Advertisment

Explainer : कहानी रामलीला की - लोक मंच से वर्चुअल स्क्रीन तक का सफर, विश्व भर में बिखेरी छाप

रामलीला भारतीय संस्कृति की जीवंत परंपरा है, जिसकी शुरुआत गांव और कस्बों के खुले लोक मंचों से हुई। समय के साथ यह परंपरा डिजिटल प्लेटफॉर्म और वर्चुअल स्क्रीन तक पहुंची, सभी धर्मों के लोग इसमें शामिल हुए और कई भाषाओं में प्रस्तुत की जाने लगी।

author-image
Ranjana Sharma
BeFunky-collage - 2025-09-25T132657.983
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क : रामलीला भारतीय संस्कृति की सबसे जीवंत और बहुआयामी परंपराओं में से एक है। यह केवल धार्मिक नाटक नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक शिक्षा का भी एक माध्यम है। रामलीला ने लोक मंच से लेकर डिजिटल और वर्चुअल स्क्रीन तक अपनी यात्रा पूरी की है और आज यह वैश्विक पहचान प्राप्त कर चुकी है। इसका मंचन न केवल हिन्दू समुदाय के लोग करते हैं, बल्कि सभी धर्मों के लोग मिलकर इसे आयोजित करते हैं, जिससे यह सामुदायिक सहयोग और भाईचारे का प्रतीक बन जाती है।

समय के साथ बदला मंचन का स्वरूप

शुरूआत में रामलीला का मंचन खुले मैदानों, मंदिर प्रांगण और सामाजिक सभास्थलों पर होता था। स्थानीय कलाकार, संगीतकार और नर्तक इसमें भाग लेते थे। हर दिन रामायण की एक घटना या दो घटनाएं मंचित की जाती थीं और दशहरा के दिन इसका समापन रावण दहन के साथ होता था। समय के साथ रामलीला का स्वरूप विकसित हुआ। उत्तर भारत के अलावा इसे भारत के अन्य हिस्सों और विदेशों में भी अपनाया गया। रामलीला अब केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और शैक्षिक कार्यक्रम का रूप भी ले चुकी है।

सभी धर्मों के लोग करते हैं मंचन

रामलीला केवल धार्मिक नाटक नहीं है। यह सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का उत्सव है। यह विभिन्न समुदायों और धर्मों के लोगों को एक साथ जोड़ती है। मंचन में सभी धर्मों के लोग भाग लेकर इसे सामुदायिक सहयोग और भाईचारे का प्रतीक बनाते हैं। इसके माध्यम से दर्शक धर्म, नैतिकता और साहस के मूल्यों से रूबरू होते हैं। रामलीला युवा पीढ़ी और बच्चों में नैतिक शिक्षा, साहस और आदर्श जीवन के प्रति समझ पैदा करती है। इसके अलावा, संगीत, नृत्य और रंगारंग वेशभूषा इसे हर उम्र के दर्शकों के लिए आकर्षक बनाते हैं।

कई भाषा में होती है रामलीला

रामलीला विभिन्न भाषाओं में मंचित की जाती है। यह हिन्दी, अवधी, ब्रज, मराठी, बंगाली, तमिल, गुजराती और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में प्रस्तुत की जाती है। भाषाई विविधता ने इसे सांस्कृतिक बहुलता और लोगों तक पहुंचने की ताकत दी है।
Advertisment

भारत ही नहीं कई देशों में होती है रामलीला

वर्तमान में रामलीला का आयोजन केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह नेपाल, मॉरीशस, थाईलैंड, इंडोनेशिया, फिजी, सिंगापुर, यूके जैसे देशों में भी आयोजित होती है। यह वैश्विक प्रसार दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति का यह प्रतीक देश और धर्म की सीमाओं से परे लोगों को जोड़ता है।

रामलीला को मिली वैश्विक मान्यता

रामलीला की वैश्विक महत्वता को UNESCO ने 2008 में मान्यता दी और इसे “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत” में शामिल किया। यह सम्मान रामलीला की सांस्कृतिक गहराई, लोक कला के समृद्ध स्वरूप और इसे पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखने के प्रयासों को मान्यता देता है। इतिहास में भी रामलीला का वैश्विक प्रभाव दिखाई देता है।

इंडोनेशिया की रामलीला में पूर्व पीएम अटल बिहार बाजपेयी हुए थे शामिल

इंडोनेशिया में आयोजित रामलीला में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी शामिल हुए थे। यह दर्शाता है कि रामलीला न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक और कूटनीतिक पहचान का प्रतीक है।
Advertisment

डिजिटल युग और आधुनिक रामलीला

तकनीकी बदलावों ने रामलीला को लोक मंच से वर्चुअल स्क्रीन तक पहुचाया। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे यूट्यूब, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इसे लाइव स्ट्रीमिंग किया जाता है। दर्शक घर बैठे रामलीला देख सकते हैं और लाइव कमेंट, पोल और प्रतिक्रिया के माध्यम से कार्यक्रम में सक्रिय भागीदार बन सकते हैं। वर्चुअल रियलिटी (VR) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) तकनीक के माध्यम से दर्शक मंच पर मौजूद होने का अनुभव ले सकते हैं। सोशल मीडिया और डिजिटल क्लिप्स ने इसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई है और युवा पीढ़ी को भी जोड़ने में मदद की है।डिजिटल रामलीला केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि शिक्षा, नैतिकता और सांस्कृतिक जागरूकता का भी साधन बन गई है। यह युवा पीढ़ी को भारत की सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ती है और इसे भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँचाती है।

इंडोनेशिया की रामलीला में पूर्व पीएम अटल बिहार बाजपेयी हुए थे शामिल

इंडोनेशिया में आयोजित रामलीला में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी शामिल हुए थे। यह दर्शाता है कि रामलीला न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक और कूटनीतिक पहचान का प्रतीक है। वहीं पीएम मोदी ने लुओंग प्रबांग के प्रतिष्ठित रॉयल थिएटर द्वारा प्रस्तुत लाओ रामायण के एक प्रसंग का अवलोकन किया। लाओस में रामायण का उत्सव लगातार मनाया जाता रहा है, और यह महाकाव्य दोनों देशों की साझा विरासत और प्राचीन सभ्यता के संबंध को दर्शाता है। भारतीय संस्कृति और परंपरा के कई पहलू सदियों से लाओस में संरक्षित और प्रचलित हैं। दोनों देश अपनी साझा सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करने के लिए नजदीकी सहयोग कर रहे हैं।

रामलीला का कथानक और प्रमुख पात्र

  • रामलीला का कथानक भगवान राम के जीवन पर आधारित है। इसके माध्यम से न केवल धार्मिक शिक्षा मिलती है, बल्कि नैतिक और सामाजिक मूल्य भी पाठकों तक पहुँचते हैं। प्रमुख घटनाए इस प्रकार हैं:
  • राम का जन्म और बाल्यकाल – अयोध्या में राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर राम का जन्म।
  • ऋषि विश्वामित्र के साथ वन यात्रा – राम और लक्ष्मण का वन में धर्म, युद्ध और जीवन की सीख।
  • सीता स्वयंवर और विवाह – भगवान राम और सीता के विवाह का आयोजन।
  • वनवास और जंगल प्रस्थान – 14 वर्षों का वनवास और उसमें हुई घटनाएं।
  • रावण द्वारा सीता हरण – लंका में सीता का हरण और राम का संघर्ष।
  • हनुमान द्वारा लंका दहन – रामभक्ति और साहस का प्रतीक।
  • राम-रावण युद्ध और रावण वध – धर्म की विजय और अधर्म का नाश।
  • विजयादशमी और राम का अयोध्या लौटना – जनता में उत्सव और सामूहिक आनंद।
रामलीला में मुख्य पात्रों के माध्यम से सत्य, धर्म, साहस, भक्ति और नैतिक मूल्यों का संदेश दिया जाता है। राम धर्म, सीता आदर्श नारीत्व, लक्ष्मण भाईचारे और हनुमान भक्ति एवं सेवा का प्रतीक हैं।
Advertisment

रामलीला का इतिहास

रामलीला की उत्पत्ति भारतीय संस्कृति और धर्म की प्राचीन परंपराओं में गहराई से जुड़ी है। इसे लोकनाट्य और धार्मिक नाट्य परंपरा माना जाता है, जिसमें भगवान राम के जीवन और उनके संघर्षों को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है।रामलीला की परंपरा को सबसे अधिक लोकप्रिय बनाने का श्रेय 16वीं शताब्दी के संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास को दिया जाता है। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस के माध्यम से रामकथा को आम जनता तक पहुंचाया। तुलसीदास ने रामायण के कथानक को सरल भाषा और जीवंत संवादों में प्रस्तुत किया, जिससे यह कथा गांव -गांव  और कस्बों तक पहुंच सकी।आरंभिक रामलीला का मंचन खुले मैदानों, मंदिर प्रांगण और समाजिक सभास्थलों पर होता था। स्थानीय कलाकार, संगीतकार और नर्तक इसमें भाग लेते थे। हर दिन रामायण की एक घटना या दो घटनाएं  मंचित की जाती थीं, और दशहरा के दिन इसका समापन रावण दहन के साथ होता था। 

बीसाऊ की अनौखी रामलीला : 175 वर्षों से मौन प्रदर्शन लोगों को करता है आकर्षित 

अधिकांश लोगों के लिए दशहरा के आसपास रामलीला का मुख्य आकर्षण यह होता है कि कलाकार अपने संवाद कैसे पेश करते हैं। लेकिन झुंझुनू के बीसाऊ गांव की रामलीला कुछ अलग अंदाज में होती है। यहां की रामलीला जो पिछले 175 वर्षों से आयोजित हो रही है, मौन होती है और इसमें अभिनय संवादों से नहीं, बल्कि पात्रों के मुखौटे और हाव-भाव से दर्शाया जाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इस रामलीला में 100 से अधिक ग्रामीण हिस्सा लेते हैं। रामायण के श्लोक और चौपाइयां पृष्ठभूमि में गाई जाती हैं और एंकर स्क्रिप्ट को समझाने के लिए कथावाचन करते हैं। लगभग 175 साल पहले, साध्वी जमना ने बच्चों को इकट्ठा किया और गांव के रामाना जोहर क्षेत्र में रामलीला की शुरुआत की। उस समय शायद पात्रों के लिए संवाद बोलना कठिन था, इसलिए रामलीला में पात्रों के चेहरे पर मुखौटे लगाकर प्रदर्शन किया गया, जिसमें रावण के वंशज भी शामिल थे। तब से यह परंपरा बन गई और बीसाऊ की रामलीला मौन बनी रही, रामलीला के निर्देशक और एंकर कपिलेश शर्मा ने बताया। परंपरा के अनुसार, रामलीला के पात्रों को अलग-अलग मुखौटे दिए जाते हैं ताकि उनका किरदार विश्वसनीय लगे। इसमें 10 साल के बच्चों से लेकर 60 साल के बुजुर्ग तक सभी हिस्सा ले सकते हैं।

रामनगर की प्राचीन रामलीला यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में है शामिल

रामनगर (वाराणसी) की रामलीला एक विश्व प्रसिद्ध पारंपरिक आयोजन है जिसे यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया है। 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह द्वारा शुरू की गई यह रामलीला आज भी बिना किसी मंच या आधुनिक प्रकाश व्यवस्था के पेट्रोमैक्स की रोशनी में रामचरितमानस पर आधारित होती है। रामनगर के 5 किलोमीटर के क्षेत्र में यह लीला एक महीने तक घूम-घूम कर मंचित की जाती है और काशी नरेश स्वयं हर दिन हाथी पर सवार होकर इसे देखने आते हैं। दरअसल काशी में रामलीला की टाइमिंग शाम 5 से शुरू होकर रात करीब 9 बजे तक चलती है। जो दूर दराज के लोग हैं वह दोपहर तक इस रामलीला का आनंद लेने के लिए वाराणसी पहुंच जाते हैं। बता दें वाराणसी का यह रामलील एक महीने तक चलता है।

ramlila maidan delhi
Advertisment
Advertisment