Advertisment

Civil Judge की भर्ती के लिए दूर हो 3 साल प्रैक्टिस की बाधा, Supreme Court में दायर हुई पुर्नविचार याचिका

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर न्यायिक सेवाओं में सिविल जज की पात्रता से जुड़े 20 मई के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई है। कोर्ट ने तीन साल की वकालत की प्रैक्टिस को अनिवार्य बताया था।

author-image
Pratiksha Parashar
supreme court

सोर्स- Reuters

Listen to this article
00:00 / 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कसुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें न्यायिक सेवाओं में सिविल जज की पात्रता पर कोर्ट के फैसले पर दोबारा विचार करने की गुजारिश की गई है। दरअसल, 20 मई को कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि न्यायिक सेवा में भर्ती के लिए तीन साल की वकालत की प्रैक्टिस होना जरूरी है। कोर्ट के फैसले के मुताबिक, कोई भी उम्मीदवार सीधे कानून की पढ़ाई (LLB) पूरी करने के बाद न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं हो सकता।

Advertisment

लॉ ग्रेजुएट्स को नहीं मिलेगा मौका

इस याचिका को चन्द्र सेन यादव नाम के एक युवा वकील ने दायर किया है। उन्होंने इसमें तर्क दिया है कि यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सरकारी नौकरी में समान अवसर) का उल्लंघन करता है। याचिका में कहा गया है कि तीन साल की वकालत की अनिवार्यता सभी पर थोपना एकतरफा और अनुचित है, जिससे नए लॉ ग्रेजुएट्स को न्यायिक सेवा में आने का मौका नहीं मिल पाएगा।

पात्रता शर्तों को 2027 से लागू किया जाए

Advertisment

वकील चंद्र सेन यादव द्वारा दायर याचिका में यह तर्क दिया गया है कि निर्णय में "रिकॉर्ड पर स्पष्ट रूप से त्रुटियां" मौजूद हैं, और इस आधार पर पुनर्विचार की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने यह भी अनुरोध किया है कि नई पात्रता शर्तों को वर्ष 2027 से लागू किया जाए, ताकि 2023 से 2025 के बीच पास होने वाले लॉ स्नातकों पर इसका अनुचित असर न पड़े, क्योंकि उन्होंने पहले के मानदंडों को ध्यान में रखते हुए अपनी तैयारी की थी।

सीधे जज बनाने से होती हैं समस्याएं

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि नए स्नातकों को सीधे जज की नौकरी देने से व्यवहारिक समस्याएं होती हैं। यह बात कुछ हाई कोर्ट की रिपोर्टों में भी सामने आई थी। इसलिए कोर्ट ने कहा था कि राज्यों और हाई कोर्ट को अपने नियमों में बदलाव कर तीन साल की वकालत को अनिवार्य करना चाहिए। अब इस फैसले को चुनौती देते हुए कहा गया है कि यह नए उम्मीदवारों के साथ भेदभाव करता है और उनके भविष्य पर असर डाल सकता है।  supreme court 

supreme court
Advertisment
Advertisment