 1969 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उप-राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था। यह एक ऐसा उदाहरण है जहां एक उप-राष्ट्रपति ने स्वेच्छा से, राजनीतिक कारणों से अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। यह दर्शाता है कि संवैधानिक प्रावधानों के भीतर भी, राजनीतिक परिस्थितियां और व्यक्तिगत निर्णय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
यह प्रावधान यह भी सुनिश्चित करता है कि पद से मुक्ति की प्रक्रिया सुचारु और संवैधानिक तरीके से हो, जिससे किसी भी प्रकार की अस्पष्टता या संवैधानिक संकट उत्पन्न न हो।
उप-राष्ट्रपति चयन प्रक्रिया: एक गहन लोकतांत्रिक अभ्यास
भारत के उप-राष्ट्रपति का चुनाव एक विशिष्ट निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि इस पद पर पहुंचने वाला व्यक्ति व्यापक समर्थन प्राप्त हो। यह प्रक्रिया सीधे जनता द्वारा नहीं की जाती, बल्कि अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के माध्यम से होती है।
चयन प्रक्रिया के मुख्य बिंदु
निर्वाचक मंडल: उप-राष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सभी सदस्यों से मिलकर बनने वाले एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है। इसमें मनोनीत सदस्य भी शामिल होते हैं। यह राष्ट्रपति के चुनाव से अलग है, जहां केवल निर्वाचित सदस्य ही मतदान करते हैं।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली: चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत (Single Transferable Vote) द्वारा होता है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि विभिन्न राजनीतिक विचारों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।
गुप्त मतदान: मतदान गुप्त होता है, जिससे सदस्यों को बिना किसी दबाव के अपनी पसंद व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिलती है।
पात्रता मानदंड: उप-राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को कुछ पात्रता मानदंडों को पूरा करना होता है, जिनमें शामिल हैं:
- भारत का नागरिक हो।
- 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- राज्यसभा का सदस्य चुने जाने के लिए योग्य हो। (राष्ट्रपति के लिए लोकसभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता)
- किसी लाभ के पद पर न हो।
नामांकन और जांच: उम्मीदवार को कम से कम 20 प्रस्तावक (Proposers) और 20 अनुमोदक (Seconders) द्वारा समर्थित होना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि केवल गंभीर उम्मीदवार ही चुनाव में भाग लें।
चुनाव आयोग की भूमिका: भारत का चुनाव आयोग उप-राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया का संचालन करता है, जिसमें नामांकन की जांच, मतदान और मतगणना शामिल है।
यह पूरी प्रक्रिया उप-राष्ट्रपति के पद की गरिमा और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखती है। यह सुनिश्चित करती है कि इस महत्वपूर्ण पद पर केवल वही व्यक्ति पहुंचे जो संवैधानिक रूप से योग्य और व्यापक संसदीय समर्थन प्राप्त हो।
उप-राष्ट्रपति का महत्व : एक शांत, लेकिन मजबूत भूमिका
उप-राष्ट्रपति का पद सिर्फ एक औपचारिक पद नहीं है। यह भारतीय शासन प्रणाली में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है:
राज्यसभा का पदेन सभापति: उप-राष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। वे राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं, कार्यवाही को नियंत्रित करते हैं, और सदन में अनुशासन बनाए रखते हैं। यह उनकी एक महत्वपूर्ण विधायी भूमिका है।
राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति: यदि राष्ट्रपति का पद मृत्यु, इस्तीफे, महाभियोग या अन्य कारणों से रिक्त हो जाता है, तो उप-राष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं, जब तक कि नया राष्ट्रपति नहीं चुना जाता। इस दौरान वे राष्ट्रपति के सभी अधिकारों और कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।
विदेश यात्राएं और प्रतिनिधिमंडल: कई बार उप-राष्ट्रपति अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, जिससे देश की विदेश नीति और वैश्विक संबंधों को मजबूती मिलती है।
इन सभी भूमिकाओं को देखते हुए, यह कहना गलत नहीं होगा कि उप-राष्ट्रपति का पद भारतीय लोकतंत्र में एक शांत, लेकिन बेहद मजबूत और प्रभावशाली भूमिका निभाता है।
भारत के उप-राष्ट्रपति का पद भारतीय संविधान की दूरदर्शिता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का प्रतीक है। यह पद न केवल संवैधानिक निरंतरता सुनिश्चित करता है, बल्कि भारतीय विधायी प्रक्रिया और राष्ट्रपति के कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अब तक इस पद पर आसीन हुए सभी महान व्यक्तियों ने अपनी क्षमता और निष्ठा से इस पद की गरिमा बढ़ाई है।
यह कहानी हमें उप-राष्ट्रपति पद के महत्व, उसकी जटिल चयन प्रक्रिया और संवैधानिक प्रावधानों की गहराई से परिचित कराती है। यह हमें यह भी बताती है कि कैसे कुछ राष्ट्रपतियों ने अप्रत्याशित रूप से अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया, और कैसे उप-राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के लिए संवैधानिक नियमों का पालन किया जाता है। यह सब मिलकर भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और उसके लचीलेपन को दर्शाता है।
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