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हनुमानजी के 12 नामों के नियमित जाप से मिलती है अपार बुद्धि व बल, जानिए पूजा एवं जाप की विधि

हनुमान जी के 12 चमत्कारी नाम हैं जो भक्ति, बल और निष्ठा का प्रतीक हैं, और करोड़ों भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनके 12 प्रमुख नाम न केवल उनकी अलौकिक शक्तियों और गुणों को प्रकट करते हैं, बल्कि प्रत्येक नाम अपने आप में एक आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र हैं।

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Mukesh Pandit
Hanumanji

हिंदू मान्यता के अनुसार, पवनसुत हनुमान को जाग्रत देवता माना जाता है। अर्थात वह सशरीर पृथ्वी पर वास करते हैं और अपने भक्तों पर हमेशा ही कृपा बरसाते हैं। हनुमान जी के 12 चमत्कारी नाम हैं जिन्हें भक्ति, बल और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है, हिंदू धर्म में करोड़ों भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनके 12 प्रमुख नाम न केवल उनकी अलौकिक शक्तियों और गुणों को प्रकट करते हैं, बल्कि प्रत्येक नाम अपने आप में एक आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र है, जो भक्तों के जीवन को सकारात्मक दिशा प्रदान करता है। 

नामों के साथ मंत्रों का भी कीजिए जाप

प्रत्येक नाम के साथ जुड़े प्रमुख मंत्रों की साधना से और प्रभावशाली बन जाते हैं। यह मंत्र हर उस भक्त के लिए एक अनमोल उपहार है, जो हनुमान जी की कृपा से अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करता है। हनुमान जी की भक्ति में वह शक्ति है, जो असंभव को संभव बना सकती है, और उनके नामों का स्मरण आपके जीवन को नई ऊर्जा से भर सकता है। इस लेख के माध्यम से हम आपको एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा पर ले चलेंगे, जो आपके मन, शरीर और आत्मा को प्रेरित करेगी। ये हैं हनुमानजी के चमत्कारित 12 नाम...

 श्री हनुमान 

मंत्र: ॐ श्री हनुमते नमः।

हनुमान जी के नाम की उत्पत्ति उनके बचपन की एक अनोखी घटना से जुड़ी हुई है। जब वे बाल अवस्था में थे, तब उन्होंने उदयमान सूर्य को एक लाल, चमकता हुआ फल समझ लिया और उसे खाने के लिए दौड़ पड़े। इस घटना से घबरा कर देवताओं ने सूर्य की रक्षा हेतु इंद्रदेव से सहायता मांगी। इंद्रदेव ने अपने वज्र से हनुमान जी पर प्रहार किया, जिससे उनकी ठोड़ी (जिसे संस्कृत में हनु कहा जाता है) टेढ़ी हो गई। इस घटना के कारण उन्हें ‘हनुमान’ नाम मिला। यह नाम उनके शौर्य, जिज्ञासा और अद्भुत शक्ति का प्रतीक बन गया। हनुमान नाम से जप करने से साहस, आत्मबल और निडरता की प्राप्ति होती है।

अंजनीसुत 

मंत्र: ॐ अञ्जनी सुताय नमः।

हनुमान जी का दूसरा प्रसिद्ध नाम है अंजनीसुत, जिसका शाब्दिक अर्थ है –अंजनी का पुत्र। देवी अंजना एक तपस्विनी थीं, जिन्होंने संतान प्राप्ति हेतु कठोर तप किया था। उनके तप से प्रसन्न होकर वायु देव के माध्यम से भगवान शिव ने उन्हें एक दिव्य पुत्र प्रदान किया। हनुमान जी का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रदोषकाल में हुआ था, जो विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। इस दिव्य प्रसंग के कारण वे ‘अंजनीसुत’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। 

वायुपुत्र 

मंत्र: ॐ वायुपुत्राय नमः।

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हनुमानजी का यह नाम उनके दैवीय उत्पत्ति की ओर संकेत करता है। कथा के अनुसार, अंजनी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र रूप में अवतरित होने का वरदान दिया, और यह दिव्य संतान वायु देव के माध्यम से अंजनी को प्राप्त हुई। इस कारण हनुमान जी को वायुपुत्र भी कहा जाता है, अर्थात वायु देव के पुत्र। वायुपुत्र नाम से यह सिद्ध होता है कि हनुमान जी के अंदर गति, शक्ति और अजेयता जैसे गुण हैं जो वायु तत्व में निहित हैं। इस नाम का जाप वायु तत्व की बाधाओं को दूर करता है, रोग नाश करता है और जीवन में ऊर्जा का संचार करता है। ‘ॐ वायुपुत्राय नमः’ मंत्र से बल, चपलता और स्थिरता की प्राप्ति होती है।

महाबल 

मंत्र: ॐ महाबलाय नमः।

हनुमान जी को महाबल कहे जाने के पीछे उनका अतुलनीय शारीरिक बल और पराक्रम प्रमुख कारण हैं। उनके बल की तुलना किसी भी देवता या असुर से नहीं की जा सकती। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उनका बल इतना प्रचंड था कि बालि, रावण, भीम, एरावत हाथी और स्वयं इंद्रदेव जैसे बलशाली भी उनके समक्ष तुच्छ प्रतीत होते हैं। जब उन्होंने स्वर्ण लंका को पलभर में राख कर दिया था, तब उनके इस नाम की सार्थकता स्पष्ट हुई। ‘महाबल’ नाम हनुमान जी की अतुलनीय शक्ति का प्रतीक है। इसका जाप मानसिक और शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है तथा कठिन परिस्थितियों में विजय प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है।

रामेष्ट 

मंत्र: ॐ रामेष्ठाय नमः।

हनुमान जी को ‘रामेष्ट’ अर्थात श्रीराम के परमप्रिय भक्त कहा जाता है। यह नाम उनके समर्पण, भक्ति और रामकाज में अद्वितीय योगदान को दर्शाता है। हनुमान जी की निःस्वार्थ सेवा और अटल भक्ति ने उन्हें भगवान राम का अभिन्न अंग बना दिया। ऐसा कहा जाता है कि उनके शरीर के हर रोम में श्रीराम का वास है। उन्होंने लंका में जाकर सीता माता को ढांढस बंधाया, संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण को जीवनदान दिया और समूची रामायण कथा में श्रीराम के कार्यों में उनका योगदान अमूल्य रहा। ‘ॐ रामेष्ठाय नमः’ का जाप भक्ति, प्रेम और सेवा भावना को बढ़ाता है तथा जीवन में परमात्मा के प्रति समर्पण की भावना जागृत करता है।

फाल्गुनसखा

मंत्रः ॐ फाल्गुण सखाय नमः।

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इस नाम का अर्थ है ‘अर्जुन का मित्र, जिसमें ‘फाल्गुन’ अर्जुन का एक नाम है और ‘सखा’ का अर्थ मित्र। महाभारत काल में जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर रथ के ध्वज पर हनुमान जी को स्थापित किया, तब उन्होंने अर्जुन की रक्षा की। रथ पर उनका ध्वज के रूप में विराजमान होना इस बात का संकेत है कि वे धर्म के मार्ग पर चलने वालों के साथ मित्र बनकर खड़े रहते हैं। यह नाम उनके धर्मपक्षी स्वभाव और मित्रवत व्यवहार का परिचायक है। ‘फाल्गुनसखा’ नाम का मंत्र मित्रता, सहयोग और धर्म की रक्षा के लिए जपा जाता है। यह मंत्र हमें सिखाता है कि जब हम सत्य और धर्म की राह पर होते हैं, तब हनुमान जैसे शक्तिशाली मित्र हमारे साथ होते हैं।

पिंगाक्ष 

मंत्रः ॐ पिंगाक्षाय नमः।

पिंगाक्ष शब्द का अर्थ होता है ‘पीले और लाल आभा युक्त नेत्रों वाला’। हनुमान जी के नेत्रों का वर्णन ग्रंथों में अत्यंत अद्भुत रूप में किया गया है। जब वे क्रोध में होते हैं तो उनकी आंखें अग्निशिखा जैसी लाल और जब भक्तिभाव में होते हैं तो उनमें सौम्यता और तेज एक साथ दिखाई देता है। यह नाम उनके दिव्य रूप, आभामंडल और व्यक्तित्व की विशेषता को दर्शाता है। पिंगाक्ष नाम से उनका ध्यान करने से दृष्टि शुद्ध होती है और अंतर्मन में तेज उत्पन्न होता है। यह मंत्र उन लोगों के लिए उपयोगी है जो मानसिक रूप से स्पष्ट दृष्टिकोण चाहते हैं, चाहे वह जीवन का हो, लक्ष्य का या धर्म का। यह नेत्रों की ज्योति और अंतर्दृष्टि को भी जागृत करता है।

अमितविक्रम

मंत्रः ॐ अमितविक्रमाय नमः।

अमितविक्रम का अर्थ होता है जिसका पराक्रम अथाह और अनगिनत हो। हनुमान जी का यह नाम उनकी युद्धकला, शक्ति और साहस को दर्शाता है। रावण की लंका जलाना, संजीवनी लाना, मेघनाद जैसे शक्तिशाली योद्धा को परास्त करना – ये सब उनके पराक्रम के उदाहरण हैं। यहां तक कि देवता भी उनके अद्भुत विक्रम से अचंभित रहते हैं। इस नाम का जाप करने से व्यक्ति में आत्मबल, साहस और निर्णय लेने की शक्ति उत्पन्न होती है। जब जीवन में चुनौतियां अधिक हों और रास्ता धुंधला हो, तब ‘अमितविक्रम’ नाम से प्रार्थना करने से अकल्पनीय शक्ति की प्राप्ति होती है। यह नाम वीरता, निर्भयता और धर्म पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है।

उदधिक्रमण 

मंत्रः ॐ उदधिक्रमणाय नमः।

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उदधिक्रमण का शाब्दिक अर्थ है- समुद्र को पार करने वाला। यह नाम हनुमान जी के अद्भुत साहसिक कारनामे की याद दिलाता है जब उन्होंने समुद्र लांघकर लंका में प्रवेश किया था। यह कार्य असंभव माना जाता था, परंतु हनुमान जी ने न केवल समुद्र को लांघा बल्कि मार्ग में आए अनेक विघ्नों को भी मात दी। यह नाम उनके आत्मविश्वास, गति और लक्ष्य के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति में वह ऊर्जा उत्पन्न होती है जो किसी भी असंभव कार्य को संभव बना देती है। यह कठिनाइयों को पार करने, बाधाओं को तोड़ने और अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित करता है।

 सीताशोकविनाशन 

मंत्रः ॐ सीताशोकविनाशनाय नमः।

इस नाम का अर्थ है- ‘माता सीता के शोक का नाश करने वाला’। जब हनुमान जी ने सीता माता को अशोक वाटिका में पहली बार देखा, तब वे अत्यंत दुखी थीं। श्रीराम से बिछुड़ने का दुख उनके मन को व्यथित कर रहा था। हनुमान जी ने उन्हें श्रीराम का संदेश दिया, उनकी अंगूठी दिखाई और अपने मधुर वचनों से उनके शोक को हर लिया। यह नाम करुणा, संवेदनशीलता और आशा का प्रतीक है। यह मंत्र उन लोगों के लिए उपयोगी है जो मानसिक दुख, वियोग या चिंता से ग्रस्त हैं। ‘सीताशोकविनाशन’ नाम का जाप मन को शांति देता है और कठिन समय में आशा की किरण जगाता है।

लक्ष्मण प्राणदाता 

मंत्रः ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः।

हनुमान जी का यह नाम रामकथा के सबसे भावुक और अद्भुत प्रसंग से जुड़ा है। जब मेघनाद ने मायावी शक्ति से लक्ष्मण जी को गंभीर रूप से घायल कर दिया था, तब संपूर्ण सेना निराश हो गई थी। वैद्यराज सुषेण ने कहा कि लक्ष्मण की प्राण रक्षा केवल हिमालय पर स्थित संजीवनी बूटी से ही संभव है। तब हनुमान जी आकाशमार्ग से उड़कर पर्वत तक पहुंचे और समय की नाजुकता को देखते हुए पूरा पर्वत ही उठा लाए। उसी संजीवनी से लक्ष्मण को जीवनदान मिला। इस प्रकार वे लक्ष्मण के प्राणदाता कहलाए। यह नाम संकट की घड़ी में समाधान लाने वाले, जीवन रक्षक और समय के वीरता से आगे बढ़ने वाले हनुमान जी की महिमा को दर्शाता है। इस नाम का जाप जीवन में नई ऊर्जा, आशा और कठिन समय में चमत्कारी सहायता की भावना जगाता है।

दशग्रीवदर्पहा 

मंत्रः ॐ दशग्रीवस्य दर्पाय नमः।

यह नाम हनुमान जी के उस रूप को दर्शाता है जो अहंकार का नाशक है। ‘दशग्रीव’ रावण का दूसरा नाम है और ‘दर्पहा’ का अर्थ है घमंड को चूर-चूर कर देने वाला। रावण का अभिमान उसके बल, बुद्धि और तप के कारण आसमान छू रहा था, परंतु हनुमान जी ने उसके इस घमंड को कई बार झकझोरा। चाहे वह लंका जलाना हो, अशोक वाटिका में तबाही मचाना हो या रावण की सभा में निर्भीकता से खड़े होकर राम का संदेश सुनाना—हर बार हनुमान जी ने यह सिद्ध किया कि सच्चा बल विनम्रता में होता है, न कि घमंड में। इस नाम का जाप अहंकार, अहं और झूठे अभिमान से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। यह नाम सिखाता है कि धर्म के मार्ग पर चलने वाले के आगे कोई भी अहंकारी ठहर नहीं सकता।

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