नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
13 अप्रैल तारीख वही, जो हर साल भारत के सीने पर गर्व का ताज रख देती है। आज से ठीक 41 साल पहले, जब दुनिया सोच भी नहीं सकती थी कि कोई फौज बर्फीली मौत को मात देकर 20,000 फीट की ऊंचाई पर तिरंगा फहराएगी। भारत के वीर सपूतों ने वो कर दिखाया। सियाचिन पर तैनात भारतीय सेना की जंग, सिर्फ दुश्मन से नहीं, प्रकृति से भी थी, और इस जंग में जीत सिर्फ भारत की हुई।
जब दुश्मन से पहले पहुंचा भारत
1984 में पाकिस्तान की मंशा भांपकर भारत ने ‘ऑपरेशन मेघदूत’ लॉन्च किया। 13 अप्रैल को भारतीय सैनिकों ने बिलाफोंड ला और सियाला दर्रों पर कब्जा कर लिया और पूरे सियाचिन ग्लेशियर को अपने नियंत्रण में ले लिया। इस ऑपरेशन का नेतृत्व किया लेफ्टिनेंट जनरल एम.एल. छिब्बर, लेफ्टिनेंट जनरल पी.एन. हून और मेजर जनरल शिव शर्मा ने।
-50°C में भी डटे हैं हमारे जवान
सियाचिन ग्लेशियर कोई आम पोस्ट नहीं, ये दुनिया का सबसे ऊंचा और सबसे खतरनाक युद्धक्षेत्र है। यहां जवान -50 डिग्री तापमान, ऑक्सीजन की कमी और बर्फीले तूफानों के बीच तैनात रहते हैं। उनका जज्बा ही है, जो आज 41 साल बाद भी ये इलाका पूरी तरह से भारत के कब्जे में है।
वायुसेना बनी जीत की रीढ़
‘ऑपरेशन मेघदूत’ में भारतीय वायुसेना की भूमिका अतुल्य थी। AN-12, AN-32 और IL-76 एयरक्राफ्ट्स ने सामान और सैनिकों को पहुंचाया, तो MI-17, MI-8, चेतक और चीता हेलिकॉप्टरों ने ग्लेशियर की ऊंची चोटियों तक लैंडिंग कर इतिहास रच दिया। चेतक हेलिकॉप्टर, जिसने 1978 में पहली बार सियाचिन में लैंडिंग की, आज भी गर्व की उड़ान का प्रतीक है।
इसलिए भारत के लिए अहम है सियाचिन
सियाचिन ग्लेशियर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK), अक्साई चिन और शक्सगाम घाटी के नजदीक है। यह इलाका लेह से गिलगित को जोड़ने वाले रास्तों को कंट्रोल करता है। अगर ये पाकिस्तान या चीन के कब्जे में जाता, तो भारत की उत्तर सीमाएं खतरे में पड़ जातीं। इसलिए सियाचिन पर मौजूदगी, सिर्फ सैन्य नहीं, रणनीतिक मजबूती का प्रतीक है।