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विश्व योग दिवस पर विशेष रिपोर्ट : वैदिक ऋचाओं से अंतरराष्ट्रीय मंच तक India की आध्यात्मिक यात्रा | यंग भारत न्यूज
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । क्या आप जानते हैं कि आज दुनिया भर में जो "योगा" के नाम से लोकप्रिय है, उसकी जड़ें 3000 साल पहले के वैदिक मंत्रों में हैं? भारत की यह विरासत न सिर्फ ध्यान और साधना की विधा रही है, बल्कि आत्मज्ञान की राह भी। योग आज ग्लोबल है, लेकिन इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जड़ें गहराई में छिपी हैं। आइए जानते हैं दुनिया को विश्व योग दिवस के रूप में कब से शुरूआत हुई।
यंग भारत न्यूज आपको लेकर चल रहा है योग की ऐतिहासिक यात्रा पर — ऋग्वेद से लेकर पतंजलि के सूत्रों, नाथ योगियों की तपस्या और आधुनिक गुरुओं के वैश्विक प्रभाव तक।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से हुई। 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा रिकॉर्ड 177 सदस्य देशों के समर्थन से पारित किया गया।
पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को दुनिया भर में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। 21 जून का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि यह उत्तरी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन होता है और इसका भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। इस दिन से योग को एक वैश्विक पहचान मिली और यह स्वास्थ्य और कल्याण का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया।
आज, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को दुनिया के लगभग सभी देशों में मनाया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका से लेकर यूरोप, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया तक, लाखों लोग इस दिन एक साथ आकर योग का अभ्यास करते हैं। यह दिन योग के महत्व को उजागर करता है और लोगों को इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करता है।
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योग का वैश्विक प्रभाव: भारत से विश्व तक
योग अब सिर्फ भारत की सीमा तक सीमित नहीं है। यह दुनिया के कोने-कोने में पहुंच चुका है और विभिन्न संस्कृतियों के लोगों द्वारा अपनाया जा रहा है। हॉलीवुड के सितारे, विश्व नेता और आम लोग सभी योग के लाभों को पहचान रहे हैं। योग स्टूडियो दुनिया भर के शहरों में खुल रहे हैं, और ऑनलाइन योग कक्षाएं लाखों लोगों को घर बैठे अभ्यास करने का अवसर दे रही हैं।
योग ने विभिन्न रूपों और शैलियों को जन्म दिया है, जैसे हठ योग, विनयसा, अष्टांग, बिक्रम, कुंडलिनी और अयंगर योग। ये सभी शैलियां योग के मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं, लेकिन उनमें अभ्यास के तरीके और तीव्रता में भिन्नता है। यह विविधता ही योग को और अधिक सुलभ और आकर्षक बनाती है।
योग का वैश्विक प्रसार केवल शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है। यह मानसिक शांति, तनाव मुक्ति और आत्म-खोज के एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में भी उभरा है। कॉरपोरेट जगत में, स्कूलों में और यहां तक कि अस्पतालों में भी योग को तनाव कम करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी हस्तक्षेप के रूप में लागू किया जा रहा है।
योग केवल कुछ आसनों का अभ्यास करना नहीं है। यह एक संपूर्ण जीवनशैली है जो हमें स्वयं के साथ और बाहरी दुनिया के साथ अधिक सामंजस्य बिठाने में मदद करती है। यम (सामाजिक नैतिकता) और नियम (व्यक्तिगत अनुशासन) जैसे नैतिक सिद्धांत हमें एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देते हैं। प्राणायाम (श्वास नियंत्रण) हमें अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करना सिखाता है, और ध्यान (एकाग्रता) हमें अपने मन को शांत करने और आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद करता है।
योग: एक जीवनशैली, एक दर्शन
योग हमें सिखाता है कि कैसे वर्तमान में जीना है, अपने शरीर की सुनना है और अपने भीतर की आवाज से जुड़ना है। यह हमें सिखाता है कि कैसे चुनौतियों का सामना धैर्य और शांति के साथ करना है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, योग एक ऐसा सहारा है जो हमें संतुलन और स्थिरता प्रदान करता है।
अगर आप योग के इन अनमोल रहस्यों और इसके गहन प्रभावों के बारे में कुछ और जानना चाहते हैं, या योग के किसी विशेष पहलू पर अपने विचार साझा करना चाहते हैं, तो हमें कमेंट करके बताएं! आपकी राय हमें और भी बेहतर सामग्री बनाने में मदद करेगी।
योग भारत की आत्मा है, एक ऐसी विरासत जो सहस्राब्दियों से हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त कर रही है। आज जब पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रही है, तो आइए योग के इतिहास की गहराइयों में उतरें और जानें कि कैसे इस प्राचीन विज्ञान ने भारत से निकलकर पूरे विश्व को अपनी रोशनी से प्रकाशित किया।
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योग: जब ऋषियों ने बांटा स्वास्थ्य का अमृत!
आज जब हम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की धूम देखते हैं, तो मन में योग के इतिहास को जानने की उत्सुकता जागती है। आखिर इस अद्भुत विधा की शुरुआत कब और कैसे हुई? किसने सबसे पहले योग का यह अनमोल ज्ञान दिया? यह सिर्फ कसरत नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है, एक संपूर्ण दर्शन है जो हजारों सालों से हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है।
योग सिर्फ एक व्यायाम नहीं है, यह मन, शरीर और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करने की एक प्राचीन भारतीय कला और विज्ञान है। इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन्हें खोजना वाकई एक रोमांचक यात्रा है। कल्पना कीजिए, हजारों साल पहले हमारे ऋषि-मुनि जंगलों और पहाड़ों में साधना करते हुए इस ज्ञान को खोज रहे थे। उन्होंने प्रकृति के साथ एकरूप होकर शरीर और मन को साधने के तरीके ईजाद किए।
अगर हम योग के इतिहास की बात करें, तो यह कोई एक व्यक्ति या एक दिन की देन नहीं है। यह सदियों के शोध, अनुभव और गहन चिंतन का परिणाम है। हालांकि, कई प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है, लेकिन भगवान शिव को आदि योगी या पहले योगी के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि उन्होंने ही सबसे पहले इस ज्ञान को सप्तऋषियों को प्रदान किया था, जिन्होंने इसे मानव जाति तक पहुंचाया।
प्राचीन ग्रंथों में योग: ज्ञान के वो पन्ने जो बदलते हैं जीवन
हमारे प्राचीन ग्रंथ योग के ज्ञान के अथाह सागर हैं। वेदों से लेकर उपनिषदों तक, हर जगह योग के सिद्धांतों और प्रथाओं का वर्णन मिलता है।
ऋग्वेद: सबसे प्राचीन वेदों में से एक, ऋग्वेद में भी योग के शुरुआती विचारों की झलक मिलती है, खासकर ध्यान और एकाग्रता से संबंधित मंत्रों में। यहां यम और नियम के कुछ प्रारंभिक स्वरूपों का भी अप्रत्यक्ष उल्लेख मिलता है।
उपनिषद: कठोपनिषद, श्वेताश्वतर उपनिषद और तैत्तिरीय उपनिषद जैसे कई उपनिषदों में योग की विभिन्न अवधारणाओं, जैसे प्राणायाम, प्रत्याहार और ध्यान का विस्तृत वर्णन है। इनमें आत्मा और परमात्मा के मिलन के लिए योग को एक मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
भगवद गीता: महाभारत का यह महत्वपूर्ण हिस्सा कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग का विस्तार से वर्णन करता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में जो उपदेश दिए, वे आज भी हमें सही मार्ग पर चलने और अपने कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा देते हैं। गीता में योग को "समत्वं योग उच्यते" (समता ही योग है) कहकर परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है सफलता और विफलता में समान रहना।
योग सूत्र (महर्षि पतंजलि): यह ग्रंथ योग का सबसे व्यवस्थित और प्रसिद्ध ग्रंथ है। महर्षि पतंजलि ने लगभग 200 ईसा पूर्व में योग सूत्रों का संकलन किया था, जिसमें उन्होंने अष्टांग योग के आठ अंगों - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि - का विस्तार से वर्णन किया है। यह ग्रंथ योग को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करता है और आज भी योग अभ्यासियों के लिए एक मार्गदर्शक का काम करता है।
उदाहरण के लिए, योग सूत्र के अध्याय 2, सूत्र 46 में आसन के बारे में कहा गया है: "स्थिरसुखमासनम्", जिसका अर्थ है कि आसन स्थिर और सुखद होना चाहिए।
योग सूत्र के अध्याय 2, सूत्र 49 में प्राणायाम का वर्णन है: "तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः", जिसका अर्थ है कि आसन में स्थिर होने के बाद श्वास और प्रश्वास की गति को नियंत्रित करना प्राणायाम है।
हठ योग प्रदीपिका: यह 15वीं शताब्दी का ग्रंथ हठ योग के आसनों, प्राणायामों, मुद्राओं और बंधों पर केंद्रित है। स्वामी स्वात्माराम द्वारा रचित यह ग्रंथ हठ योग के अभ्यास को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण रहा है।
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योग का प्रचलन: कब से फैला यह ज्ञान?
योग का प्रचलन कब से है, यह कहना मुश्किल है क्योंकि यह सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 3300-1900 ईसा पूर्व) से ही मौजूद होने के पुरातात्विक प्रमाण मिलते हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मिली मुहरों पर योगियों जैसी आकृतियां इसकी प्राचीनता को दर्शाती हैं। वैदिक काल से ही योग भारतीय जीवनशैली का हिस्सा रहा है। शुरुआती दौर में यह व्यक्तिगत साधना और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम था।
गुप्त काल (लगभग 320-550 ईस्वी) और उसके बाद के समय में योग के विभिन्न स्कूल और परंपराएं विकसित हुईं। मध्यकाल में नाथ परंपरा और हठ योग ने इसे और अधिक लोकप्रिय बनाया, जिसमें शारीरिक आसनों और प्राणायाम पर अधिक जोर दिया गया। धीरे-धीरे योग भारत के विभिन्न हिस्सों में फैला और विभिन्न गुरुओं और परंपराओं के माध्यम से विकसित होता रहा।
19वीं और 20वीं शताब्दी में, स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगानंद और बीकेएस आयंगर जैसे महान योग गुरुओं ने योग को पश्चिमी दुनिया से परिचित कराया। उन्होंने योग के वैज्ञानिक और व्यावहारिक पहलुओं पर जोर दिया, जिससे यह दुनिया भर में लोकप्रिय हुआ।
1. वैदिक काल में योग की अवधारणा (1500–500 ईसा पूर्व)
ऋग्वेद (मंत्र 10.136) में "केशिन मुनियों" का वर्णन ध्यान और तप के प्रतीक रूप में मिलता है।
कठ उपनिषद (1.3.14): आत्मा को प्राप्त करने के लिए योग का पहला दार्शनिक आधार
श्वेताश्वतर उपनिषद में प्राणायाम, आसन और ध्यान की प्रक्रिया का उल्लेख
स्रोत:
- The Principal Upanishads – डॉ. एस. राधाकृष्णन
- Yoga: Immortality and Freedom – Mircea Eliade
2. महाकाव्य युग और गुप्त काल: योग का दार्शनिक विस्तार
भगवद गीता का योगदान:
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को "कर्मयोग", "ज्ञानयोग", और "भक्ति योग" की अवधारणाएं समझाईं।
“योगः कर्मसु कौशलम्” — गीता 2.50
पतंजलि योगसूत्र (200 BCE):
8 अंगों का योग: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” – मन की चंचलता को रोकना ही योग है।
स्रोत:
- A Source Book in Indian Philosophy – Radhakrishnan & Moore
- Romila Thapar – Early India (गुप्तकालीन शिक्षा में योग का स्थान)
3. मध्यकाल: नाथ योगियों और हठ योग का उत्थान
गोरखनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ जैसे योगियों ने "हठ योग" को साधना की मुख्य विधि बनाया।
शरीर पर नियंत्रण और प्राण ऊर्जा का संतुलन मुख्य उद्देश्य।
प्रमुख ग्रंथ:
हठ योग प्रदीपिका – स्वामी स्वात्माराम
गोरक्षशतक, शिव संहिता, गेरंड संहिता
स्रोत:
- Roots of Yoga – James Mallinson & Mark Singleton
- The Yoga Tradition – Georg Feuerstein
4. औपनिवेशिक युग: जब योग को तंत्र कहा गया
अंग्रेज़ विद्वानों ने योग को रहस्यमय और अनपढ़ जनता का हिस्सा बताया।
लेकिन इसी दौरान भारतीय संतों ने योग को पुनः जाग्रत किया।
5. आधुनिक भारत के योगगुरु और वैश्विक मंच पर उदय
स्वामी विवेकानंद (1863–1902) : शिकागो (1893) में योग और वेदांत का पश्चिमी दुनिया से परिचय
पुस्तक: Raja Yoga (1896) – राज योग का आध्यात्मिक विवेचन। लॉस एंजेलिस में Self-Realization Fellowship स्थापना भी की।
परमहंस योगानंद (1893–1952) : योग का प्रचार प्रसार अमेरिका में किया।
पुस्तक: Autobiography of a Yogi (1946)
बी.के.एस. अयंगर (1918–2014) : हठ योग के शारीरिक पक्ष को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाया। "Iyengar Yoga" एक इंटरनेशनल ब्रांड बन गया।
पुस्तक: Light on Yoga (1966)
6. योग का वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय पहचान
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून)
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव पर UN में मान्यता
अब 170+ देशों में आधिकारिक आयोजन
वैज्ञानिक मान्यता: AIIMS, ICMR, NIH द्वारा योग के मानसिक, हृदय और मांसपेशियों पर सकारात्मक प्रभाव सिद्ध।
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भारत की आत्मा है योग
ऋषियों की साधना से लेकर डिजिटल दौर के एप्स तक — योग की यात्रा भारत के सांस्कृतिक बौद्धिक बल की प्रतीक है।
आज दुनिया इसे ‘फिटनेस’ के लिए अपनाती है, लेकिन भारत जानता है कि योग आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग है।
योग पर यह एतिहासिक जानकारी आपको कैसी लगी। विश्व योग दिवस पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है। भारत की इस उपलब्धि को आप किस नजरिए से देखते हैं कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दें।
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