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"संजय भंडारी : वो नाम जिसके बिना 2014 से पहले नहीं होते थे रक्षा सौदे, जानें वाड्रा-कांग्रेस कनेक्शन" | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।क्या आपने कभी सोचा है कि कैसे एक व्यक्ति, जिसे भारत का सबसे बड़ा आर्म्स डीलर कहा जाता है, रक्षा सौदों की दिशा तय करता था? संजय भंडारी का नाम आते ही कई सवाल खड़े हो जाते हैं। आखिर क्यों मई 2014 से पहले भारत में कोई भी बड़ा रक्षा सौदा उनकी मर्जी के बिना नहीं होता था? ये वो समय था जब देश के भीतर और बाहर की ताकतों के बीच संतुलन बेहद नाजुक था। भंडारी का प्रभाव इतना गहरा था कि उनके बिना किसी भी डील का सफल होना असंभव सा लगता था। यह कहानी सिर्फ एक आर्म्स डीलर की नहीं, बल्कि उस गहरे नेक्सस की है जिसने भारत की सुरक्षा और राजनीति को एक दशक से भी ज्यादा समय तक प्रभावित किया।
भारत के सबसे बड़े रक्षा सौदों की पृष्ठभूमि में एक नाम ऐसा भी है, जो हमेशा सवालों के घेरे में रहा है – संजय भंडारी। मई 2014 से पहले भारत में कोई भी बड़ा रक्षा सौदा उनके शामिल हुए बिना पूरा क्यों नहीं होता था, और उनके तार रॉबर्ट वाड्रा व कांग्रेस पार्टी से कैसे जुड़े हैं? यह Report इन जटिल सवालों की परतें खोलेगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भंडारी 2016 में भारत से भागकर ब्रिटेन चले गए थे, लेकिन उनके खिलाफ जांच का शिकंजा लगातार कसता रहा। नवंबर 2022 में ब्रिटेन की अदालत ने उन्हें भारत वापस भेजने का आदेश दिया, जिससे इस मामले को एक नई गति मिली। लेकिन क्या यह सिर्फ कानून की एक लंबी प्रक्रिया है, या इसके पीछे कुछ गहरे राजनीतिक रहस्य छिपे हैं? जिस व्यक्ति पर 7900 करोड़ के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम्स स्कैम और 2900 करोड़ के पिलटस एयरक्राफ्ट डील जैसे बड़े घोटालों में शामिल होने का आरोप हो, उसका प्रभाव सिर्फ धनबल तक सीमित नहीं हो सकता। यह कहानी हमें उस दौर में ले जाती है, जब सत्ता के गलियारों में कुछ नाम इतने शक्तिशाली हो गए थे कि देश की रक्षा के नाम पर होने वाले बड़े सौदों की चाबी उनके हाथों में थी।
रॉबर्ट वाड्रा और कांग्रेस कनेक्शन : क्या था रिश्ता?
संजय भंडारी का नाम आते ही रॉबर्ट वाड्रा और कांग्रेस पार्टी का जिक्र होना लाजिमी है। सीबीआई के सूत्रों के अनुसार, भंडारी पर कांग्रेस से जुड़े एक शख्स के पैसे को हवाला के जरिए इधर से उधर करने का भी आरोप है। यह आरोप केवल वित्तीय अनियमितता का नहीं, बल्कि सत्ता के शीर्ष से संबंधों की ओर इशारा करता है। क्या यह मात्र एक संयोग था कि भंडारी का प्रभाव मई 2014 के बाद धीरे-धीरे कम होने लगा? यह वही समय था जब देश में सत्ता परिवर्तन हुआ और एक नई सरकार सत्ता में आई। यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि क्या भंडारी के साम्राज्य की नींव राजनीतिक संरक्षण पर टिकी थी?
वाड्रा और भंडारी के बीच कथित संबंधों ने कई बार राजनीतिक गलियारों में तूफान खड़ा किया है। आरोप है कि भंडारी ने वाड्रा के लिए बेनामी संपत्ति खरीदी और वित्तीय लेनदेन में मदद की। इन आरोपों ने इस पूरे मामले को सिर्फ एक रक्षा सौदे के भ्रष्टाचार तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक बड़े राजनीतिक घोटाले का रूप दे दिया। यह दिखाता है कि कैसे निजी हित देश की सुरक्षा के साथ समझौता करने पर भी आमाद हो सकते हैं। एक ओर देश की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण उपकरण खरीदे जा रहे थे, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार के आरोप इन सौदों पर ग्रहण लगा रहे थे।
भंडारी की गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण : कानूनी दांवपेच या राजनीतिक दबाव?
संजय भंडारी का प्रत्यर्पण एक जटिल कानूनी प्रक्रिया बन गया है। नवंबर 2022 में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उन्हें भारत वापस भेजने का आदेश दिया, लेकिन भंडारी ने इस फैसले को दूसरे कोर्ट में चुनौती दे दी है। सूत्रों के अनुसार, उनका मामला अभी भी सुनक सरकार के पास लंबित है। यदि यह कोर्ट भी उनके खिलाफ फैसला सुनाती है, तब भी भंडारी का प्रत्यर्पण ब्रिटेन की सरकार पर ही निर्भर करेगा। यह दिखाता है कि कैसे एक हाई-प्रोफाइल व्यक्ति का प्रत्यर्पण केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर भी एक चुनौती बन जाता है।
भारत सरकार लगातार भंडारी के प्रत्यर्पण के लिए दबाव बना रही है। उनकी वापसी से न केवल कई बड़े रक्षा सौदों में हुए भ्रष्टाचार के खुलासे हो सकते हैं, बल्कि राजनीतिक संबंधों की परतें भी खुल सकती हैं। क्या भंडारी भारत आकर उन सभी रहस्यों से पर्दा उठाएंगे जो इतने सालों से दबे हुए हैं? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके पास ऐसी जानकारी हो सकती है जो कई बड़े नामों को मुश्किल में डाल सकती है। उनकी वापसी सिर्फ एक व्यक्तिगत प्रत्यर्पण नहीं होगी, बल्कि यह भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है।
बड़े स्कैंडल और संजय भंडारी का नाम : क्या है पूरा सच?
भंडारी का नाम कई बड़े रक्षा घोटालों से जुड़ा है। सीबीआई सूत्रों के अनुसार, 7900 करोड़ के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम्स स्कैम में उनकी भूमिका की जांच की जा रही है, जिसके लिए एजेंसी ने दिसंबर 2022 में एफआईआर दर्ज की थी। इसके अलावा, 2900 करोड़ के पिलटस एयरक्राफ्ट डील में भी उनका नाम शामिल है। ये सिर्फ दो उदाहरण हैं, जो भंडारी के व्यापक नेटवर्क और रक्षा खरीद प्रक्रिया में उनकी गहरी पैठ को दर्शाते हैं।
इन घोटालों का सिर्फ वित्तीय पहलू ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी गंभीर असर पड़ा है। जब रक्षा उपकरण खरीद में भ्रष्टाचार होता है, तो इससे न केवल देश के खजाने को नुकसान होता है, बल्कि सेना की क्षमताओं पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह दिखाता है कि कैसे कुछ व्यक्तियों के लालच ने देश की सुरक्षा को खतरे में डाला। इन सभी मामलों में एक ही पैटर्न नजर आता है – रक्षा सौदों में बिचौलियों की भूमिका, जिसमें भंडारी एक प्रमुख कड़ी थे। क्या इन सभी घोटालों की जड़ें एक ही जगह मिलती हैं?
भंडारी की कहानी : क्यों बनी एक चेतावनी?
संजय भंडारी की कहानी केवल एक आपराधिक मामले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के रक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की एक गहरी समस्या की ओर इशारा करती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि कैसे कुछ ताकतवर लोग नियमों को ताक पर रखकर अपने निजी हितों को साधने में लगे रहते हैं। मई 2014 के बाद सत्ता परिवर्तन के साथ ही ऐसे लोगों के प्रभाव में कमी आना एक महत्वपूर्ण बदलाव था।
आज जब भारत अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, तब भंडारी जैसे मामलों का पूरी तरह से खुलासा होना बेहद जरूरी है। यह न केवल भविष्य में ऐसे भ्रष्टाचार को रोकने में मदद करेगा, बल्कि देश की जनता का न्याय व्यवस्था और सरकार पर विश्वास भी बढ़ाएगा। भंडारी का मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक व्यवस्थागत समस्या का प्रतिबिंब है, जिसे सुलझाना देश के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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