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Mesh Sankranti: मेष संक्रांति सूर्य देव की पूजा का विशेष अवसर, जानें इसका महत्व और पूजा विधि

मेष संक्रांति, जिसे मेष राशि में सूर्य के प्रवेश के रूप में जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह न केवल खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं में भी गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व रखता है।

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Mukesh Pandit
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मेष संक्रांति, जिसे मेष राशि में सूर्य के प्रवेश के रूप में जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह न केवल खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं में भी गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व रखता है। मेष संक्रांति को सूर्य के राशि परिवर्तन के प्रथम चरण के रूप में मनाया जाता है, जो हिंदू नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। मेष संक्रान्ति को महा विशुव संक्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। मेष संक्रान्ति के दिन अधिकांश हिन्दु सौर कैलेण्डरों में नववर्ष का आरम्भ होता है।  hindu religion | Hindu Religious Practices

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मेष संक्रांति का आध्यात्मिक महत्व

मेष संक्रांति सूर्य देव की पूजा का विशेष अवसर है। सूर्य को जीवन का आधार, ऊर्जा और आत्मा का प्रतीक माना जाता है। इस दिन सूर्य की उपासना करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक बल प्राप्त होता है। यह आत्मविश्वास और नेतृत्व के गुणों को बढ़ाने में भी सहायक माना जाता है।

सांस्कृतिक महत्व: मेष संक्रांति कई क्षेत्रों में विभिन्न नामों से मनाई जाती है, जैसे बैसाखी (पंजाब), बिहू (असम), विशु (केरल), और पोइला बैसाख (बंगाल)। यह पर्व भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है। यह समय फसल कटाई का भी उत्सव है, जिसके लिए किसान सूर्य और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

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ज्योतिषीय महत्व:  मेष संक्रांति हिंदू नववर्ष का प्रारंभ मानी जाती है। इस दिन से सूर्य का नया चक्र शुरू होता है, जो ज्योतिषीय गणनाओं और पंचांग निर्माण का आधार है। यह समय शुभ कार्यों, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, और नए उद्यम शुरू करने के लिए अनुकूल माना जाता है।

सामाजिक महत्व : मेष संक्रांति एकता और समुदाय की भावना को बढ़ावा देती है। लोग इस दिन एक साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं, भोजन साझा करते हैं और सामूहिक पूजा-अर्चना करते हैं। यह सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।

मेष संक्रांति कब मनाई जाती है?

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मेष संक्रांति सामान्यतः 14 अप्रैल को मनाई जाती है। यह तिथि सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के सटीक समय पर निर्भर करती है, जिसे संक्रांति क्षण कहते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह घटना चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में या वैशाख मास की शुरुआत में होती है। सूर्य का यह गोचर सौर मास के आधार पर तय होता है, इसलिए तारीख में मामूली बदलाव हो सकता है। 2025 में मेष संक्रांति 14 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य सुबह के समय मेष राशि में प्रवेश करता है, और पूजा का शुभ मुहूर्त स्थानीय पंचांग के अनुसार तय किया जाता है।

 मेष संक्रान्ति अनुष्ठान के लिये शुभ माना जाता

मेष संक्रान्ति के लिये संक्रान्ति के दस घटी पूर्व तथा दस घटी पश्चात के क्षण को शुभ माना जाता है तथा इसी समयावधि को सभी दान-पुण्य अदि गतिविधियों के लिए स्वीकार किया जाता है। यदि संक्रान्ति सूर्यास्त के पश्चात किन्तु मध्य रात्रि से पूर्व होती है तो दिन का उत्तरार्ध माना जाता है तथा यदि संक्रान्ति मध्य रात्रि के पश्चात होती है तो अगले दिन का प्रथम भाग मेष संक्रान्ति अनुष्ठान के लिये शुभ माना जाता है।

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मेष संक्रांति की पूजा की विधि

मेष संक्रांति की पूजा में सूर्य देव की उपासना मुख्य रूप से की जाती है। यह पूजा सरल और आध्यात्मिक होती है, जिसमें श्रद्धा और भक्ति का विशेष महत्व है। नीचे पूजा की विधि को विस्तार से बताया गया है:

प्रातःकाल स्नान: मेष संक्रांति के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान के दौरान जल में गंगाजल या तिल मिलाकर पवित्रता प्राप्त करें। यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि का प्रतीक है।

घर की साफ-सफाई: पूजा से पहले घर को साफ करें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। पूजा स्थल पर स्वच्छ कपड़ा बिछाएं और सूर्य देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

पूजा सामग्री : 

सूर्य देव की मूर्ति या चित्र
लाल चंदन, लाल फूल, अक्षत (चावल), धूप, दीप, कपूर
गुड़, गेहूं, तांबे का पात्र
लाल वस्त्र
दूध, दही, शहद, घी और शक्कर (पंचामृत के लिए)
फल, मिठाई और जल
संकल्प: पूजा शुरू करने से पहले संकल्प लें। अपने और अपने परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख के लिए प्रार्थना करें।

सूर्य पूजा:

सूर्य देव को लाल चंदन और लाल फूल अर्पित करें।
तांबे के पात्र में जल भरें और उसमें लाल चंदन, लाल फूल और अक्षत डालें।
सूर्य की ओर मुख करके जल अर्पित करें। यह सूर्य को अर्घ्य देने की प्रक्रिया है।

सूर्य मंत्र का जाप करें:

ॐ सूर्याय नमः या ॐ घृणिः सूर्याय नमः।
सूर्य गायत्री मंत्र का जाप भी शुभ माना जाता है:
ॐ भास्कराय विद्महे, महाद्युतिकराय धीमहि, तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।
हवन (वैकल्पिक): यदि संभव हो, सूर्य देव के लिए हवन करें। हवन में आम की लकड़ी और घी का उपयोग करें। प्रत्येक मंत्र के साथ "स्वाहा" कहकर आहुति दें।

 

दान-पुण्य: मेष संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है। सूर्य से संबंधित वस्तुओं जैसे गेहूं, गुड़, तांबे के बर्तन, लाल वस्त्र, और सोना (यथाशक्ति) दान करें। गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करना भी शुभ माना जाता है।
प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद के रूप में मिठाई, फल और खिचड़ी परिवार और पड़ोसियों में बांटें। यह सामुदायिक एकता को बढ़ावा देता है।
ध्यान और प्रार्थना: पूजा के अंत में सूर्य देव से अपने जीवन में प्रकाश, ज्ञान और समृद्धि की कामना करें। कुछ समय ध्यान करें और सकारात्मक विचारों को अपनाएं।
मेष संक्रांति के अवसर पर विशेष कार्य
नए कार्य की शुरुआत: इस दिन नए व्यवसाय, नौकरी या किसी महत्वपूर्ण कार्य की शुरुआत करना शुभ माना जाता है।
पवित्र नदियों में स्नान: यदि संभव हो, गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करें।
उपवास: कुछ लोग इस दिन सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं।
सूर्य नमस्कार: योग और सूर्य नमस्कार करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

मेष संक्रांति न केवल एक खगोलीय घटना है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व सूर्य की शक्ति, जीवन की ऊर्जा और नए चक्र की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन की पूजा और उत्सव न केवल व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ावा देते हैं। मेष संक्रांति के दिन सूर्य की उपासना, दान-पुण्य और सामुदायिक उत्सव के माध्यम से हम अपने जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि ला सकते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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