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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। राज्यपाल की मनमानी को लेकर दायर दो मामलों में केरल सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट केके वेणुगोपाल और सालिसिटर जनरल आफ इंडिया के बीच आज भिड़ंत हो गई। सुप्रीम कोर्ट में केरल सरकार की याचिका पर आज सुनवाई की जा रही थी, तभी दोनों दिग्गज वकील एक दूसरे से उलझ गए। हालांकि बात बढ़ती देख जस्टिसेज ने बीच का रास्ता निकाला जिससे विवाद फिलहाल खत्म हो गया है।
राज्यपाल की मनमानी के खिलाफ दायर रिटों को वापस लेना चाहते थे वेणुगोपाल
दरअसल, केके वेणुगोपाल ने जस्टिस पीवी नरसिम्हा और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच से दरख्वास्त की कि वो सरकार की याचिकाओं को वापस लेना टाहते हैं। उनका तर्क था कि जिन बिलों को राज्यपाल लटकाए हुए थे वो फिलहाल राष्ट्रपति के पास भेज दिए गए हैं। लिहाजा ये याचिकाएं बेमतलब हो गई है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट दोनों रिटों को वापस लेने की उनकी याचिका को स्वीकृत करे।
तुषार मेहता ने दखलंदाजी कर वेणुगोपाल की बात को काटा तो मामला भड़का
विवाद तब शुरू हुआ जब अटार्नी जनरल तुषार मेहता ने उनकी बात को काटते हुए कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है। ये संवैधानिक मसला है। इस तरह की रिटें यूं ही फाइल नहीं की जा सकतीं और न ही इनको कोई भी दलील देकर वापस लिया जा सकता है। रिट में जो मुद्दे शामिल हैं हम उन पर विचार कर रहे हैं। तुषार मेहता इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए थे।
जस्टिसेज ने विवाद को बढ़ते देख सुनवाई के लिए लगा दी नई तारीख
मेहता की बात वेणुगोपाल को खराब लगी। उन्होंने मेहता से कहा कि वो ऐसा कैसे कह सकते हैं। उनका कहना था कि आपके साथ अटार्नी जनरल आफ इंडिया भी याचिका की वापसी का विरोध कर रहे हैं। वेणुगोपाल का कहना था कि उन्हें ये बात बिलकुल अजीब लग रही है। तुषार मेहता ने तीखे लहजे में जवाब दिया कि आपके कद का वकील जब याचिका वापस लेने की बात करे तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। वेणुगोपाल उनकी बात को सुनकर गुस्से में आ गए। हालांकि जस्टिस पीवी नरसिम्हा और जस्टिस जोयमाल्या बागची ने जब देखा कि मामला बढ़ता जा रहा है तो उन्होंने दखल देकर कहा कि इस मामले को अब 13 मई को सुना जाएगा। हालांकि बेंच ने केस को मुल्तवी करते वक्त ये माना कि वेणुगोपाल की दलीलें सही हैं। उनको याचिका वापस लेने का पूरा हक है।
2023 में केरल के तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। उस साल नवंबर में राज्य ने शीर्ष अदालत को बताया कि राज्यपाल के समक्ष सात महीने से लेकर 23 महीने की अवधि के लिए आठ विधेयक लंबित थे। सरकार ने 2024 में दूसरी याचिका दायर की थी। बीती 22 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से कहा गया था कि तमिलनाडु के राज्यपाल को लेकर दिया गया सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला उनके मामले को भी कवर करेगा। मेहता ने तब कहा था कि केरल और तमिलनाडु के मामले अलग अलग हैं।
गवर्नर की मनमानी के मामले में राष्ट्रपति को आदेश दे चुका है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत राष्ट्रपति को आदेश दिया है कि वो राज्यपाल के रेफरेंस के तीन माह के भीतर बिलों पर कोई फैसला लें। सर्वोच्च अदालत ने ये फैसला तमिलनाडु के मामले में दिया था। एमके स्टालिन की सरकार ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सरकार का कहना था कि राज्यपाल बेवजह बिलों को लटका रहे हैं। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न तो राज्यपाल और न ही राष्ट्रपति असेंबली की तरफ से पास बिलों को लटकाकर रख सकते हैं। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल जिस दिन बिल आगे भेजते हैं राष्ट्रपति को उस तारीख के 3 माह के भीतर फैसला लेना ही होगा।