Advertisment

संविधान पीठ का बड़ा फैसला : राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों पर केंद्र का तर्क अस्वीकार

सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर हस्ताक्षर करने के लिए डेडलाइन तय करने संबंधी केंद्र के तर्कों को पलट दिया। अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों पर पुनर्विचार की आवश्यकता जताई।

author-image
Ajit Kumar Pandey
संविधान पीठ का बड़ा फैसला : राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों पर केंद्र का तर्क अस्वीकार | यंग भारत न्यूज

संविधान पीठ का बड़ा फैसला : राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों पर केंद्र का तर्क अस्वीकार | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।आज बुधवार 20 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट की राष्ट्रपति और राज्यपालों के बिलों पर हस्ताक्षर करने के लिए डेडलाइन लागू करने वाली याचिका पर पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई की जिसमें यह स्पष्ट करने की मांग की गई क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राज्यपालों और राष्ट्रपति पर निश्चित समय-सीमाएं लागू की जा सकती हैं।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने राष्ट्रपति के संदर्भ यानी प्रेसीडेंसियल रेफरेंस पर सुनवाई की शुरुआत केरल और तमिलनाडु द्वारा इसकी स्वीकार्यता पर प्रारंभिक आपत्तियां उठाने के साथ की जिसमें तर्क दिया गया कि राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित प्रश्न अब कानून के अनसुलझे प्रश्न नहीं हैं।

जबकि सॉलिसिटर जनरल ने विस्तार से बताया कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने उस दिन हस्तक्षेप करके अनुच्छेद 91 के मसौदे के प्रावधान में "छह सप्ताह" शब्द के स्थान पर "यथाशीघ्र" शब्द जोड़ दिया था। मुख्य न्यायाधीश ने इस बहस को एक अलग नज़रिए से देखा और बताया कि संविधान सभा के सदस्यों ने वास्तव में एक समय सीमा पर विचार किया था।

सॉलिसिटर जनरल ने कई तर्क

हालांकि केंद्र सरकार ने यह साबित करने के लिए संविधान सभा में भारत के मसौदे पर हुई ऐतिहासिक बहस का सहारा लिया है कि राष्ट्रपति विधेयकों या प्रस्तावित कानूनों को मंज़ूरी देते समय किसी विशिष्ट समय सीमा से बंधे नहीं हैं। लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करके इस तर्क को पलट दिया।

Advertisment

आपको बता दें कि अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने इस पर अपनी दलीलें दीं कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों के निपटारे के लिए समय-सीमा क्यों नहीं दी जानी चाहिए। दलीलों में अनुच्छेद 200 पर संवैधानिक बहस का भी संक्षेप में ज़िक्र किया गया, जो विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित है।

इससे पहले, अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने इस बात पर अपनी दलीलें दीं कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों के निपटारे के लिए एक समय-सीमा क्यों नहीं दी जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने मंगलवार (19 अगस्त, 2025) को केंद्र और अटॉर्नी जनरल से इस बारे में सवाल किए।

इस दलील में अनुच्छेद 200 पर संवैधानिक बहस का संक्षिप्त उल्लेख किया गया, जो विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित है।

Advertisment

सुप्रीम कोर्ट फैसले | Supreme Court verdict 2025 | President Governors Powers | Constitutional Bench Ruling | Indian Judiciary News

सुप्रीम कोर्ट फैसले Indian Judiciary News Supreme Court verdict 2025 President Governors Powers Constitutional Bench Ruling
Advertisment
Advertisment