देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि किसी महिला को दूसरा पति इस बात पर गुजारा भत्ता देने से इंकार नहीं कर सकता कि उसने पहली शादी को काननून बरकरार रखा हुआ है। मतलब पहली शादी को कानूनी रूप से समाप्त किए बिना दूसरे पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने का महिला को पूरा अधिकार है। यह बात सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी. वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कही है। खंडपीठ ने कहा है कि गुजारा भत्ता एक सामाजिक कल्याण प्रावधान है और इसकी व्यापक व्याख्या होनी चाहिए, लेकिन यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि सख्त कानून के कारण मानवीय उद्देश्य प्रभावित न होने पाएं।
सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि महिला को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा- 125 (अब भारतीय न्याय संहिता की धारा- 144) दूसरे पति से गुजारा भत्ता पाने का हक देती है, बेशक महिला का पहला विवाह कानूनी रूप से बरकरार हो। यह सामाजिक कल्याण का प्रावधान और संवेदनशील मुद्दा है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कहीं। यह महिला आपसी सहमति से पहले पति से अलग हो गई थी। दोनों ने सहमति तो साइन किया था लेकिन तलाक का आदेश प्राप्त नहीं किया था।
हैदराबाद में पंजीकृत हुआ था दूसरा विवाह
2005 में महिला ने आपसी सहमति पर पहले पति से अलग होने के बाद दूसरी शादी कर ली और उसकी पंजीकरण भी करा लिया। हैदराबाद में यह पंजीकरण हुआ था। कुछ वर्षों तक दोनों साथ रहे लेकिन बाद में दोनों के बीच नहीं बनने पर महिला ने कोर्ट से गुजारा भत्ता दिलाने की दर्खास्त की थी, दूसरे पति ने पहली शादी की कानूनी वैद्यता समाप्त न होने का फायदा उठाकर गुजारा भत्ता देने का प्रयास किया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लेकिन इस आधार पर गुजारा भत्ता न दिए जाने की बात को सुप्रीम ने खारिज कर दिया सर्वोच्च अदालत ने दूसरे पति से अलग रह रही महिला को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है।