प्रयागराज, वाईबीएन नेटवर्क।
संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाले इस कुंभ में 40 करोड़ श्रद्धालुओं के शामिल होने की उम्मीद है। महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने के लिए बड़ी संख्या में साधु-संत मीलों दूर से पहुंच रहे हैं।
कुंभ में आने वाले नागा साधु लोगों के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र होते हैं। नागा साधुओं के बिना कुंभ की कल्पना नहीं की जा सकती। नागा साधुओं का पहनावा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल अलग होता है। महिला नागा साधु भी अपना जीवन पूरी तरह से भगवान को समर्पित कर देती हैं। आज हम नागा साधुओं के बारे में कुछ ऐसे रहस्य जानेंगे जो शायद आप नहीं जानते होंगे।
कैसा होता है जीवन?
महिला नागा साधुओं का जीवन अनोखा और अलग होता है। घरेलू जीवन से दूर रहने वाली महिला नागा साधुओं का दिन पूजा-पाठ से शुरू और खत्म होता है। इनका जीवन कई कठिनाइयों से भरा होता है। नागा साधुओं को सांसारिक मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं होती और उनकी हर बात अनोखी होती है।
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महिला नागा साधु कौन बनती है?
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महिला नागा साधु बनाने की प्रक्रिया बहुत कठिन है। लेकिन सभी महिला नागा साधुओं को साधु और साध्वी कहकर संबोधित किया जाता है। नागा साधु साधुओं और संतों के बीच एक उपाधि है। साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासी संप्रदाय हैं। इन तीनों संप्रदायों के अखाड़े नागा साधुओं का निर्माण करते हैं।
गंती कपड़े
महिला नागा साधु और पुरुष नागा साधु बहुत अलग-अलग होते हैं। पुरुष नागा साधु नंगे कपड़े पहनते हैं, जबकि महिला नागा साधु पूरे कपड़े पहनती हैं। महिलाओं को भी दीक्षा दी जाती है और नागा बनाया जाता है, लेकिन वे सभी कपड़े पहनती हैं। महिला नागा साधुओं के लिए माथे पर तिलक लगाना अनिवार्य है। लेकिन वे केवल भगवा रंग का कपड़ा पहन सकती हैं जो सिला हुआ न हो। इस कपड़े को गंती कपड़े कहते हैं।
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10 से 15 साल की कठोर तपस्या
नाग साधु बनने के लिए महिलाओं को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। उन्हें 10 से 15 साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उन्हें लंबे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। उसके बाद उन्हें अपने गुरु को यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि वे सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो चुकी हैं। जिसके बाद गुरु साधु उन्हें नाग साधु बनने की अनुमति देते हैं।